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ममता के पश्चिम बंगाल में चिकित्सकीय खेला तो हो ही गया

24 घंटे में प्लास्टर उतारना चिकित्सा के मूलभूत सिद्धांत के खिलाफ है, पर चिकित्सा जगत में खामोशी क्यो?

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
पश्चिम बंगाल में पिछले दिनों जो राजनीतिक  घटना हुई उसका असर अब स्पष्ट दिखने लगा है।  जहां चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के घटना पर संतुष्ट नहीं है । वहीं इसका असर दूसरी तरफ़ भी दिखने लग रहा है।  हैरानी होती है कि मुख्यमंत्री के दौरे मे एंबुलेंस का न रहना, इसे लापरवाही भी नहीं कहा जा सकता।  पर जो पिछले दिनों नंदीग्राम मे हुआ, वह तो अब प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है।  जहां मुख्यमंत्री जी ने धक्के की बात की है तो इसे भी मुख्यमंत्री के सुरक्षा मे चूक माना जाना चाहिए।  नंदीग्राम से शाम होने के कारण मुख्यमंत्री जी को ग्रीन कॉरिडोर बना कर कलकत्ता ले जाया गया।  वहां मुख्यमंत्री जी ने इलाज के लिए नौ चिकित्सको का बोर्ड बनाया, पर जो इलाज के समय हुआ, वह अब अपने आप मे कई संदेह को जन्म दे रहा है ।

मुख्यमंत्री जी इलाज में ऐसे कैसे कोताही बरती जा सकती है ? आज के समय इतने चिकित्सकीय परीक्षण के बाद  इस तरह की घटनाओं ने सोचने को मजबूर कर दिया है । मुख्यमंत्री जी को लगे प्लास्टर पर चिकित्सा जगत के लोगों ने ही सवाल उठाना चालू कर दिया है ।  प्लास्टर के ऐंगल को लेकर, प्लास्टर के मोटाई को भी लेकर आम आदमी तक सोशल मीडिया में अपनी राय रखने लगे हैं ।  खैर, एक चिकित्सक के तौर-तरीकों पर भी कुछ अनुत्तरित प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक है । मुख्यमंत्री जी जैसे शख्स के इलाज का सच लोगों को जानने का पूरा अधिकार है।  आज तकनीकी समय है, इसलिए कुछ छुप नहीं सकता ।

यही चिकित्सक समुदाय है और इनके संगठन है,जो बाबा रामदेव का साथ देने वाले चिकित्सक पर टूट पड़ी थे । आखिरकार साथ देने की बात जिस चिकित्सक ने पहले की थी, उससे उन्हे हटना पड़ा । पर आज गहरी खामोशी है । इलाज मजाक बन रहा है। यह वही लोग है जिन्होंने आयुर्वेद के विशेषज्ञों को अधिकार देने पर निरंतर आंदोलन और बंदरों के हाथ में उस्तरा वाला फोटो डालकर भी अपमानित करने का दुःसाहस किया है । एक मोहतरमा ने तो ऐसे चिकित्सक से उसके होने वाले गंभीरता पर भी चिंता व्यक्त की ।

चलो मुद्दे पर ही आया जाये। जब नौ चिकित्सक सदस्यो का बोर्ड था तो फिर उन्होंने ऐसे कैसे प्लास्टर लगा दिया ?  लगाया तो दो दिन बाद कैसे खुल गया ? क्या ऐसा कर वो मरीज के साथ नाइंसाफ़ी नहीं कर रहे है ? ऐसे मे माननीय मुख्यमंत्री जी की हड्डी नहीं जुड़ेगी तो कौन जिम्मेदार होगा ?  फिर माननीय मुख्यमंत्री जी दूसरे दिन आम भाषा मे गरम पट्टी या क्रेप बैंडज मे दिखाई देना, यह बता रहा था कि प्लास्टर की आवश्यकता थी ही नहीं। याने इतने बड़े माननीय मुख्यमंत्री के इलाज मे अगर ऐसी कोताही है, तो काफी चिंता जनक स्थिति है।  या फिर इलाज की परिभाषा आदमी का पैसा, पद देखकर उनकी इच्छा से तय होता है, तो यह चिकित्सा के मूलभूत सिद्धांत के खिलाफ है । याने इसका मतलब यह हुआ कि चिकित्सा उनके सुविधा के हिसाब से तय किया जाता है । यही कारण है कि भ्रष्टाचार मे लिप्त नेताओं को जेल जाने से बचाने के लिए इसी तरह के सार्टिफिकेट उपलब्ध हो जाते है ।

कुल मिलाकर डिग्री यह तय नहीं करती कि चिकित्सक कैसा है । एक आदमी की डिग्री छोटी है या दूसरे पैथी की है पर वो इमानदार है तो इमानदारी उसे अच्छा चिकित्सक बनाती है । डिग्री बड़ी है पर इस तरह के इलाज प्रश्न तो खड़ा करेंगे ही । एक भी चिकित्सक नहीं निकला कि वो कह सके इस गोलमोल मे मैं साथ नहीं हू ? क्यों भाई?  यह बात भी सत्य है कि चिकित्सक कभी भी राजनीतिक दबाव या कोई भी दबाव सहने की स्थिति मे नही रहता। इसके कारण वो इन घटनाओं का साथी तो बन ही जाता है।

पश्चिम बंगाल में खेला कितना होगा, पता नहीं, पर चिकित्सकीय खेला तो हो ही गया ।  आज पूरी बिरादरी खामोश है। अब सब लोग भीष्म प्रतिज्ञा से बंधे हुए नजर आ रहे है ।  अब झोला छाप कहने का साहस तो नहीं होगा । बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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