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नक्सल समस्या और अबूझमाड़

- राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
आज अगर आप के घर के नीचे सोने की खदान निकल आये तो निश्चित रूप से आप खानाबदोश हो जायेंगे । देश की खनिज संपदा पर सरकार का हक़ है और अंग्रेज़ों के ज़माने से हैं । सदियों से रहने वाले आदिवासियों का उस खनिज संपदा वन उपज पर कोई अधिकार नहीं है । शिकार पर पाबंदी है ।
बुंदेलखंड की खनिज संपदा , मौरंग, बालू पत्थर से खनन माफिया मालामाल हो रहा है । सरकार भी करोड़ों रुपये रॉयल्टी पा रही है । मगर बुंदेलखंड का निवासी उस संपदा के लाभांश से वंचित है । उत्तराखंड और तराई की वन संपदा के दोहन के लिये अंग्रेज़ों ने काठगोदाम, गौरीफंटा जैसे सुदूर अंचलों तक रेल बिछाई । अपार वन संपदा ढो ले गये मगर स्थानीय थारू बोक्सा जनजातियाँ आज भी जस की तस हैं ।

बस्तर की बैलाडीला खान से लौह अयस्क और वन उपज की ढुलाई के लिये कभी अंग्रेज़ों ने उड़ीसा से ट्रॉम चलवाई थी जिसे जंगल की रेल कहते थे । द्वितीय विश्व युद्ध में तेल की ढुलाई के लिये अंग्रेज॒ पटरी डिब्बा उखाड़ कर बग़दाद ले गये । दंतेवाड़ा, सुकमा से संलग्न क्षेत्र अबूझमाड़ कहलाता है । यहाँ के आदिवासी उनके घोटुल , विचित्र परंपरायें सदा से एंथ्रॉपॉलॉजी की अध्येताओं के लिये कौतूहल और अध्ययन का विषय रहे हैं ।
बस्तर एक समय अकेला केरल राज्य से भी बड़ा जिला था । अपनी जैव एवम् वानस्पतिक विशेषताओं के लिये यहाँ के जंगल विख्यात रहे हैं । आजादी के बाद यहाँ की खनन संपदा का अंधाधुंध दोहन हुआ । लौह अयस्क निर्यात के लिये जापान से क़रार हुआ । भिलाई स्टील प्लांट भी यहीं से कच्चा माल पाता है ।

इतनी संपन्न और सोना उगलने वाली धरती का निवासी जब दरिद्रता के चरम पर होता है तो हिंसक राजनैतिक विचारधाराओं के सहज निशाने पर आ जाता है । नक्सलवाद के प्रसार के लिये वहाँ आदर्श परिस्थितियों मौजूद हैं । विभिन्न सरकारों ने यहाँ के निवासियों के जीवन स्तर को सुधारने की कोशिश नहीं की ।

कुवैत के नागरिकों को अनायास ही सरकार की तरफ से यदा कदा खनिज तेल की रॉयल्टी के चेक मिलते रहते हैं। आजादी के बाद वनवासियों और भूमिहीन किसानों की दशा एक सी थी । किसानों को तो भूमि का मालिक बना दिया गया किंतु वनवासियों के जंगल पर अधिकार और कम हो गये । शिकार पर प्रतिबंध लग गया । वनोपज सरकार की हो गई , जमीन खनन कंपनियों के कब्जे में चली गई। आदिवासियों में शिक्षा के प्रति रुचि नहीं रही ।

नक्सलियों ने इन परिस्थितियों का खूब लाभ उठाया । जे एन यू ने उन्हें सैद्धांतिक समर्थन दिया और दुश्मनों ने हथियार ।

इन सबके बावजूद हम अपनी जनता का दिल तो जीत सकते थे । हमें अपने मूलनिवासियों को खनन संपदा की रॉयल्टी देने के बारे में गंभीर विचार करना चाहिये । आय का एक बड़ा हिस्सा केवल उनका जीवन स्तर सुधारने पर लगाना चाहिय् । ये शबरी पुत्र रामायण काल से वहीं रह रहे हैं । आखिर उनका भी स्वराज्य पर हक़ बनता है ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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