Positive India:Vishal Jha:
बिल्कुल ही अलग संदर्श से इस पूरे ऑपरेशन शीशमहल(Operation Sheesh Mahal) को देखने की आवश्यकता है। राजनीति चलाने के लिए अरविंद केजरीवाल को जितना संघर्ष करना पड़ रहा है, राजनीतिक कला के क्षेत्र में कोई भी राजनीतिक वर्ग केजरीवाल का मुरीद हो सकता है। कौन उतना दुस्साहसी होगा कि दिल्ली के सीएम पद को बीजेपी वाले एलजी के अधीनता में स्वीकार करेगा, ऊपर से इस बात का संकट कि तमाम सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन एवं आगम-निगम में, किसी भी प्रकार किसी को लाभ पहुंचाने की राजनीतिक चेष्टा पूरी नहीं हो पाएगी।
चुनावी लड़ाई में जनता का वोट तहसीलना राजनीतिक सिक्के का एक पहलू है। लेकिन दूसरा पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण है। वह है चुनावी लड़ाई के लिए फंडिंग। कैडर और विचारधारा की बात फिलहाल छोड़ देते हैं। आम आदमी पार्टी एकमात्र ऐसा दल है जिसे फंडिंग के मामले में भारत के तमाम राजनीतिक दलों से ज्यादा कष्ट करना पड़ रहा है। शराब पॉलिसी बनाई, क्रियान्वयन होता तो शराब कारोबारियों को लाभ पहुंचता। इस नाते आम आदमी पार्टी की चुनावी लड़ाई को तनिक आर्थिक सपोर्ट मिल पाता। शराब नीति के घोटाले पहले ही उजागर हो गए। केजरीवाल जी को फैसले वापस लेने पड़े। शराब मंत्री को जेल हो गई। हवाला के 15 करोड़ रुपए अर्थात 15 टीना घी का भी उजागर हो गया।
कौन सा राजनीतिक दल भारत में, चाहे क्षेत्रिय हो अथवा राष्ट्रीय, इस बात के लिए राजी हो जाएगा कि बिना किसी सरकारी योजना अथवा बिना किसी हवाला कारोबार के वह राजनीति करके दिखा सके? आम आदमी पार्टी के सियासी संकट का तनिक अंदाजा लगाइए। दो राज्यों में जिसकी सरकार है, तीसरे राज्य में जिसके 5 विधायक के साथ छ: पर्सेंट वोट शेयर हैं। और वह महज 45 करोड़ से सियासत के लिए कुछ जुगाड़ लगाता भटक रहा है! वह भी अपने आवास के रिनोवेशन के नाम पर पर्दे और कालीन से पैसे बचा रहा है! 10 करोड़ की सीमा से बचने के लिए 9 करोड़ 99 लाख के मामूली सी गणित पर काम कर रहा है! और वह बात भी मीडिया के प्राइम टाइम में घंटों क्या, दिनों तक राष्ट्रीय खबर बनी हुई है!
अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दो पैसे का लाभ पहुंचाने के लिए मोहल्ला क्लीनिक योजना लेकर आए। अपने कार्यकर्ताओं के आवास में मोहल्ला क्लीनिक खोलवाकर 10 हजार के मासिक किराए का लाभ पहुंचाया। पीडब्ल्यूडी का सीएम आवास होने के बावजूद निजी आवास को सीएम आवास बनाया, और ₹10 लाख रुपए के मासिक किराए का हर माह गणितीय लाभ जुटा रहे हैं। हृदय से सोचने की बात है, आम आदमी पार्टी के लिए एक-एक पैसे जुटाना कितना चुनौती भरा काम है? जहां से भी पार्टी के लिए दो पैसे का जुगाड़ लगता है, सत्ता में शीर्ष पर बैठे पदाधिकारी एलजी तुरंत जांच एजेंसी के लिए रिकमेंड कर देते हैं।
बावजूद इसके अरविंद केजरीवाल अपनी मेधा बुद्धि से प्रचार-प्रसार का बढ़िया उपाय लगा लेते हैं। सरकार के बजट में ही योजनाओं के प्रचार और जागरूकता के नाम पर बजट से अच्छी खासी रकम पाट लेते हैं। और सरकारी योजनाओं के बैनर में अरविंद केजरीवाल अपनी फोटो लगवा कर पार्टी के प्रचार का एजेंडा पूरा कर लेते हैं। दूसरा तरीका है कि सरकारी योजनाओं के प्रचार का भरपूर पैसा जब टीवी चैनल वालों को देते हैं, तब टीवी चैनल वाले भी अरविंद केजरीवाल के हर छोटे-छोटे प्रेस कॉन्फ्रेंस का लाइव टेलीकास्ट कर देते हैं। फिर अरविंद केजरीवाल भारत के दसियों मुख्यमंत्री में सबसे अब्बल दर्जे के मुख्यमंत्री हो जाते हैं। राष्ट्रीय विमर्श में उन्हें सीधे स्थान मिलने लगता है। उनके सियासी बतियान डिप्टी प्राइम मिनिस्टर के दर्जे का हो जाता है। किंतु अब बजट से विज्ञापन वाले सारे पैसे खर्च हो चुके हैं। मीडिया मार्केट से भी उन पैसों का मूल्य फिनिश हो चुका है। आय के तमाम स्रोतों पर केंद्र की जांच एजेंसियां सख्ती से काम कर रही हैं। ऐसा, कि आम आदमी पार्टी के सियासत का सांस लेना भी दूभर हो गया है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)