Positive India:Rajesh Jain Rahi:
मात कैकई को मान, देते प्रभु राम सदा,
आगे बढ़ पाँव छू के, गले लग जाते हैं।
मन में विचार माता, लाइए न आप कुछ,
भाव भरे नयनों से, उन्हें समझाते हैं।
आँसुओं की धार बहे, कैकई न बोल सके,
राम जैसे पुत्र अहो, कहाँ मिल पाते हैं।
राम का स्वभाव देख, राम का लगाव देख,
देवता नमन कर, फूल बरसाते हैं।
लेखक: राजेश जैन राही, रायपुर