Positive India:Satish Chandra Mishra:
ममता बनर्जी और उसके वोटबैंक की राजनीतिक/चुनावी “बुद्धि की शुद्धि” में बहुत देर हो चुकी है।
बंगाल में तीन सीट से बढ़कर 148 सीट वाले बहुमत का आंकड़ा छू लेना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं।
लेकिन ममता बनर्जी दो बहुत बड़ी गलती अभी तक कर चुकी है। उन्हीं दो बहुत बड़ी गलतियों का परिणाम है कि ममता बनर्जी का चुनावी ठेकेदार प्रशांत किशोर भी अब खुलेआम यह स्वीकार कर रहा है कि पिछली बार 3 सीटें जीतने वाली भाजपा इसबार 100 सीटें जीत सकती है। 3 से सीधे सौ सीट का आंकड़ा भाजपा के लिए भी अभूतपूर्व राजनीतिक उपलब्धि होगी। भारतीय राजनीति के इतिहास में सम्भवतः दूसरा ऐसा उदाहरण मिलना दुर्लभ है। हालांकि त्रिपुरा में शून्य से बहुमत तक पहुंचने का अभूतपूर्व राजनीतिक करिश्मा भाजपा दिखा चुकी है। लेकिन त्रिपुरा बहुत छोटा राज्य है। उसकी तुलना बंगाल से नहीं की जा सकती। लेकिन 100 सीटों की इस अभूतपूर्व उपलब्धि से बंगाल में भाजपा की सरकार नहीं बन पाएगी। क्या बंगाल में भाजपा को बहुमत मिलेगा.?अभीतक भाजपा को बहुमत मिलना लगभग असम्भव मान रहे राजनीतिक विश्लेषकों के लिए प्रशांत किशोर की टिप्पणी ने भाजपा को बहुमत वाली संभावनाओं की एक बड़ी खिड़की खोल दी है।
ध्यान रहे कि बंगाल के चुनाव का पहला चरण ही अभी 3 हफ्ते दूर है। ममता बनर्जी के लच्छन अभी तक ठीक नहीं लग रहे। ऐसा लग रहा है कि ममता पहले चरण तक पहुंचते पहुंचते ताबड़तोड़ कई और गलतियां कर चुकी होगी। ममता बनर्जी पहली गलती यह कर चुकी है कि इस चुनाव को तल्खी औऱ तनाव की जिस ऊंचाई पर ममता बनर्जी ने पहुंचा दिया है उस ऊंचाई पर लड़ना और जीतना तो दूर, उस ऊंचाई पर चुनाव के अंतिम दौर तक टिके रहना ममता बनर्जी के लिए बहुत कठिन हो जाएगा। इसके उदाहरण बहुत हैं लेकिन एक उदाहरण बहुत ही महत्वपूर्ण है…
बंगाल के गांवों और गलियों में गूंज रहा “जयश्रीराम” का जो नारा अब ममता बनर्जी के विरुद्ध मन्त्रघोष बन चुका है। उस नारे को गांव गांव तक लोगों की जुबान पर पहुंचाने का पूरा श्रेय ममता बनर्जी को ही जाता है। याद करिये कि ममता बनर्जी को देख कर एक गांव में “जयश्रीराम” का नारा लगाने लगे 5-6 बच्चों पर बुरी तरह क्रोधित होकर ममता बनर्जी अपनी कार से उतर कर अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ क्रोध से चीखते चिल्लाते हुए किस तरह उन बच्चों पर झपटी थी। बच्चों द्वारा नारा लगाने की वो घटना बहुत छोटी थी। लेकिन ममता बनर्जी ने अपनी खुद की करतूत से उस घटना को इतना बड़ा रूप दे दिया कि उस घटना के बाद पूरे बंगाल में जयश्रीराम का नारा गूंजने लगा और आज ममता बनर्जी के खिलाफ विद्रोह का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रतीक बन गया है। राजनीतिक मंचो पर अब “राम-राम हरे-हरे” जप कर और राहुल गांधी की तरह मंदिरों में मंडरा कर “जयश्रीराम” के जयघोष को कुंद या प्रभावहीन कर पाना ममता बनर्जी के लिए लगभग असंभव हो चुका है। यदि उस दिन अपनी कार रोक कर ममता बनर्जी मुस्कुराते हुए उन बच्चों के पास तक गयी होती और प्यार से उनके गाल थपथपा कर चली आयी होती तो बात वहीं खत्म हो गयी होती। अगर ममता बनर्जी ने उन बच्चों से मुस्कुरा कर धीरे से “जयश्रीराम” भी कह दिया होता तो भाजपा के हाथ से अपने विरोध वाला एक बहुत बड़ा मुद्दा उसी दिन छीन लिया होता। लेकिन ऐसा करने के बजाए नेताजी सुभाषचंद्र बोस के 125वें जन्मदिन पर ममता बनर्जी ने वही गलती दोहरायी, ज्यादा फूहड़ता और उद्दंडता के साथ दोहरायी। दरअसल ममता बनर्जी को उस समय तक अपने उस वोटबैंक की नाराजगी की चिंता ज्यादा सता रही थी जिस वोटबैंक का अपने चुनावी मंचों पर खुलकर जिक्र करने, उसका नाम तक लेने से ममता बनर्जी को अब डर लग रहा है। ऐसा करने से वो अब शत प्रतिशत परहेज कर रही है। ममता बनर्जी का वो वोट बैंक भी हर चुनावी मंच पर ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे “राम-राम हरे-हरे” के धुआंधार जप और मंदिरों के ताबड़तोड़ दौरों पर नाक भौं नहीं सिकोड़ रहा। नाराज हो जाने की धमकी नहीं दे रहा। लेकिन ममता बनर्जी और उसके वोटबैंक की इस राजनीतिक/चुनावी “बुद्धि की शुद्धि” में बहुत देर हो चुकी है। खुद ममता बनर्जी द्वारा दिखाई गई हरी झंडी के बाद चली सुपरफास्ट “जयश्रीराम” एक्सप्रेस अब बंगाल के शहरों कस्बों गांवों तक में बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ रही है। उसका पीछा कर पाना कम से कम ममता के लिए अब असम्भव हो चुका है।
मई 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान ममता बनर्जी अपनी ऐसी ही करतूत का दुष्परिणाम भोग चुकी थी लेकिन इसके बावजूद सबक सीखने में ममता बनर्जी ने बहुत देर कर दी है।
ममता बनर्जी की दूसरी बड़ी गलती और फिलहाल नजर आ रही बंगाल चुनाव की सम्भावनाओं पर पोस्ट कल शाम को।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)
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