आफताब द्वारा श्रद्धा की हत्या एक मजहबी अपराध है। इसी का नाम जिहाद है।
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
कुछ लोग हैं जो फिर भी कहते हैं कि श्रद्धा(Shraddha) का कत्ल बस एक अपराध है। उनसे सीधा सवाल पूछिए, सानिया मिर्जा तो वापस जीवित आ जाती है, श्रद्धा जीवित क्यों नहीं आती? अगर आफताब को श्रद्धा स्वीकार नहीं थी, तो वह उसे जीवित वापस आने देता। कभी तो ऐसी खबर ना देखी गई, जब कोई फातिमा, कोई जोया, कोई मरियम फ्रीज में स्टोर की गई हो अथवा सूटकेस में ही पैक हुई हो। ऐसे मामलों में शिकार हमेशा कोई श्रद्धा, कोई प्रीति ही क्यों होती है?
ऐसा कौन सा मजहबी पाप आफताब(Aftab) करता है कि वह अपने कारनामे मजहब से बाहर नहीं जाने देता? निश्चित तौर पर मजहब के फरमान में ऐसा कोई क्रूर असामाजिक किंतु मजहबी पाप आफताब करता है, जिसकी जानकारी वह मजहब के दायरे से बाहर नहीं जाने देना चाहता। इस प्रश्न का उत्तर ज्यादा मुश्किल नहीं है। कुछ दिन पहले मैं किसी पोस्ट में संकेत भी किया था, मुश्किल है इस उत्तर को मुख्यधारा विमर्श में स्थापित करना। और यही विमर्श ‘मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है’ का उत्तर बनेगा।
झगड़े किसके नहीं होते? लिव इन रिलेशनशिप वाले मामलों में शादी के लिए दवाब कौन नहीं बनाता? लेकिन इसका अंजाम कत्ल तो नहीं होता है न? इसलिए जहां पूरी मुख्यधारा मीडिया ‘कत्ल का वजह’ शादी के लिए दबाव को बना रहा है, वहीं सामाजिक मीडिया इस दायित्व को निभाये कि कत्ल के असल वजह को विमर्श में स्थापित करे। स्थापित करे कि यह अपराध सामाजिक अपराध नहीं है, बल्कि एक मजहबी अपराध है। जिहाद है। इसी का नाम जिहाद है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)