बीजेपी के रणनीतिक दांव मे बुरी तरह फंस चुकी ममता
२०२१ के बंगाल विधानसभा चुनाव मे तृणमूल का पतन सुनिश्चित है।
Positive India:Ajit Singh:
बीजेपी के रणनीतिक दांव मे बुरी तरह फंस चुकी ममता के हाथ से धीरे धीरे रोज फिसलता जा रहा है बंगाल…२ मई को साफ हो जायेगा कि पलटवार करने के चक्कर मे नंदीग्राम से लड़ना ममता की सबसे बड़ी राजनैतिक भूल थी……….!!
लोग अक्सर कहते हैं कि राजनीति में सबकुछ बदल जाने के लिए कुछ दिन या महीने बहुत होते है……………..लेकिन जिस तरह से बंगाल की राजनीति की दिशा और दशा पिछले कुछ महीनो में बदली है वो हैरान करने वाला है…वो ममता बनर्जी…जो कभी प्रधान मंत्री बनने के सपने देख रही थी वो आज अपने ही घर में बुरी तरह से घिर गई है…सच्चाई तो यह है कि जैसे सन् २०१७ मे यूपी की जेहादी सरकार के विरोध मे वहां का आम जनमानस बस उखाड़ फेंकने के एक मौके की प्रतीक्षा मे था और मौका मिलते ही जबरदस्त पटखनी इफ्तार के मजनुओं को दे दिया था…ठीक उसी तरह आज बंगाल में भी छेदही टोपी के समर्थकों के विरोध और बीजेपी के पक्ष में एक जबरदस्त अंडरकरेंट चल रहा है…..दिन प्रतिदिन जहां न केवल बीजेपी मजबूत होती जा रही है…वहीं ममता की पार्टी का ग्राफ नीचे की ओर लगातार गिरता जा रहा है….ये अंडरकरेंट कहां धमेगा और कब थमेगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन हकीकत ये है कि भारतीज जनता पार्टी की नजर अपने लक्ष्य यानी २०० सीटें बंगाल से जीतने पर टिक गई है………इसकी सबसे बड़ी वजह मोदी के नेतृत्व मे बीजेपी की अपनी सनातन राष्ट्रवादी नीतियों के साथ तृणमूल कांग्रेस के बड़े बड़े धुरंधर और संस्थापक सिपहसालारों का एक एक करके ममता का साथ छोड़ कर जाना…जो ममता के तुष्टीकरण वाले जेहादी किले की नींव को खोखला करने के साथ ममता के हर दांव पेंच को भोथरा बना दे रहा है…भले ही आज मंदिरों मे ममता भटक लें लेकिन उनके पास उन्हे छोड़ कर जाने वाले लड़ाकों की जमीनी ताकत और बीजेपी की रणनीति की कोई काट नही है…………..इसी सबसे बंगाल का पूरा परिदृश्य बदल गया है. ये बीजेपी का यह एक गेम-चेंजर दांव साबित होगा क्योंकि ममता बनर्जी ने कुटिल वामपंथियों की दशकों पुरानी सरकार और उसके जबरदस्त कैडर को ध्वस्त करने वाले जमीन से जुड़े अपने योद्धाओं को खो दिया है…बंगाल की राजनीतिक तस्वीर को समझने के लिए वहां की जमीनी सच्चाई को समझना जरूरी है…………………..ममता बनर्जी की तुष्टीकरण रीतियों,नीतियों और रोहिंग्या,बांग्लादेशी घुसपैठियों का सार्वजनिक समर्थन करने के कारण बहुसंख्यक समाज के अंतर्मन मे पैदा विक्षोभ से वहां का वर्तमान चुनाव पूरी तरह से पोलराइज्ड हो गया है…..चाहे कारण दुर्गा मूर्ति विसर्जन का हो या फिर रामनवमी और सरस्वती पूजा के रोकने और उसके बाद विधर्मियों द्वारा भड़काई गई हिंसा का…बंगाल की जनता सब कुछ कायदे से समझ चुकी है कि ममता के सारे फैसले तुष्टीकरण की राजनीति से प्रेरित रहे हैं…दरअसल राज्य में लगभग ३०% मुस्लिम आबादी है…….लिहाजा ममता की यही सोच है कि जिन ३०% मजहबी,बाकी हिंदू विरोधी और सेकुलर समर्थकों के दम पर वो हमेशा चुनाव जीतती रही है…२०२१ मे भी वही समीकरण काम आयेगा…लेकिन इस बार बंगाल में पासा पलट गया है………….अब ओवैसी,सिद्दीकी के मैदान मे आने के कारण वहां का मुस्लिम भले ही भ्रमित होता दिख रहा है…लेकिन वो बंटेगा जरूर और एकमुश्त तो ममता को मिलने से रहा….ऊपर से हिंदुओं के बीच बीजेपी ने जयश्रीराम के महामंत्र वाले नारे का ऐसा जबरदस्त दांव खेला है…जिसका विरोध करके पी.म. का मंच छोड़ कर जाने वाली ममता को शायद कुर्सी छोड़ कर जाना पड़े………………..इसी लिये विश्वास के साथ कह सकता हूं कि २०२१ के बंगाल विधानसभा चुनाव मे तृणमूल का पतन सुनिश्चित है…..एक बात और समझिये दरअसल बंगाल की राजनीति उत्तर भारत की राजनीति से बिल्कुल हट कर है…सच्चाई तो यह है कि बिहार जरूर उस ८०-९० के कालखंड वाली खूनी,विस्फोटक और जबरन कब्जाने वाली राजनीति के बाहर निकल चुका है लेकिन बंगाल आज भी ८०-९० के दशक वाली उसी खूनी राजनीति के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है….तभी हर चुनाव में जम कर हिंसा होती है…….राजनीतिक हत्याएं होती है….बम गोलियां चलते हैं…मार-पीट और झगड़े होते हैं…कमजोर उम्मीदवार को तो प्रचार भी नहीं करने दिया जाता है. टैगोर,सुभाष,श्यामा प्रसाद,जतिनदास जैसे राष्ट्रपुत्रों के बंगाल में आज भी डंडे का जोर चलता है…बंगाल में राजनीति में किसी भी पार्टी को बने रहने के लिए ऐसे नेताओं की जरूरत पड़ती है जो सड़क पर लड़ने मे सक्षम हों…..बंगाल मे आज की परिस्थितियां यह है कि ममता के सभी विश्वसनीय और वोट व बूथ मैनेजमेंट के रणनीतिकार उनका साथ छोड़ चुके हैं……..यहां यह बताना जरूरी समझता हूं कि बीजेपी कई दशकों से बंगाल में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगी थी लेकिन वो हमेशा असफल रही क्योंकि उस समय बीजेपी के पास जमीन से जुड़ा कोई नेता नहीं था और बंगाल के पॉलिटिकल कल्चर के अनुसार सड़क पर लड़ने वाले लोग बीजेपी के पास नहीं थे…लेकिन पिछले दो तीन महीनों के अंदर तो बहुत जबरदस्त बदलाव हुआ है…..ममता बनर्जी की नीतियां और उनसे नाराज तृणमूल के संस्थापक नेताओं का बीजेपी में शामिल होना……….जो वामपंथियों के आतंक को समाप्त करके ममता को सत्ता में पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी…..दरअसल ममता अगर तृणमूल का चेहरा है तो अर्जुन सिंह,दिनेश त्रिवेदी,मुकुल रॉय,दिलीप घोष जैसे कई नेता टीएमसी के हाथ,पैर,दिमाग और रीढ़ थे…ये सब कुछ अब बीजेपी में चला गया है….यानी कि अब तृणमूल के पास केवल ममता नाम का चेहरा रह गया है….यही सब कारण है ममता के बौखलाने और आज की तरह खुद पर हमला करवाने वाली नौटंकी करके जनता को भावुक करने वाली साजिश रचने का…..बहरहाल बाटला हाऊस एनकाउंटर पर आतंकियों का समर्थन करने वाली,खुद को स्ट्रीट फाइटर कहने वाली बेचारी ममता आज कितनी कमजोर हो गई है….कि उन्हे कजरीलाल जैसों के ड्रामेबाजी वाले हथियार का सहारा लेना पड़ रहा है…….!!!
ममता की परेशानी इस बात को भी लेकर है कि उनको छोड़ कर जाने वाले नेताओं का बंगाल की जनता के बीच मजबूत पकड़ है…पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव का सारा मैनेजमेंट यही नेता करते रहे और हर बार टीएमसी अधिकतर सीट को जीतती रही है…अब तृणमूल के संस्थापक नेताओं के जाने से टीएमसी की परेशानी ये है कि इनके बीजेपी मे जाने से टीएमसी का संगठन टूटा ही नहीं बल्कि ध्वस्त हो गया है….इनके बीजेपी में शामिल होने के बाद से बंगाल में हवा का रुख बदल गया है…तृणमूल को अपने बंगाली किले को बचाना मुश्किल ही नहीं वरन् नामुमकिन सा हो गया है….यही कारण है कि आज ही चुनाव आयोग ने बंगाल के डी.जी.पी. को हटाया और आज ही कई लेयर की सुरक्षा मे रहने वाली मुख्यमंत्री ममता को अपने ऊपर हमले की बचकानी नौटंकी करने की जरूरत पड़ी…..!!
बंगाल की राजनीति की एक और खासियत है……….यहां जाति का कार्ड नहीं चलता……एकजुट होकर वोट करते हैं………..जहां मुस्लिम आबादी 10 फीसदी से कम है वहां बीजेपी का ग्राफ तो तेजी से बढ़ रहा है…..लेकिन मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले इलाकों में तृणमूल का ग्राफ गिरना ममता के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. इसीलिये ममता बनर्जी का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना खत्म होता दिख रहा है साथ ही बीजेपी के जबरदस्त प्रचार अभियान से उनकी मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है…………बंगाल में चुनावी हिंसा को देखते हुए इलेक्शन कमीशन ने आठ चरणों मे चुनाव कराने के साथ पूरे राज्य को अति संवेदनशील घोषित करके बड़ी संख्या मे केंद्रीय सशस्त्र बलों की नियुक्ति करके ममता के दबंगो की साजिशों पर भी पानी फेर दिया है…!!
फिलहाल कुल मिला कर कहने का मतलब ये है कि इस बार ममता राजनीति के ऐसे चक्रव्युह में फंस चुकी हैं जहां से मेरे विचार से उनका बाहर निकलना नामुमकिन है…..बाकी जान लीजिये कि फन कुचले जाने से पहले बंगाल मे अभी कई ड्रामे,नौटंकी और नाटक आपको देखने को मिलेगा…..बस धैर्य के साथ देखते और समझते जाइयेगा कि द्वापर मे भी इसी तरह द्वारिकाधीश ने जब कालिया नाग का संहार किया था तब यमुना मे भी बहुत उथल पुथल मची थी…!
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साभार:अजीत सिंह-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)