मुअनजोदाड़ो की खुदाई ने दुनिया के नज़रिये को हमेशा के लिए बदल दिया
-सुशोभित की कलम से-
Positive India:Sushobhit-:
1911 की सर्दियाँ!
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वेस्टर्न सर्किल के अधीक्षक श्री डी.आर. भंडारकर सिंध प्रांत में उत्खनन कर रहे थे। ईजिप्त के पिरामिडों और सुमेर के जिग्गुरातों जैसा कोई रोमांचक स्मारक उन्हें वहाँ नज़र नहीं आया। जो मिला, उसे उन्होंने मुर्दों के टीले (मुअनजोदाड़ो) की संज्ञा दी।
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने लिखा : “यहाँ किसी पुरातन सभ्यता के कोई अवशेष नहीं हैं। एक छोटा-सा क़स्बा ज़रूर बरामद हुआ है, लेकिन वह अधिक से अधिक दो सौ साल पुराना रहा होगा। उसकी आला दर्जे की ईंटें देखकर ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह हाल ही की कोई बसाहट है। अलबत्ता टेरीकोटा के शिल्प वहाँ से नहीं मिले।”
ऐसा लिखकर उन्होंने अपनी रिपोर्ट सबमिट कर दी।
पुरातत्व के इतिहास में इस रिपोर्ट को किसी पुरातत्ववेत्ता की सबसे बड़ी भूल माना जाता है!
भंडारकर के बाद पुरातत्व सर्वेक्षण का काम संभालने वाले सर जॉन मार्शल और राखालदास बनर्जी ने किंचित उपहासपूर्ण मुस्कराहट के साथ उनकी रिपोर्ट को उठाकर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होगा।
1920 के दशक तक निष्ठापूर्वक उन्होंने मुर्दों के उस टीले का उत्खनन जारी रखा। उन्हें जो मिला, उसे देखकर वे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं कर पाए।
अब अंर्स्ट मैक्के और सर मोर्टिमर व्हीलर मैदान में आए। उनके बाद बी.बी. लाल, जे.पी. जोशी, एस.आर. राव भी पहुँचे।
सभी विद्वानों ने एकमत से स्वीकारा कि मुअनजोदाड़ो की खुदाई ने हमारे नज़रिये को हमेशा के लिए बदल दिया है और अब दुनिया का इतिहास वैसा ही नहीं रहेगा, जैसा कि अब तक लिखा जाता रहा था।
उनकी आँखों के सामने दुनिया की पहली प्लान्ड सिटी थी, कोई 4500 साल पुरानी। ईजिप्त के पिरामिडों और सुमेर के जिग्गुरातों से कहीं परिष्कृत, नागरिक और काँस्ययुगीन होने के बावजूद आधुनिक।
वास्तव में श्री डी.आर. भंडारकर जब मुर्दों के टीले की ईंटों का मुआयना करने के बाद उसे महज़ 200 साल पुराना कोई क़स्बा क़रार दे रहे थे, तो वे जाने-अनजाने हड़प्पावासियों के उत्कृष्ट नगर-कौशल की सराहना ही कर रहे थे!
इतिहास का पुनर्लेखन हुआ। अतीत ने विगत में सहसा 2 हज़ार साल की छलाँग लगा दी। टाइमलाइन स्ट्रेच्ड हो गई। उसके बाद से लिखे गए भारत के हर इतिहास का पहला अध्याय सिंधु घाटी सभ्यता को समर्पित हो गया। भारत के जिस सुदूर-अतीत को ग्राम्य और आरण्यक माना जाता था, उससे भी दो सहस्राब्दी पूर्व यह एक नागरी-सभ्यता थी। अत्यन्त परिष्कृत थी। और कदाचित् अनार्य थी!
भारत मूलत: किन लोगों का देश था- हमारे वास्तविक पुरखे कौन थे- यह प्रश्न किसी प्रेतबाधा की तरह मुर्दों के टीले से उठा और सैन्धव-सारस्वत नदियों के प्राक्तन मैदान के हज़ारों किलोमीटर के दायरे में टहलने लगा!
Courtesy:Sushobhit-(The views expressed belong to the writer only)