

Positive India: Dayanand Pandey:
नाम का नाम , दाम का दाम ! पता चला है कि इन्हीं दो-चार दिन में कुणाल कामरा को सहानुभूति में दो करोड़ रुपए की क्राऊड फंडिंग मिल गई है। यू ट्यूब की कमाई अलग है। जो लोग नहीं जानते थे कुणाल कामरा को , वह भी जानने लगे। मैं भी नहीं जानता था। जान गया। फ़िल्मी गानों की पैरोडी में गाली ठूंस कर गाता है कुणाल कामरा मोदी और मोदी से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़। गाली – गलौज कब से कॉमेडी हो गई ? अगर हो गई है तो मोदी राज की यह नई उपलब्धि है।
राहुल गांधी जो बात अपने भाषणों में बोलते हैं , वही बात कुणाल कामरा अपने पैरोडी गानों में गाली भर कर , कॉमेडी बता कर गाता है। राठी , रवीश कुमार , प्रसून , अजित अंजुम अपने यू ट्यूब में बोलते हैं। वह गाता है , यह बोलते हैं। वह अपने को कलाकार बताता है , यह अपने को पत्रकार बताते हैं। राहुल के लोग , इंडी गठबंधन के लोग मज़े लेते हैं। मोदी के लोग कुढ़ते रहते हैं। पर मारपीट , तोड़फोड़ नहीं। राजनीतिक दलाली करने वाले कुछ लेखक भी यही सब करते हैं जो कुणाल कामरा करता है। वह एक मंचीय कवि संपत सरल भी इसी बीमारी से ग्रस्त हो कर अपने को महाकवि मानता है। आजकल लगता है उस की दुकान ठंडी हो गई है। दिख नहीं रहा। नफ़रत और घृणा की उस की दुकान भी एक समय ख़ूब चलती थी।
नफ़रत और घृणा से भरी हुई दुकान है इन सब की भी। पर चलती हुई दुकान है। कुछ इस तरह समझिए कि राठी , रवीश कुमार , प्रसून , अजित अंजुम आदि की दुकान का एक्सटेंशन है कुणाल कामरा। राहुल गांधी का चंपू। पर अब की वह उद्धव ठाकरे का चंपू बन कर शिंदे के शिकार पर लग गया। फंस गया।
क्या है कि आप ट्रंप के ख़िलाफ़ , मोदी , शी जिनपिंग या पुतिन के ख़िलाफ़ कुछ भी लिख या बोल दें , कोई नोटिस नहीं लेता। लेकिन किसी लोकल गुंडे या नेता के ख़िलाफ़ कुछ बोल या लिख दें , उन के लोग आप की नोटिस ले लेते हैं। कुटाई कर देते हैं। तोड़ – फोड़ कर देते हैं। किसी विशेष जाति या विशेष धर्म के साथ भी यही है। हिंदू देवी , देवता के ख़िलाफ़ लोग रोज ही बोलते या लिखते रहते हैं। कौन पूछता है ?
कोई नहीं पूछता। इसी लिए ज़्यादातर कलाकार , पत्रकार लोकल लोगों के ख़िलाफ़ नहीं लिखते , बोलते या गाते। सौ बात की एक बात आप राहुल गांधी को अगर नेता मानते हैं तो कुणाल कामरा कलाकार है। नेता नहीं मानते तो यह कलाकार नहीं है।
वैसे कोई पता कर सके तो ज़रूर कर के बताए कि जब कंगना रानावत का घर या कार्यालय जो भी था उद्धव ठाकरे ने गिरवाया था और संजय राऊत ने सामना में छापा था कि उखाड़ दिया ! तो कंगना रानावत को भी कुछ क्राऊड मिली थी क्या ? मुझे तो नहीं याद आता। हां , भाजपा का टिकट मिला और वह सांसद हो गई। अभिनेत्री भी वह शानदार है। पर कुणाल कामरा तो बहुत बेहूदा है। कलाकार तो हरगिज नहीं।
हां , इस बीच कुछ पुरानी क्लिपिंग्स भी देखने को मिलीं जो राजनीतिक दलाली करने वाले कुछ लेखकों और पत्रकारों ने दिखाईं कि यह देखिए कि तब तो नेता , नाराज नहीं होते थे। जैसे लालू की मिमिक्री वाली। एक तो सोनिया और मनमोहन सिंह की भी। कि कैसे सोनिया मनमोहन को कठपुतली , पिट्ठू और चमचा बनाए हुई थीं। मारे उत्साह में यह राजनीतिक दल्ले नहीं समझ पाए कि अपनी ही पोल खोले जा रहे हैं। यह राजनीतिक दलाल भूल गए कि कैसे कार्टूनिस्टों और पत्रकारों को कांग्रेस राज में जेल भेजा गया। हत्या हुई। इधर मुलायम , अखिलेश , लालू राज में पत्रकारों की हत्या भी यह लोग भूल गए।
अच्छा , मिमिक्री कलाकार क्या तब , क्या अब गाली – गलौज करते हैं। जो कुणाल कामरा टाइप लोग करने लगे हैं। राठी , रवीश , प्रसून , अभिसार , अंजुम आदि-इत्यादि भी विक्टिम कार्ड खेलते हुए बस मां-बहन नहीं उच्चारते पर देते तो गाली ही हैं। मंशा और फ़ितरत तो वही है। यह नई पत्रकारिता और नई कॉमेडी का दौर है ! ख़ुमार बाराबंकवी याद आते हैं :
चरागों के बदले मकां जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रोशनी है।
इस लिए भी कि इस नए ज़माने ने हमें बता दिया है कि राणा सांगा गद्दार है और औरंगज़ेब एक नायाब बादशाह !
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)