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नवीन जिन्दल ने खनन की शुल्क दरें तार्किक बनाने की मांग की

खनिज पदार्थों के खनन पर 60-65 फीसदी तक कर और शुल्कों का बोझ।

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Positive India:17 Nov 2020:
जेएसपीएल के नवीन जिन्दल ने विश्व बाजार में जगह बनाने के लिए खनन की कर-शुल्क दरो को तार्किक बनाने की मांग की है।

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कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार के बाद देश को आर्थिक पटरी पर वापस लाने के लिए सरकार के प्रयासों के बीच जाने-माने उद्योगपति और जिन्दल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के चेयरमैन नवीन जिन्दल ने सुझाव दिया है कि खनन पर कर की दरों को तार्किक बनाया जाए तो भारतीय उद्योग विश्व बाजार में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लेंगे। कर की अधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जाते हैं, जिस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।

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नवीन जिन्दल ब्रिटेन से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अखबार “फाइनेंशियल टाइम्स” के ग्लोबल बोर्ड रूम सत्र में “भारतः देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए क्या सरकार जरूरी मूलभूत सुधार कर सकती है” विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी तरफ से उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय कर रही है और उसने अनेक प्रोत्साहन योजनाएं भी दी हैं लेकिन खनिज पदार्थों के खनन पर कर की अत्यधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय व्यवसायी मेहनती और लगनशील हैं। देश में व्यावसायिक जोखिम उठाने वालों की कमी नहीं है। हमारी प्रतिभाएं विश्व व्यवसाय में बड़ा नाम कर रही हैं लेकिन कुछ बुनियादी समस्याएं दूर हो जाएं तो कोई शक नहीं कि भारत पूरी दुनिया के बड़े उत्पादन हब के रूप में स्थापित हो जाएगा।

नवीन जिन्दल ने कहा कि कर की दरों को तार्किक बनाने के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण कानून को उद्योगों के अनुकूल बनाना होगा और देश में सकारात्मक व्यावसायिक वातावरण तैयार करना होगा ताकि लोग बढ़-चढ़कर निवेश करें जिससे रोजगार के साथ-साथ देश में संपन्नता भी आएगी। नवीन जिन्दल ने व्यावसायिक कोयला खनन के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे देश के विकास को पंख लगेंगे और ऊर्जा क्षेत्र में नए आयाम जुड़ेंगे। भारत में बिजली की औसत खपत प्रति व्यक्ति लगभग 1000 यूनिट है जबकि अमेरिका में 20 हजार और यूरोप में 18 हजार यूनिट है। स्टील के बारे में उन्होंने कहा कि चीन प्रतिवर्ष लगभग 1000 मिलियन टन स्टील उत्पादन करता है जो भारत में मात्र 110 मिलियन टन है इसलिए हमारे देश में विकास की बहुत संभावनाएं हैं।

एक नजर अन्य देशों में खनन पर कर की दरें:

मंगोलिया – 31.3 फीसदी

कनाडा-क्यूबेक – 34 फीसदी

चिली – 37.6 फीसदी

इंडोनेशिया-सुलावेसी -38.1 फीसदी

ऑस्ट्रेलिया -39.7 फीसदी

दक्षिण अफ्रीका – 39.7 फीसदी

नामीबिया – 44.2 फीसदी

लौह अयस्क पर रॉयल्टी

भारत – 15 फीसदी

ऑस्ट्रेलिया – 5.35 से 7.5 फीसदी

ब्राजील – 2 फीसदी

चीन – 0.5 से 4 फीसदी

इस सत्र में योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि अल्पकालिक आर्थिक स्लोडाउन को कैसे नियंत्रित करें। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 3.1 फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में नकारात्मक रुख के साथ 23.9 फीसदी तक सिकुड़ गई। हालांकि तीसरी तिमाही में यह सिकुड़न कम होकर नकारात्मक 8.4 फीसदी रही लेकिन उम्मीद है कि चौथी तिमाही में यह रुख सकारात्मक हो जाएगा। आज रोजगार और अन्य आर्थिक पहलुओं को देखते हुए हमारी आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से ऊपर होनी चाहिए जिसके लिए बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा, निवेश का स्तर बेहतर बनाना होगा। पिछले 2 साल से निवेश की स्थिति नाजुक है जिसका सीधा असर उत्पादन और रोजगार के अवसरों पर पड़ रहा है। पर्यटन, रियल इस्टेट और खुदरा व्यापार को प्राथमिकता देनी होगी। हालांकि उन्होंने रिजर्व बैंक के प्रयासों की सराहना की।

इस अवसर पर फोर्ब्स मार्शल के को-चेयरमैन नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि हमारे देश की आबादी करीब 140 करोड़ है इसलिए एक व्यापक बाजार हमारे पास है। ऐसे में तमाम सुधारों पर सभी सरकारों को साथ मिलकर काम करना होगा तभी देश की अर्थव्यवस्था जल्द ही पटरी पर वापस आ पाएगी। मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रबंध निदेशक अमीरा शाह ने इस अवसर पर कोविड-19 नियंत्रण के उपायों पर प्रकाश डाला।

गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द पटरी पर लाने और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ बाजार में उचित दर पर सामान उपलब्ध कराने के लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की) ने नीति आयोग को एक सुझाव दिया है जिसमें खनन पर अधिक कर एवं शुल्क दरों को तार्किक बनाने के लिए जीएसटी की तर्ज पर “एकल कर व्यवस्था” लागू करने के लिए कहा गया है। फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक अभी खनन पर 60-64 फीसदी कर व शुल्क वसूले जा रहे हैं, जिसकी सीमा अधिकतम 40 फीसदी होनी चाहिए। उसने रॉयल्टी की दरों को भी तार्किक बनाने का सुझाव दिया है।

फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक एमएमआरडी एक्ट-2015 लागू होने से पहले आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 30 फीसदी डीएमएफ में देना अनिवार्य है जबकि इस कानून के लागू होने के बाद आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 10 फीसदी डीएमएफ में देना पड़ता है। इसी तरह एनएमईटी को भी रॉयल्टी का 2 फीसदी शुल्क देना होता है। उसने यह सुझाव भी दिया है कि रॉयल्टी लौह अयस्क के ग्रेड के हिसाब से तय हो न कि सर्वोत्तम श्रेणी के हिसाब से समान दर निर्धारित की जाए। निम्न श्रेणी के लौह अयस्क के बेनीफिशिएशन पर राहत मिले और रॉयल्टी औसत बिक्री मूल्य का 5 फीसदी से अधिक न हो। सरकार इनोवेटिव लॉजिस्टिक सिस्टम से बेनीफिशिएशन करने वाली कंपनियों को 2.5 फीसदी रॉयल्टी का प्रोत्साहन दे तो निम्न श्रेणी के लौह अयस्क की खपत भी बढ़ेगी जिससे हमारे राष्ट्रीय संसाधन का समुचित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा।

उपरोक्त करों व शुल्कों के अलावा अलग-अलग राज्यों के भी सेश हैं। छत्तीसगढ़ में प्रति टन 11 रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर व 11 रुपये पर्यावरण शुल्क देय है एवं घने जंगलों में खदान होने पर 7 रुपये प्रति टन वन शुल्क की अदायगी करनी पड़ती है।

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