ममता बैनर्जी ने पश्चिम बंगाल में खेला कर दिया
कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन बंगाल में पूर्ण रूप से मटियामेट क्यो हो गया?
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
ममता दीदी जी 1736 वोटों से अपना चुनाव हार गई, परन्तु पूर्ण बहुमत से बंगाल का चुनाव जीत गई । पांच विधानसभा मे सबसे चर्चित चुनाव पश्चिम बंगाल का था । इस चुनाव में दोनों तरफ से प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी । पी के की सलाह और उसने जो कहा वह अब शत प्रतिशत सही लग रहा है। चुनाव में तो भाजपा उसी दिन पिछड़ गई जब ममता दीदी ने अपने को जख्मी दिखा दिया था। यह कैसे हो सकता है कि मुख्यमंत्री के सुरक्षा घेरे को तोड़कर कोई मुख्यमंत्री पर हमला कर दे । पर सब संभव है, सामने वाला फरार भी हो गया । फिर ढाई दिन के मोटे प्लास्टर ने अपना काम कर दिखाया जिसके लिए उसे चढाया गया था । महिने भर के इस तथाकथित पट्टी के सहारे भरपूर संवेदना ले ली गई । दूसरे तरफ भी ज्यादा आत्म विश्वास ले डूबा । मोदी जी ने भी वही गलती की जो कभी उनके खिलाफ सोनिया गांधी जी ने की थी । जितने बार दीदी को संबोधित किया उतने ही कमजोर होते चले गये । वहीं दूसरा कारण पूरी टीएमसी ही भाजपा मे समाहित हो गई, पता ही नहीं चल रहा था भाजपा कहाँ है, वहीं भाजपा के मूल कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करने लगे थे ।इसलिए टिकट वितरण के समय विरोध भी हुआ था।
फिर सबसे बड़ा कारण इतने स्टार प्रचारकों के बीच मे ममताजी का अकेले होना भी उनके लिए सहानुभूति पैदा कर गया। ममता जी द्वारा भाजपा नेताओं को बाहर का बताना भी राजनीति के रणनीति का हिस्सा था, जो कामयाब भी हुआ । भाजपा से लड़ने के लिए मुस्लिम मतदाताओं का एकजुट होकर ममता जी के पक्ष मे वोट डालना और हिंदु वोटों का एकजुट न कर पाना यह भाजपा की नाकामयाबी भी थी ।
चुनाव कैसे जीता जाता है यह कोई मायने नहीं रखता । यह जरूर है कि कल तक इवीएम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करने वाले विपक्ष अगर अब भी कायम है तो फिर इवीएम ने ही ममताजी को जिताया है । ममता जी का केंद्रीय सुरक्षा बल पर अनर्गल आरोप, चुनाव आयोग पर उनके आरोप पूर्णतः राजनीतिक थे; यह उनकीं जीत उस पर मुहर लगा रही है ।
पी के रूपी मार्केटिंग गुरु अब पंजाब पहुंच गया है। अब वहां से दांव पेंच चलेगा। निश्चित चुनाव को बाजार का हिस्सा बनाने के लिए इन नेताओं की मानसिकता पर सिर्फ दुख होता है । अब लोकतंत्र नहीं बाजारतंत्र का चुनाव हुआ और मार्केटिंग गुरु की जीत पर बधाई । मैडम तो कठपुतली थी, डोर तो किसी और के हाथ में थी । यह कटु सत्य है कि कठपुतली नचाने वाला कभी भी नहीं दिखाई देता, सामान समेटता है फिर नई जगह कठपुतली की बिसात बैठाता है । धन्यवाद कठपुतली मास्टर! पर ऐसा धंधा कर देश के साथ न्याय नहीं कर रहे हो । वहीं उन चिकित्सको का भी शुक्रिया जिन्होंने प्लास्टर पर अपनी नई थ्योरी दी । खैर शह-मात के इस खेल में देश हारा, जनता हारी है । पर आश्चर्य की बात यह कि कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन कहीं दिखाई नहीं दिया, बंगाल में संपूर्ण रूप से मटियामेट हो गया । कहीं मोदी जी को हराने के लिए वामियो और कांगियो ने अपने कदम तो नहीं खींच लिये?? बाजारवाद जीता है। इसके बाद भी ” सिंह आला अणी गढ गेला ” बस इतना ही।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)