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कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ बलात्कार और उन्हें आरा मशीन पर जीवित काटने पर एक जीवित साक्ष्य

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
सलमान ख़ुर्शीद की पुस्तक Beyond Terrorism पढ़ें। उसमें गिरिजा तिक्कू की घटना का उल्लेख है। सलमान ख़ुर्शीद तथाकथित हिन्दूवादियों को सख़्त नापसंद हैं और कांग्रेसी होने के साथ साथ मुसलमान भी हैं। मैं उस समय कश्मीर में ही था जब आतंकवाद अपने उरूज पर था। मेरे पिता पत्रकार थे और मैं कहने से हिचकूंगा नहीं कि उस समय हमारे मोहल्ले में ही ऐसा कोई नहीं था जो आज़ादी के पक्ष में नहीं था। लेकिन वे लोग इस घटना के बारे में जानकर ऐसे आहत हुये थे कि इसका ज़िक्र करने से कतराते थे। दूसरी बात पूरा प्रशासन ही आतंकवादियों के नियंत्रण में था और अनेक हत्याओं का कोई प्रशासनिक दस्तावेज़ रखा नहीं गया। ऐसी घटना का कैसे रखा जाता।सब मिटा दिया गया। मेरे सगे मामा स्व. मोहन लाल मट्टू जो श्रीनगर के मेडीकल कॉलेज के पुस्तकालयाध्यक्ष थे अपने दफ़्तर में ही सात गोलियां मारी गयीं। उन्हें ग्रेच्युइटी इत्यादि सारा पैसा दे दिया गया और कारण केवल मृत्यु लिखा गया। मौत के कारण का कोई दस्तावेज़ उनके पास नहीं है। sabotaged व्यवस्था में ऐसे दस्तावेज़ दबा दिये जाते हैं। यह जिसकी समझ में न आये और वह सबूत ढूंढे या तो नासमझ है या हत्यारों के साथ। वैसे इन वेबसाइटों पर जो कुछ दिया गया है उसे किसी ने नकारा नहीं है आज तक। ऐसे तर्क बहुत सुने जा चुके हैं मगर कोई यह सबूत लेकर भी नहीं आया कि ऐसा नहीं हुआ है। बाकी थोड़ी मशक्कत करें तो बहन गिरिजा तिक्कू के पति से भी मिल सकते हैं जम्मू में जो अग्रज अग्निशेखर के मित्र हैं और शुरू से ही उनका अाना जाना रहा एक दूसरे के पास। मैं यह भी बताना चाहूंगा कि मैंने बहन गिरिजा तिक्कू की हत्या पर कश्मीर में जो कविता लिखी वह मैं स्वयं ही नहीं पढ़ पाता हूं और अग्रज अग्निशेखर के ज़ोर देने पर ही मैंने उन्हें भेजी थी जिसे उन्होंने पिछले वर्ष अपनी वॉल पर डाला था। तब स्वर्गीय बहन गिरिजा तिक्कू के एक संबंधी ने मुझे अनैतिक ठहराते हुये कहा था कि मैंने यह कविता लिखकर अपराध किया है क्योंकि उनके पति और बच्चे पढ़ेंगे तो उनका क्या हाल होगा? तो इस संबंधी की बात से ही पता चलता है कि यह नृशंस हत्या वास्तव में हुई थी और परिवार की पीड़ा का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। ऐसी ही अन्य हत्याएं भी हुई हैं विशेषकर औरतों की जिनमें मुसलमान औरतें भी हैं। एक बार चार पांच लड़कियों की लाशों को बलात्कार के बाद चोटियों से एक दूसरे के साथ बांधकर वितस्ता में बहा दिया गया था। मेरा घर वितस्ता किनारे ही था। लेकिन इतनी नृशंस हत्या कोई नहीं थी। यह हत्या कश्मीरी पंडित समुदाय की तकलीफ का प्रतिनिधायन है।

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– मेरी एक पोस्ट पर विस्थापित कश्मीरी पंडित और कवि Dileep Kumar Kaul का एक कमेंट । Ashutosh Kumar चाहें तो आप इस बात को भी झूठ कह सकते हैं । बेधड़क आप यह भी कह दें कि कठुआ कांड को दबाने के लिए यह पोस्ट लिखी गई है । कतई संकोच नहीं करें ।

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साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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