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पश्चिम बंगाल को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ सेना और सेना के बूट ही संभाल सकते हैं

मिस्टर नरेंद्र मोदी , गुजरात वाला जज्बा फिर से दिखाइए , अपने उदारवादी चेहरे को कुछ दिन के लिए विश्राम दीजिए।

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Violence in Bengal. Image Credit:Twitter
Positive India:Dayanand Pandey:
सच यह है कि पश्चिम बंगाल में एक बड़ी सैनिक कार्रवाई की तुरंत ज़रूरत है। लोकतंत्र को मुल्तवी कर फौरन सैनिक शासन की ज़रूरत है। वर्चुवल ही सही एक सर्वदलीय बैठक बुला कर पश्चिम बंगाल में सैनिक कार्रवाई और राष्ट्रपति शासन की सहमति ले कर यह काम जितनी जल्दी संभव बने , नरेंद्र मोदी को कर लेना चाहिए। दुनिया कहती रहे तानाशाह पर इस समय पश्चिम बंगाल को बचाने के लिए , मनुष्यता को बचाने के लिए पश्चिम बंगाल में सैनिक कार्रवाई बहुत ज़रूरी हो गई है। ममता बनर्जी सरकार ने ही यह स्थितियां बनाई हैं और उसी ममता सरकार से यह उम्मीद करना कि इस हिंसा से वह निपट लेंगी , उन की पुलिस स्थितियां संभाल लेगी , ऐसा सोचना निरी मूर्खता होगी।

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ममता बनर्जी ने तो बीच चुनाव ही कह दिया था अपने लोगों से कि अर्ध सैनिक बल बस चुनाव तक रहेंगे , तब तक चुप रहो। चुनाव बाद जो करना हो कर लेना। तो वह लोग अब कर रहे हैं। हिंसा-लूटपाट का राजपाट वामपंथियों ने ममता बनर्जी को सौंपा था। ममता बनर्जी ने लूटपाट के राज को बहुत तबीयत से संभाला है। वामपंथियों की हिंसा और लूटपाट को सौ गुना कर दिया है ममता ने । लोकलाज और लोकतांत्रिक मूल्य मान्यता ममता बनर्जी पहले भी नहीं मानती थीं , अब भी क्यों मानेंगी। बल्कि वह इसे और बढ़ावा देंगी। यही उन की ताकत है। अपनी ताकत भला वह क्यों गंवाएंगी।

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भाजपा और नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल में चुनाव भले हार गए हैं। पश्चिम बंगाल में सरकार नहीं बना पाए हैं तो भी गणतंत्र को ध्यान रखते हुए सारी तोहमत सिर पर ले कर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा कर सैनिक शासन लागू कर देना चाहिए। नहीं सच यह है कि पश्चिम बंगाल में कश्मीर से भी बुरी हालत है। देश को एक रखने , पश्चिम बंगाल को भारत में बनाए रखने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है। पश्चिम बंगाल सरकार की नहीं। फिर भी अगर लोकतांत्रिक मूल्य और मान्यता की थोथी दुहाई दे कर अगर मोदी सरकार पश्चिम बंगाल के हालात पर खामोश रहने की कायरता दिखाती है तो उसे इसी लोकतांत्रिक मूल्य मान्यता के तहत पश्चिम बंगाल से निकलने वाले नागरिकों के लिए बिहार से लगायत दिल्ली तक रिफ्यूजी कैंप बनाने शुरू कर देने चाहिए।

क्योंकि अगर हफ्ता-दस दिन और यही स्थिति रही तो तय मानिए कि पश्चिम बंगाल से लोगों का पलायन पक्का शुरू हो जाएगा। अभी मस्जिदों से पश्चिम बंगाल छोड़ने का ऐलान भले नहीं शुरू हुआ है पर जिस तरह हिंदुओं को चिन्हित कर हिंसा , लूट , आगजनी और बलात्कार की खबरें मिल रही हैं , वह बहुत डराने वाली हैं। यह घटनाएं कश्मीर की याद दिलाती हैं। कश्मीर में भी ठीक ऐसे ही बातें शुरू हुई थीं। और जैसा कि कहा जाता है कि 1990 से कश्मीर में स्थितियां खराब हुई थीं , गलत कहा जाता है। सच तो यह है कि कश्मीर की हालत 1947 – 1948 से ही खराब हुई थी। 1990 में आ कर जटिल हुई थीं। वी पी सिंह की केंद्र सरकार के सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी ने कश्मीर को इस्लामिक एटम बम पर बिठा दिया था। वी पी सिंह ने अगर तभी कश्मीर को सेना के हवाले कर दिया होता तो कश्मीर की ज़न्नत , जहन्नुम नहीं बनी होती।

पश्चिम बंगाल भी अब उसी इस्लामिक एटम बम पर बैठ गया है। जिस पर कभी कश्मीर बैठा था। पश्चिम बंगाल की स्थिति भी 1947 – 1948 से ही खराब है। आखिर पूर्वी पाकिस्तान बना किस लिए था , बंगाल को काट कर। फिर वामपंथियों के 30 बरस के कुशासन ने पश्चिम बंगाल को सांप्रदायिकता की भट्ठी पर बिठा दिया। ममता बनर्जी के कुशासन ने सेक्यूलरिज्म का पहाड़ा पढ़-पढ़ कर इस सांप्रदायिकता की भट्ठी को और गरम कर दिया है। इतना कि अब इसे सिर्फ़ और सिर्फ़ सेना और सेना के बूट ही संभाल सकते हैं। नहीं , सोनार बांगला , सोनार बांगला की बात शब्दकोश में ही सुरक्षित रह जाएगी। 15 करोड़ , सवा सौ करोड़ पर भारी पड़ना साबित कर चुके हैं पश्चिम बंगाल में। और केंद्र सरकार अभी वार्ता-वार्ता का आइस-पाइस खेल खेलने की डिप्लोमेसी में मशगूल है। यह पश्चिम बंगाल ही है जहां वामपंथियों ने बेटों के खून में भात सान कर माताओं को खिलाने का कुकर्म शुरू किया था। ममता बनर्जी सरकार वामपंथियों की उस परंपरा को और गति दे रही है।

नरेंद्र मोदी को अगर लगता है कि पश्चिम बंगाल को भारत में रहना चाहिए तो फौरन से पेस्तर सेना उतार देनी चाहिए। नहीं , पश्चिम बंगाल को देश से अलग कर उसे नए देश की मान्यता दे देनी चाहिए। इस शर्त के साथ कि जिसे पश्चिम बंगाल में रहना हो रहे , नहीं भारत में आ जाए। पर यह और बड़े शर्म की बात होगी। तो बेहतर यही होगा कि चीन की तरह तानाशाही दिखाते हुए , भारत की संप्रभुता का पहाड़ा पढ़ते हुए , पश्चिम बंगाल को सेना के हवाले कर देना चाहिए। मिस्टर नरेंद्र मोदी , गुजरात वाला जज्बा फिर से दिखाइए , अपने उदारवादी चेहरे को कुछ दिन के लिए विश्राम दीजिए। देशप्रेम के लिए सारी तोहमत सिर ओढ़ कर तानाशाह बन लीजिए।

सोनार बांगला और मनुष्यता को बचाने का सिर्फ़ और सिर्फ यही एक रास्ता शेष रह गया है। कश्मीर में तो 370 का एक चक्रव्यूह तोड़ कर रास्ता निकालने का विकल्प था। पश्चिम बंगाल में लेकिन यह विकल्प भी नहीं है। वैसे भी आप लाख सिर कटवा लीजिए आप के आलोचक और विरोधी आप को तानशाह ही मानते हैं। तो हम और हमारे जैसे देशप्रेमी आप को तानशाह के रूप में पश्चिम बंगाल में देख लेना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल को अब सिर्फ़ एक तानाशाह और सेना की दरकार है। भाड़ में गए लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्य। नहीं ऐसे तो आज पश्चिम बंगाल , कल बिहार , परसों केरल , फिर कभी और , कभी और हम कटते देखते रहेंगे। इस कटने का तर्क और तथ्य एक आबादी ही तो है। पाकिस्तान बनने में भी तो यही आबादी , यही तथ्य और यही तर्क काम आए थे। फिर आप जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाने में भी जाने डर रहे हैं कि शर्मा रहे हैं। जो भी हो। यह हिंसा , लूट , आगजनी और बलात्कार सिर्फ कश्मीर और पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं रहने वाला। 1990 में कश्मीर में बलात्कार के बाद स्त्रियों को आरा मशीन में काटने की घटनाएं हम भूले नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में अब हम यह और नहीं देखना , सुनना चाहते। अगर आप को अपनी छवि की चिंता है तो यह भी जान लीजिए कि देश और मनुष्यता से बड़ी कोई छवि नहीं होती। चीन में एक कहावत है कि इतने उदार भी न बनिए कि किसी को अपनी बीवी गिफ्ट कर दीजिए। तो इसी तर्ज पर कहूंगा कि अपनी उदारता में पश्चिम बंगाल को ऐसे ही मरने मत दीजिए।
साभार:दयानंद पांडेय-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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