Positive India:Rajesh Jain Rahi:
नो रिप्लाई
न जाने किसने लिखा है- ‘मौनं स्वीकृति लक्षणं’
स्टाफ के काम पर आने में देर होने पर मैंने फोन लगाया, फोन नो रिप्लाई हो गया।
नो रिप्लाई में सभी विकल्प खुले रहते हैं- मैं फोन चार्ज में लगा कर कहीं गया था, मैं सो रहा था, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, फोन साइलेंट में था। फोन अटेंड होते ही सभी विकल्प समाप्त हो जाते हैं।
नो रिप्लाई के ऊपर और भी गहन शोध हो सकता है।
मैंने खुद को राज्य अलंकरण से अलंकृत करने के लिए आवेदन लगाए, जवाब नहीं आया। सरकार मौन रही, मैं इसे सरकार की स्वीकृति मानकर बैठा था। लेकिन जब लिस्ट में नाम नहीं दिखा तो मैं सोच में पड़ गया। मौनं स्वीकृति लक्षणम् का क्या हुआ ?
प्रेम पत्रों का भी यही हश्र हुआ हम हर नो रिप्लाई को हाँ समझते रहे। हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री तो हमेशा मौन रहते थे। 10 साल निकाल दिए उन्होंने मौन रहकर। घर-गृहस्थी में पति का मौन रहना अच्छा रहता है, मगर राजनीति में भी मौन के फायदे हैं यह उन्होंने साबित कर दिया।
दुष्यंत जी ने कहा है-
पक्ष औ’ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है।
यानी बोलना तभी जरूरी है जब अपना कोई नुकसान हो रहा हो या फायदा हो। वरना नो रिप्लाई ठीक है।
बोलने से जीभ के घिसने का खतरा है। घुटनों के घिसने पर ये बदली हो सकते हैं, जीभ का बदलना संभव नहीं।
दरअसल हमने भीष्म पितामह से मौन रहना सीखा है, बेशक महाभारत होती हो तो हो।
… राजेश जैन ‘राही’-(ये लेखक के अपने विचार है)