Positive India:Delhi;14 Sept,2020
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने दो महीने पहले ई-कॉमर्स उद्योग में कार्य आरंभ किया तब से ही आयोग सामानों की पैकिंग के लिए हाथ से बने कागजों का इस्तेमाल कर रहा है, जिसका उद्देश्य केवीआईसी के हरित सिद्धान्त का अनुपालन है।
केवीआईसी हाथ से बने लिफाफा पैकेट और हाथ से ही बने कार्टन बॉक्स का इस्तेमाल सामानों की पैकिंग के लिए कर रहा है। प्लास्टिक का इस्तेमाल महज़ तरल पदार्थों की पैकिंग में किया जा रहा है ताकि परिवहन में तरल पदार्थों का लीकेज न हो। केवीआईसी फेस मास्क की सुरक्षित डिलीवरी के लिए पहले पन्नियों का प्रयोग करता था लेकिन इसके लिए भी जल्द ही केले के रेशों से बने विशिष्ट लिफाफों का प्रयोग शुरू करेगा।
माना जा रहा है कि खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने यह कदम राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के उस निर्देश को ध्यान में रखते हुए उठाया है जिसके अंतर्गत ई-कॉमर्स कंपनियों को वस्तुओं की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले अत्यधिक प्लास्टिक का उपयोग कम करने को कहा गया है, ताकि पर्यावरण के लिए पैदा हो रहे खतरे को कम किया जा सके। अधिकरण ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अत्यधिक प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए थे।हाथ से बने कागज के थैलों और कार्टन बॉक्सों का इस्तेमाल कर केवीआईसी एक साथ दो उद्देश्यों पूरे कर रहा है, पहला पर्यावरण संरक्षण और दूसरा रोजगार सृजन। केवीआईसी इन पैकिंग मैटेरियलों का उत्पादन अपने जयपुर स्थित कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट में कर रहा है जो अतिरिक्त रोजगार सृजन कर रहा है।
केवीआईसी के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि खादी के कपड़े दुनिया में सबसे अधिक इको फ्रेंडली माने जाते हैं और पर्यावरण संरक्षण केवीआईसी की किसी भी गतिविधि में सर्वोपरि होता है।
एनजीटी के निर्देश से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए श्री सक्सेना ने कहा कि खादी के उत्पाद प्राकृतिक होते हैं, इन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए हाथ से बने कागज के पैकेट का इस्तेमाल करना सबसे अधिक पर्यावरण सजगता का तरीका है। उल्लेखनीय है कि कागज की पैकिंग से किसी भी सामान का वजन प्लास्टिक पैकिंग की तुलना में बढ़ जाता है जिससे इसे ग्राहक तक पहुंचाने की केवीआईसी की लागत बढ़ जाती है। इस लागत को केवीआईसी वहन करता है यह सुनिश्चित करने के लिए कि इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।