Positive India:Dayanand Pandey:
अम्मा बचपन में एक किस्सा सुनाती थी।
एक आदमी की शादी हुई। शादी के पहले वह मां के लिए कुर्बान रहता था। बात-बेबात कुर्बान रहता था। शादी के बाद भी। लेकिन उस की बीवी को यह अच्छा नहीं लगता। धीरे-धीरे उस ने पति को जैसे-तैसे काबू किया। और धीरे-धीरे ही पति को मां के जुड़ाव से दूर करना शुरू किया। बात फिर भी बनती नहीं दिखी तो उस ने एक रात पति से इसरार किया कि अगर मुझ से प्यार करते हो और मैं तुम्हारी ज़िंदगी में अगर कुछ भी मायने रखती हूं तो अपनी मां का कलेजा मुझे भेंट में दो। वह बीवी को खुश रखने के लिए प्रयासरत हो गया।
एक रात उस ने मां को घर से दूर ले जा कर मां को मार डाला। और मां को मार कर उस का कलेजा निकाल कर घर की तरफ चला। रास्ते में अंधेरा था। एक जगह अचानक उसे किसी चीज़ से ठोकर लगी। वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। अचानक मां का कलेजा बोला , बेटा तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी ? यह सोच कर बेटा सोच में पड़ गया और रो पड़ा कि हाय , यह मैं ने क्या किया। मेरा इतना खयाल रखने वाली अपनी मां को मार डाला ? वह मां , जिस का कलेजा भी मुझे चोट तो नहीं लगी की परवाह में है। लेकिन अब वह कर भी क्या कर सकता था। मां को तो वह मार ही चुका था। अब पछताने से कुछ होना-हवाना नहीं था।
हमारे देश के कुछ लोग अकारण अपनी भारत माता को मारने और जलाने में लगे हैं। अपनी सत्ता , अपनी विचारधारा,अपनी ज़िद, सनक और एक व्यक्ति के विरोध में इतना आक्रामक इतना हिंसक और इतने अराजक हो गए हैं कि अपनी धरती, अपनी अस्मिता, अपने देश और अपने ही लोगों के खिलाफ खड़े हो गए हैं। गांधी गाते ही थे, सब को सन्मति दे भगवान। भगवान इन को सन्मति दे, यह प्रार्थना तो मैं भी कर ही रहा हूं। आप भी कीजिए।
साभार: दयानंद पांडेय-एफबी।