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नेताजी एक मात्र ऐसे शख्सियत हुए जिन्होंने अपने जीवन के साथ-साथ अपना मृत्यु भी बलिदान कर दिया।

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
देश में ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। नेताजी एक मात्र ऐसे शख्सियत हुए जिन्होंने अपने जीवन के साथ-साथ अपना मृत्यु भी बलिदान कर दिया। आज कोई दावे से उनके मृत्यु की तिथि नहीं बता सकता। नेताजी आज जीवित नहीं हैं ऐसा भी कोई प्रमाण से नहीं कह सकता। अंदाजा लगा सकता है कि 125 साल हुए तो निश्चित ही अब जीवित नहीं रहे होंगे।

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उनके मृत्यु की प्रत्याशा में कई थ्योरिज चलती हैं। पर कोई भी थ्योरी दोषमुक्त नहीं है। थ्योरी चाहे जापान में प्लेन क्रैश की हो, ग्रुप में जेल की हो अथवा गुमनामी बाबा के किरदार की हो, सबकी अपनी अपनी सीमाएं हैं। पर सच तो यही है कि एक आम राष्ट्रभक्त के हृदय में सुभाष चंद्र बोस सदा अमर होकर विराजमान रहेंगे।

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नेताजी के व्यक्तित्व की आभा में वे सभी नेता बौने हो जाते हैं जिन्हें अंग्रेजी उपकरणों के सहारे एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर मैन्युफैक्चर किया गया। इसी कारण नेताजी के साथ तीस के दशक से ही अन्याय होना शुरू हो गया था। तब उन्होंने भारत की भूमि का बिना उपयोग किए आजादी की लड़ाई लड़ने की ठानी और कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद जर्मनी में 1941 में इंडियन लीग की स्थापना की। साल भर बाद जर्मनी से जापान आए और वहीं से रेडियो पर अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा। वहीं सिंगापुर के टाउन हॉल से “दिल्ली चलो” का नारा दिया।

इधर हमारे देश के नकली नेता लोग सविनय अवज्ञा आंदोलन ठप करके सात-आठ बरस से बैठे हुए थे और सुभाष चंद्र बोस के हुंकार का अंदाजा लगने पर रातो-रात मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा कर दी। फिर कुछ घंटों के अंदर अंदर कांग्रेस का पूरा नेतृत्व अंग्रेजों के फाइव स्टार पैलेस में नजरबंद हो गए। गांधी जी को पूणे के साढ़े 6 हेक्टेयर में फैले हुए आगा खां पैलेस में नजरबंद किये गये। डेढ़-दो साल बाद छूट गये। लेकिन नेताजी के आजाद हिंद फौज के तीन बिग्रेडों ने स्वतंत्रता अभियान को एक मुकाम तक पहुंचा दिया।

नेताजी को भारत की जनता की ओर से अपार जनसमर्थन मिल रहा था। लेकिन कांग्रेसियों ने बजाए साथ देने के, एक मोर्चे के बिग्रेड से सौदा कर लिया। वह मोर्चा हार गई। बाद में उन बिग्रेडियर को कांग्रेस सरकार में मंत्री बना दिया गया और नेताजी के प्रमाण को सदा के लिए दफन कर दिया गया।

किंतु वही अपार जनसमर्थन आज एक बार फिर भारत के जनमानस में देखने को मिल रही है। जैसे लग रहा है नेताजी की कभी मरे नहीं तो आज भी जीवित ही हैं। उनकी 125 वी जन्म जयंती पर उनको मेरा शत-शत नमन।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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