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मीडिया माला बेचने वाली लड़की के पीछे तबतक पड़ी रही जबतक कि वह वापस भाग नहीं गयी

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
वे उस विरक्त आईआईटियन के पीछे तबतक पड़े रहे, जबतक कि उसका समस्त अर्जित ज्ञान नष्ट न हो गया। आप कितने भी ज्ञानी क्यों न हों, दस फुहड़ लोगों के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ जाय तो आप उल्टा पुल्टा बोलने लगेंगे। वह लड़का कोई सिद्ध महात्मा नहीं था, कुछ वर्ष पूर्व दीक्षित हुआ युवा साधु था। सम्भव था कि लम्बे समय तक संतों की संगत में रह कर कुछ ज्ञान अर्जित कर पाता, लेकिन इसी बीच उसके पीछे यह असभ्य भीड़ लग गयी और अपनी ओर से उसका लगभग नाश कर दिया।

वे उस माला बेचने वाली लड़की के पीछे तबतक पड़े रहे जबतक कि वह वापस भाग नहीं गयी। वे उसे दौड़ाते रहे। वह दौड़ दौड़ कर भागने लगी तो पीछे से गालियां देने लगे। “मोनालिसा का असली रूप आया सामने, मीडिया को देख कर क्यों भागी मोनालिसा” जैसे फुहड़ कैप्शन के साथ उसके वीडियो चलाये जाने लगे। उसे उठवा लेने की धमकियां दी गईं। भयभीत होकर उसके पिता ने उसे वापस भेज दिया।

जो साधु इनका उत्तर नहीं दे रहा, उसे ढोंगी बता कर गालियां दे रहे हैं। जो सहज भाव से उत्तर देने लगता है उसपर इतने टूट पड़ते हैं कि वह भी परेशान हो जाता है। हठयोगियों की तस्वीरें ले कर उसपर विमर्श चल रहा है कि इससे फायदा क्या है? इसी में मौका तलाश कर “विदेशी चंदे के बदले अपना विचार बेंच चुके लोग” भी कूद गए हैं। वे वैराग्य को ही ढोंग प्रूफ करने में लगे हैं।

कुम्भ में पहुँचने वाला हर संत शास्त्रों का ज्ञाता नहीं होता। असंख्य तो ऐसे होते हैं जिन्हें अक्षर ज्ञान भी नहीं होता, बल्कि वे अपना सम्पूर्ण जीवन किसी मन्दिर में सेवा करते हुए काट दिए होते हैं। उनके पास न संसार के अनर्गल प्रश्नों के उत्तर हैं, न फूहड़ कुतर्कों की काट है। उनके पास अपने आराध्य देव के प्रति श्रद्धा है, धर्म में आस्था है, बस। ऐसे सहज लोगों के मुँह में जबरन माइक डाल कर उन्हें अज्ञानी सिद्ध किया जा रहा है। क्यों? केवल व्यू पाने के लिए, धंधे के लिए…

लोक में कुम्भ की प्रतिष्ठा गङ्गा स्नान, तीर्थ दर्शन, संत दर्शन, और सौभाग्य मिलने पर संतों का आशीष पाने के लिए है। जो लोग अधिक समय निकाल पाते हैं वे महीने भर गङ्गा सेवन का लाभ लेते हैं। उस पवित्र भूमि पर मास भर रहने, नित्य गङ्गा स्नान करने, साधुओं की दिनचर्या देखने आदि का पुण्य लेते हैं। हाँ, उनके भीतर का गृहस्थ लगे हाथ कुछ खरीद-बेसह लेने का आनन्द भी पा जाता है। और अपने इसी मूल स्वरूप के लिए कुम्भ मेला संसार भर में प्रसिद्ध है। लेकिन इस बार सबकुछ बदला हुआ है।

ये अनपढ़ जलील व्यूखोर जिस तरह से कुम्भ की प्रतिष्ठा का नाश कर रहे हैं, उसके कारण इन्हें रोकना आवश्यक हो गया है। अन्यथा इस बार का मेला अपनी नकारात्मकता के लिए ही याद रह जायेगा।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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