पॉजिटिव इंडिया: लेखक :राजेश अभय
सुन्दरियों के गले का हार बनने वाले मोती कैंसर जैसे घातक रोग के उपचार में भी बहुत कारगर साबित हो सकते हैं। शोध में पाया गया है कि शरीर में जिंक :जस्ता: की मौजूदगी कैंसर वाले टिश्यू के प्रसार को रोकती है। ये बात भी सामने आयी है कुछ खास मोतियों में जिंक जैविक रूप से उपलब्ध है जो मानव शरीर आसानी से स्वीकार कर सकता है और कैंसर से लड़ने में बहुत कारगर साबित हो सकता है।
अंडमान निकोबार स्थित प्रसिद्ध पर्ल एक्वाकल्चर वैग्यानिक डा. अजय सोनकर का मानना है कि जानलेवा रोग कैंसर के उपचार में मोती की अहम भूमिका हो सकती है। उन्होंने बताया, ै सीपों की विशेष प्रजाति से प्रयोगशाला में नियंत्रित वातावरण में ऐसे मोतियों का संवर्धन किया गया है जिसमें अनेक माइक्रोन्युट्रिएन्र्ट्सं :सूक्ष्म पोषक तत्व: मौजूद हैं जिसकी मानव शरीर में मौजूदगी कैंसर जैसी व्याधि से बचा सकती है । इन माइक्रोन्युट्रिएन्र्ट्सं की अनुपस्थिति कैन्सरस ट्यूमरों को सीधा न्यौता देती है। ै ब्रिटिश जर्नल ऑप कैंसर में छपे एक लेख में कहा गया है जिंक हमारे शरीर में एन्टी.ट्यूमर की भूमिका निभाता है और कैंसर प्रभावित कोशिकाओं के विकास को रोक देता है। इस शोध में चूहों पर किये गये प्रयोग का भी हवाला दिया गया है जिसमें जिंक एक खास मात्रा के उपयोग करने पर ट्यूमरों के विकास पर प्रभावी अंकुश लगा। दिल्ली स्थित चिकित्सा संस्थान एम्स के डिपार्टमेन्ट आप मेडिसिन के एक वरिष्ठ प्राध्यापक ने कहा कि शरीर में जिंक की मौजूदगी कैंसरयुक्त कोशिकाओं के प्रसार को रोकने में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि वर्षो से मोतियों का इस्तेमाल कुछ खास वर्ग के लोग और राजा महाराजा कई असाध्य रोगों के उपचार के लिए किया करते थे। ऐसा इस कारण भी था कि उस जमाने में आम लोगों को बहुमूल्य मोतियों की उपलब्धता नहीं होती थी। आयुर्वेद में भी अनिद्रा, यौवन कायम रखने, शकि्तवर्धक सहित कई असाध्य रोगों के उपचार के लिए मोती के चूर्ण का उपयोग सर्वविदित है। आधुनिक चिकित्सा विग्यान में इस क्षेत्र में अध्ययन और शोध के अभाव के कारण मोती में उपलब्ध सूक्षम पोषक तत्वों की शिनाख्त और उनका उपयोग नहीं किया जा सका। यहीं से डा. सोनकर को अपने मोतियों में उपलब्ध विभिन्न अवयवों के अध्ययन की अभिरचि पैदा हुई और कई महत्वपूर्ण खनिज एवं लवणों का पता लगाया। इसके बाद उन्होंने अपने मीठे पानी और खारे पानी में विकसित किये गये मोतियों का किसी सरकार की मान्यताप्राप्त संस्था से वैग्यानिक परीक्षण कराने की ठानी। सर्वप्रथम उन्होंने सीपों की विभिन्न प्रजातियों में विकसित किये गये मोतियों का अति सूक्ष्म कण :पाउडर: बनाया और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान केन्द्र केन्द्रीय मात्स्यकीय प्रौद्योगिकी संस्थार्न र्ं के बायोकेमेस्ट्रिी एन्ड न्युट्रीशन डिवीजन के पास चार सैंपल भेजकर उसकी जांच कराई जिससे इन मोतियों में उपरोक्त खनिजों और लवणों के मौजूदगी की पुष्टिि हुई। डा. सोनकर द्वारा विकसित मोती में जस्ता, तांबा, आयरन, मैगनीज, क्रोमियम, पोटैशियम आदि खनिज और धातु सूक्ष्म पोषक तत्वों के रूप में मौजूद हैं।
डा सोनकर ने बताया कि उन्होंने इन मोतियों को एक विशेष वातावरण में विकसित किया ताकि वहां प्रदूषण न हो और कोई भी अवांछित तत्व मोती का हिस्सा न बने। जैसे लेड:सीसा: जैसी जहरीला तत्व उनके द्वारा बनाये गये मोती में नदारद था। उन्होंने बताया कि मोती में केवल जिंक ही नहीं बल्कि कई ऐसे अन्य ट्रेस मेटेरियर्लं हैं जो मिलकर अनोखा प्रभाव छोड़ते हैं और इस पर आगे गहन शोध किये जाने की आवश्यता है। उनके बनाये गये मोती के पाउडर में मौजूद जिंक जैविक रूप में होने के कारण शरीर के लिए आसानी से ग्राह्य है। उन्होंने सरकार के संबंधित शोध संगठनों के साथ मिलकर शोध कार्य करने और मोती भस्म के मानव शरीर पर होने वाले प्रभावों की चिकि्तसकीय निगरानी करने की सख्त आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि चिकित्सकीय जांच हमें ऐसे नतीजों की ओर ले जा सकती है जो पूरी मानव सभ्यता के लिए एक वरदान साबित होगा।
साभार:भाषा