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राही की कलम से-ममता की ना पर कटाक्ष

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:

दूर तक लहलहाती फसल है,
कल सूखा आज जल ही जल है।

आलोचकों की दुआ मिल गई,
कठघरे से निकल वो सफल है।

दिल्ली मिली है महकती हुई,
हिमालय अब पिघलकर तरल है।

शपथ में न जाने क्यूँ नहीं वो,
हाथ में हमारे तो कमल है।

लेखक:राजेश जैन राही, रायपुर।

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