लोहिया तो संचय के ख़िलाफ़ थे पर अपने को लोहियावादी कहने वाला मुलायम परिवार अरबपति कैसे बन गया ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
राजनारायण फकीर आदमी थे। लोहियावादी थे। चरण सिंह के हनुमान थे। देश की राजनीति की दिशा बदली थी। लेकिन आर एस एस , भाजपा या किसी भी से नफरत और घृणा की राजनीति नहीं सिखाते थे। चरण सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो जनसंघ के सहयोग से। जनसंघ के रामप्रकाश गुप्ता उन के साथ उप मुख्य मंत्री थे। 1977 में जनता पार्टी सरकार में जनसंघ धड़ा भी समाहित था। अटल बिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी भी मंत्री थे। इधर उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव भी साथ में मंत्री थे।
इसी तरह मुलायम सिंह यादव भी पहली बार भाजपा के समर्थन से मुख्य मंत्री बने थे। बाक़ी भाजपा से छुट्टी लेने के लिए जो नफ़रत और घृणा घोली गई है , खोखले सेक्यूलरिज्म के नाम पर उस ने भाजपा को दिन-ब-दिन मज़बूत किया है। करता ही जा रहा है। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को खून का सौदागर कहा था , जब वह गुजरात के मुख्य मंत्री थे। नतीज़ा क्या हुआ ? मोदी प्रधान मंत्री बन गए। देश ने कुछ और माना। फिर पुलवामा के समय राहुल गांधी ने मोदी को खून का सौदागर कहा , भाजपा फिर पूरे बहुमत से सत्ता में आ गई।
सपा का अपराधियों और आतंकियों संबंध जगजाहिर है। लेकिन आप जैसे मित्र इस पर बिल्ली की तरह आंख मूंद लेते हैं। भाजपा इस से भी मज़बूत होती है। मुलायम के परिवारवाद पर चुप्पी भी भाजपा को मज़बूत करती है। एक चुनी हुई सरकार को निरंतर सांप्रदायिक कह कर जनता का अपमान करना होता है। जनादेश का सम्मान नहीं जानता आज का विपक्ष , इसी लिए निरंतर कमज़ोर हुआ जाता है।
एक सच यह भी है कि मुलायम अगर मोदी के आगे घुटने टेक कर नहीं रहते तो आर्थिक अपराध में लालू की तरह जेल काट रहे होते। मुलायम परिवार के भ्रष्टाचार पर भी समाजवादी चुप रहते हैं। लोहिया तो संचय के ख़िलाफ़ थे। पर अपने को लोहियावादी कहने वाला मुलायम परिवार अरबपति कैसे बन गया ? लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग के सारे बंगले मुलायम परिवार के नाम कैसे हो गए ? इस लिए कि सेक्यूलर हैं ?
लोहिया क्या सांप्रदायिक थे जो दीनदयाल उपाध्याय से गाढ़ी दोस्ती के लिए जाने जाते हैं। एकतरफा बातें नहीं चलतीं।
अखिलेश ने 2017 में सत्ता के मद में पिता सहित समूचे परिवार को अपमानित किया था। पिता की पीठ में छुरा घोंप दिया। परिवार टूट गया। अब फिर किसी तरह मुलायम ने रफ़ूगीरी कर के परिवार को जोड़ा है। सांप्रदायिकता अब एक खोखला शब्द है। संविधान बचाओ , लोकतंत्र बचाओ जैसी बातें अब बचकानी लगती हैं। सत्ता पाने की नाजायज तरकीब लगती हैं। जनता इतनी मूर्ख नहीं है कि लोकतंत्र और संविधान के हत्यारों को बारंबार जनादेश देती रहे।
आज़म खान जैसे लोग लोकतंत्र विरोधी हैं , उन पर कोई सवाल समाजवादी लोग क्यों नहीं उठाते। मुख़्तार अंसारी , अतीक अहमद क्या हैं ? पर समाजवादियों के लब सिले रहते हैं। मोदी ने गुजरात में दंगे करवाए पर अहमदाबाद बम विस्फोट के लिए सभी दोषी मुस्लिम निकलते हैं। पहली बार 38 मुस्लिम लोगों को एक साथ फांसी की सज़ा सुनाती है अदालत। फांसी पाए आतंकी के पिता के साथ अखिलेश की फ़ोटो वायरल होती है। जवाब में अखिलेश कहते हैं , भाजपा झूठ बोलती है। एक साथ परिवार के 45 लोग विभिन्न संवैधानिक पद पर बैठ जाते हैं। पर समाजवादी लोग चुप रहते हैं। क्या यह संविधान और लोकतंत्र का अपहरण और हत्या नहीं है ?
उत्तर प्रदेश को जंगल राज के हवाले कर चुके थे अखिलेश यादव अपने कार्यकाल में। कौन समाजवादी बोला ? गायत्री प्रजापति ने मंत्री रहते हुए नाबालिग लड़की से बलात्कार किया था। अखिलेश ने क्या किया ? कौन समाजवादी बोला ? समाजवादियों की आय से अधिक संपत्तियों पर भी चुप्पी है। दुनिया की कौन सी टाइल है जो उखाड़ने के बाद भी लग जाती है , जो अखिलेश ने उखड़वा ली ? सरकारी आवास में सारा खर्च सरकार ही उठाती है , सब लोग जानते हैं। पर टाइल , टोटी प्रसंग पर कौन समाजवादी बोला। मुस्लिम और यादव ही रहते हैं , उत्तर प्रदेश में ? जो सारे काम उन्हीं के लिए समाजवाद के नाम पर होता रहा ? पर लोकतंत्र और संविधान बचाने की दुकान खोले लोग इन बिंदुओं पर मुसलसल ख़ामोश रहते हैं। क्यों ?
[ एक समाजवादी मित्र को उन की वाल पर मेरा यह जवाब। ]साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)