मांसाहार और शाकाहार का प्रश्न खानपान का नहीं, जीवहत्या और जीवदया का प्रश्न है।
-सुशोभित की कलम से-
Positive India:Sushobhit:
आज जीवन के 42 वर्ष पूर्ण हुए। इस अवसर पर दो दिन पूर्व स्वयं को एक उपहार दिया! पशु-पक्षियों के जीवन की अस्मिता, और अस्मिता के साथ जीवित रहने के उनके अधिकार पर वर्षों से लिखी जा रही पुस्तक की पाण्डुलिपि प्रकाशक को सौंप दी। डोली विदा कर दी! सिर का बोझ कम हुआ। पाण्डुलिपि भेजने के बाद पुस्तक के छपने में अमूमन दो-ढाई महीनों का समय लगता है। इतना ही उसके छपने में शेष होगा।
पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण नैतिक हस्तक्षेप करती है। वो पूरे बल से यह कहती है कि मांसाहार और शाकाहार का प्रश्न खानपान का नहीं, जीवहत्या और जीवदया का प्रश्न है। और कोई भी ऐसा नैतिक, न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ व्यक्ति नहीं हो सकता, जो जीवहत्या को जीवदया से अधिक महत्त्व देता हो। इस तरह से यह किताब मांसाहार-शाकाहार पर चलने वाली बहस को सिरे से उलटकर उसमें एक नैतिक अनुक्रम स्थापित करती है और उसके सही परिप्रेक्ष्यों को आलोकित करती है। वो यह भी बताती है कि यह धार्मिक आस्था और निजी चयन का प्रश्न नहीं है, यह हिंसा और क्रूरता का प्रश्न है और आप इससे नज़रें नहीं फेर सकते।
पुस्तक का एक पूरा खण्ड मांसाहारियों द्वारा अपने पक्ष में दिए जाने वाले तर्कों के खण्डन पर केंद्रित है। हर कोण से उनके कुतर्कों का उन्मूलन कर दिया गया है। एक खण्ड जीवदया के अध्यात्म पर केंद्रित है। एक खण्ड गायों, हाथियों, पक्षियों, मछलियों, साँपों जैसे प्राणियों के विशिष्ट व्यक्तित्वों पर है। एक में भारत में बढ़ते मांसाहार की कुवृत्ति पर विवेचना की गई है। एक में वीगनवाद की व्याख्या है। एक खण्ड करुणा के भाव को पुकारता है।
यह पुस्तक पाठकों के नैतिक-आध्यात्मिक स्तर को उठाते हुए उन्हें जीवदया के संकल्प के लिए प्रेरित करेगी- लेखक को इसमें संदेह नहीं है।
लेखक इस पुस्तक के लिए एक नया पैसा भी रॉयल्टी स्वीकार नहीं करेगा और लेखक के लाभांश जितनी छूट पुस्तक के मूल्य पर पाठकों को दी जाएगी! क्योंकि यह धर्म का काम है, और यही एक धर्म है!
आज जन्मदिन के अवसर पर अनेक मित्रों ने शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं, जिनके लिए उनका आभारी हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूं!
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Courtesy:Sushobhit-((The views expressed solely belong to the writer)