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जब तक सरकार नहीं चाहती है तब तक सरकारी उपक्रम घाटे में नहीं जा सकते ।

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
बरेली में तब एयरटेल नया नया शुरू हुआ था । मैंने एयरटेल कनेक्शन लेना चाहा और पता किया कि क्या यह आस पास के शहरों जैसे पीलीभीत बदायूँ आदि में काम करेगा । पता लगा केवल बरेली शहर में काम करेगा । बीएसएनएल उस समय गाँव देहात में भी काम करता था । धीरे-धीरे सरकार ने बीएसएनएल के हाथ पकड़ कर प्राइवेट सेक्टर से उसकी पिटाई शुरू करवा दी । जब प्राइवेट कंपनियाँ थ्री जी चला रही थीं तब बीएसएनएल टूजी पर टिका हुआ था ।

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अभी पिछले साल मैं बीएसएनएल का फ़ोर जी कनेक्शन लेने गया तो बीएसएनएल के कर्मचारी ने बताया कि जब तक प्राइवेट कंपनियों को फ़ाइव जी नहीं मिल जाता तब तक बीएसएनएल को फ़ोर जी नहीं मिलेगा ।

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वर्षों पहले जब प्राइवेट एयरलाइंस को अनुमति दी गई तो पहला रूट दिल्ली आगरा खजुराहो वाराणसी काठमांडू रूट दिया गया जो इंडियन एयरलाइंस का सबसे अधिक मुनाफ़ा कमाने वाला रूट था । धीरे-धीरे सरकारी विमानन कंपनियों का सारा मुनाफ़ा प्राइवेट प्लेयर्स के हित में क़ुर्बान कर दिया गया । कभी सरकार ने टाटा एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण किया था और आख़िर एयर इंडिया उसी को वापस कर दी ।

निजीकरण के अपने फ़ायदे हो सकते हैं लेकिन जनहित में सरकार को आवश्यक क्षेत्रों में बने रहना चाहिए । प्राइवेट कंपनी केवल मुनाफ़े के लिए काम करती हैं । बालासोर ट्रेन एक्सीडेंट के बाद दिल्ली से भुवनेश्वर की फ़्लाइट का किराया छप्पन हज़ार तक पहुँच गया जितने में आराम से दुबई होकर लौटा जा सकता है ।

ख़ुशी की बात है कि सरकार ने बीएसएनएल को ९० हज़ार करोड़ का पैकेज दिया है । वजह यह भी है कि सरकार की महत्वाकांक्षी ग्रामीण योजनाएँ प्राइवेट सेक्टर कभी पूरी नहीं कर सकता । बीएसएनएल का अंडमान निकोबार तक फैला हुआ इन्फ़्रास्ट्रक्चर सरकार को बहुत कुछ कमा कर भी दे सकता था और शायद वह भारत की एक और नवरत्न कंपनी बन सकती थी ।

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साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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