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विपक्षियों द्वारा कोरोना को हथियार बना कर मोदी के विरुद्ध लड़ी जा रही ये लड़ाई क्या उस 15-20 लाख करोड़ के लिए है ?

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोरोना को हथियार बना कर लड़ी जा रही ये लड़ाई क्या उस 15-20 लाख करोड़ के लिए है.?
कल मेरे द्वारा लिखी गयी पोस्ट “क्या यह संयोग नहीं एक सोचा समझा खतरनाक षड़यंत्र है…?” का ही दूसरा भाग है मेरी यह पोस्ट।
कल अपनी पोस्ट में मैंने विस्तार से उल्लेख किया था कि देश की 45 प्रतिशत जनसंख्या पर शासन कर रहीं भयंकर मोदी विरोधी दलों वाली दस राज्यों की सरकारों की देश में कुल एक्टिव कोरोना संक्रमितों संख्या में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी है तथा देश में कोरोना के कारण हुई मौतों की संख्या में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी है। तथा देश की 55 प्रतिशत जनसंख्या वाले शेष 18 राज्यों एवं 8 केन्द्र शासित राज्यों में एक्टिव कोरोना संक्रमितों की संख्या केवल 25 प्रतिशत मात्र है। तथा देश में कोरोना के कारण हुई मौतों की संख्या में इन राज्यों की हिस्सेदारी केवल 35 प्रतिशत है।
क्या उपरोक्त स्थिति केवल एक संयोग मात्र है या कोई भयंकर षड़यंत्र.? इसका निर्णय इन तथ्यों को बहुत ध्यान से पढ़ने के पश्चात आप स्वयं करें…
2 वर्ष पूर्व जून 2019 में लोकसभा में वित्त पर स्टैंडिंग कमेटी की एक रिपोर्ट पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में काले धन के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीयों ने 1980 से लेकर साल 2010 के बीच 30 साल की अवधि में लगभग 216.48 अरब डॉलर (16.18 लाख करोड़ रुपए) से लेकर 490 अरब डॉलर (36.62 लाख करोड़ रुपए) के बीच काला धन देश के बाहर भेजा है। (डॉलर का मूल्य आज की दर 74.73 रू के अनुसार) यह रिपोर्ट देश के तीन दिग्गज वित्तीय संस्थानों के द्वारा तैयार की गई थी। खबर का लिंक पहले कमेंट में देखें। उल्लेख कर दूं कि उपरोक्त स्टैंडिंग कमेटी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मनीष तिवारी, अम्बिका सोनी और गौरव गोगोई सरीखे कांग्रेसी सांसद भी शामिल थे।
उपरोक्त रिपोर्ट में जो राशि बताई गई थी, वो उन तीस वर्षों के दौरान तरह तरह के हथकंडों के द्वारा निजी तिजोरियों में वापस आती रही थी। लेकिन 2014 तक काफी धन विदेशों में ही रह गया था.
मई 2014 में सत्ता में आने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी को यह आभास हो गया था कि विदेशों में जमा कालेधन को भारत लाने में अपेक्षित सफ़लता मिलना बहुत कठिन है। हुआ भी यही था। अतः उन्होंने देश में जमा कालेधन पर नोटबंदी और लगभग साढ़े तीन लाख शेल (“फ़र्जी/काग़ज़ी) कम्पनियों की बंदी सरीखा घातक प्रहार किया था। परिणामस्वरुप लगभग एक लाख करोड़ से अधिक की राशि सरकार के खाते में पहुंच चुकी है. लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ से अधिक की कालेधन की रकम आज भी विभिन्न जांच एजेंसियों के शिकंजे में फंसी हुई है। नकद लेनदेन पर पैन कार्ड की अनिवार्यता ने बची खुची कसर पूरी कर दी है. विदेशों में जमा कालेधन के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने CRS और FATCA (Foreign Account Tax Compliance Act) और CRS (Common Standard on Reporting and Due Diligence for Financial Account Information) सरीखे अत्यन्त कठोर कानून बना कर विदेशों में जमा कालेधन को ऐसे कठोर कानूनी बंधनों में जकड़ दिया है कि अब उस धन को चोरी छुपे भारत लाना तो दूर, विदेशों में भी चोरी छुपे उसका निवेश करना लगभग असम्भव हो चुका है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो बस ये समझ लीजिए कि बरसों दशकों तक देश को भांति भांति से लूट कर विदेशों में जमा लाखों करोड़ की लूट की रकम को प्रधानमंत्री मोदी ने एक झटके में कंकड़ पत्थर कर दिया है। अब स्थिति यह है कि देश में जांच एजेंसियों के शिकंजे में तथा विदेशों में FATCA और CRS सरीखे कानूनों के शिकंजे में फंस कर जिन लुटेरों का 15-20 लाख करोड़ का कालाधन पत्थर हो रहा है वो किसी भी क़ीमत पर मोदी के हाथ से देश की सत्ता छीनने का प्रयास लम्बे समय से कर रहे हैं, ताकि उनके कालेधन को उन कानूनों से मुक्ति मिले जो आज कठोर कानूनी शिकंजे में बुरी तरह फंस चुका है। ध्यान रहे कि जिन विदेशी बैंकों में कालाधन जमा किया जाता है। वो बैंक ब्याज नहीं देते। इसके बजाय 3 या उससे अधिक प्रतिशत फीस वसूलते हैं। अतः विदेशों में फंसा लुटेरों का कालाधन लगातार घटता भी जा रहा है। अनुमानतः पिछले 7 वर्षों में बैंकों की उपरोक्त फीस चुकाने में यह धन लगभग 25% घट चुका है। जनता की अदालत (चुनाव) में ये लुटेरे क्योंकि लगातार 2 बार से बहुत बुरी तरह मुक़दमा हार रहे हैं। अतः अब हताशा में ये किसी भी हद को पार कर जाने की हैवानियत पर उतारू हो चुके हैं। उनकी इस हैवानियत में उनका सबसे घातक हथियार वो लोग बन गए हैं जिनका एकमात्र ज़हरीला धर्मान्ध एजेंडा किसी भी क़ीमत पर इस देश की सत्ता से हिन्दुत्ववादी प्रधानमंत्री और उसकी सरकार को उखाड़ फेंकना है.
यही कारण है कि पिछले काफी लम्बे समय से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार से किसी भी कीमत पर पीछा छुड़ाने के लिए हर घृणित से घृणित हथकंडा अपनाने से भी नहीं हिचक रहे लोगों ने इसबार कोरोना महामारी को भी अपना हथकंडा बनाने की ठान ली है। उन्हें इसबात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि उनके इस हथकंडे का शिकार बनकर 10-20 हजार या दो-चार लाख निर्दोष नागरिक मौत के घाट उतर जाएंगे। क्योंकि मोदी से उनकी लड़ाई 15 से 20 लाख करोड़ रूपये के लिए है।
मेरे विचार से उपरोक्त तथ्य इस बात के लिए पर्याप्त हैं कि आप यह फैसला कर सकें कि कोरोना से सम्बंधित देश की उपरोक्त स्थिति केवल एक संयोग मात्र है या कोई भयंकर षड़यंत्र.?
साभार: सतीश चन्द्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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