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न वह संसद की मानेंगे न सुप्रीम कोर्ट की

जनादेश को धता बताने की मंशा निरंतर सब के सामने है।

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Positive India:Dayanand Pandey:
न वह संसद की मानेंगे, न सुप्रीम कोर्ट की। तो कृषि क़ानून को मारीच के रूप में पेश करने से बेहतर है कि किसान आंदोलन के नेताओं को साफ़ ऐलान कर देना चाहिए कि उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार की बलि से कम कुछ भी मंज़ूर नहीं है। बीते 6 बरस से सारे विरोध, सारे आंदोलन का मकसद तो यही है विघ्नसंतोषी लोगों का। जनादेश को धता बताने की मंशा निरंतर सब के सामने है। जनता का दिल नहीं जीत सकते। जनता का मत नहीं पा सकते। तो क्या जनता को भ्रमित तो कर ही सकते हैं। मारीच का छल कपट दिखा कर जनादेश का अपहरण करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं। किसान नेता कह रहे हैं कि वह तो 26 जनवरी के दिन दिल्ली के राजपथ पर टैंक के साथ-साथ ट्रैक्टर भी दौड़ाएंगे। एक तरफ टैंक, एक तरफ ट्रैक्टर। मकसद साफ़ है कि सरकार ऐसा होने नहीं देगी। पर इसी बहाने अराजकता , हिंसा और तनाव का तंबू तो तनेगा। तुलसीदास ने सुंदर काण्ड में लिखा ही है :

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बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥

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उन्हों ने आगे लिखा है :

* लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥

अब समय इसी पर अमल करने का है। इन कुटिल लोगों के साथ सदाशयता और विनय की सरहदें बहुत सर्द हो चुकी हैं।
साभार:दयानंद पान्डे(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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