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राक्षसी इरादों और खूनी साज़िशों का आईना है लखीमपुर का हत्याकांड।

सतीश चंद्र मिश्रा की कलम से लखीमपुर की बर्बर हत्याकांड का विश्लेषण।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
राजनीति की बिसात पर लाशों की शतरंज खेल रहे नरपिशाचों के राक्षसी इरादों और खूनी साज़िशों का आईना है लखीमपुर का हत्याकांड।
कल उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में हुए बर्बर हत्याकांड के दर्जनों वीडियो सोशलमीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। उन वीडियो में नजर आ रहे हत्यारों, उनके साथी संरक्षक सरगनाओं को किसान तथा उस हत्याकांड को तथाकथित किसान आंदोलन बता रहे न्यूजचैनल पूरे देश की आंखों में केवल धूल ही नहीं झोंक रहे हैं, बल्कि देश विशेषकर उत्तरप्रदेश को अराजकता की आग में झोंक देने की साज़िश का हिस्सा जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे बन गए हैं।
खालिस्तान का झंडा, सीने पर देश के इतिहास के सबसे कुख्यात जल्लाद हत्यारे आतंकवादी भिंडरावाले की फोटो वाली शर्ट के साथ हाथों में बल्लम, तलवार, ईंट पत्थर लेकर कौन से किसान कैसा शांति प्रदर्शन कर रहे थे.? इस सवाल का जवाब ना न्यूजचैनल दे रहे हैं, ना ही वो नरपिशाच दे रहे हैं जो लखीमपुर जाकर अपनी राजनीति की बिसात पर लाशों की शतरंज खेलना चाह रहे हैं।
एक अत्यन्त साधारण और सहज सवाल का उत्तर आप स्वंय खोजिए और विचार कीजिए कि क्या देश का गृहराज्य मंत्री अपनी कार में अपने बेटे को भेजकर सैकड़ों की भीड़ को उस कार से रौंद देने के लिए उस दिन भेज देगा जिस दिन अपने गांव में अपने पिता की स्मृति में वह खेलोत्सव का आयोजन कर रहा हो, उस खेलोत्सव में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि बना कर आमंत्रित किया हो.?
लखीमपुर की घटना की सघन गहन जांच प्रारंभ हो चुकी है। हत्याकांड के दोषी अपराधी दर्जनों संदिग्ध पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं। सच बहुत जल्दी सामने भी आ जाएगा। न्यूजचैनल जो सच नहीं बता रहे हैं, देश से छुपा रहे हैं, वह सच भी सामने आएगा।
यह सर्वज्ञात तथ्य है कि गणतंत्र दिवस पर देश की एकता अखंडता संप्रभुता के प्रतीक लालकिले पर खालिस्तानी गुंडों लफ़ंगों द्वारा किए गए देशद्रोह के कुकर्म के साथ ही यह स्पष्ट हो चुका है कि किसानों की नकाब पहनकर देशद्रोही गुंडे देश में आग लगाने का कैसा घिनौना खेल खेल रहे हैं। नई पीढ़ी को सम्भवतः ज्ञात नहीं है। 1980 में शत प्रतिशत कांग्रेसी कृपा से पैदा हुआ भिंडरावाले नाम का आतंकी यमदूत और उसकी हिंसक हत्यारी मुहिम से पंजाब जब 15 सालों तक धू धू कर के जल रहा था। उसी दौरान पंजाब के अलावा उस भिंडरावाले के आतंकी गुर्गों की दूसरी सबसे बड़ी और सुरक्षित पनाहगाह उत्तरप्रदेश के तराई इलाके के लखीमपुर और पीलीभीत जिले के कुछ सिख बाहुल्य गांवों के बड़े बड़े “झाले” (फार्महाउस) भी थे। उस दौरान उन आतंकी गुर्गों के भय और आतंक के कारण इन जिलों से गुजरने वाले राजमार्ग और मुख्यमार्गों पर सूर्यास्त के साथ ही सन्नाटा पसर जाता था। 80 और 90 के दशक में इस क्षेत्र की कुछ यात्राओं के दौरान उस सन्नाटे की दहशत और आतंक का गवाह मैं स्वंय रहा हूं। पंजाब में खत्म हुई आतंक की आग के बाद भी तराई के इन जिलों से खालिस्तानी गुंडों के सम्पर्कों संबंधों के समाचार यदाकदा सामने आते रहे हैं। पड़ोसी देश नेपाल में पाकिस्तानी आईएसआई के सबसे मजबूत गढ़ नेपाल के कैलाली और कंचनपुर जनपद की सीमाओं से जुड़ी हुई लखीमपुर जनपद की सीमा के कारण खालिस्तानी गुंडों के लिए यह इलाका बहुत सुरक्षित और सुविजनक सिद्ध होता रहा है। कल जिस तिकुनिया इलाके में निर्दोष ग्रामीणों के खून से होली खेली है। वह तिकुनिया इलाका नेपाल की सीमा से बिल्कुल सटा हुआ है। आईएसआई पोषित “सेक्युलर” समुदाय के सदस्यों की संख्या भी इस इलाके में अच्छी खासी है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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