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लेखक ,लेखिका और पत्रकार लिव इन रिलेशनशिप को लीचड़ और गलीज परम्परा क्यों करार देते हैं!!

- सर्वेश कुमार तिवारी 'श्रीमुख' की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
ऐसे बेकार विषयों पर हम सामान्यतः बोलते नहीं, पर कुछ लोग जबरन पीछे पड़े हैं। उन्हें सारे प्रश्न सर्वेश से ही करने होते हैं। तो सुनिये।
सामान्यतः लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे, पर यह सत्य ही है कि दस वर्ष तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद 95% पुरुष उस लड़की से विवाह नहीं करेंगे। दस वर्ष में अच्छी अच्छी दोस्ती टूट जाती है महाराज! पर, पर, पर… शेष 5% भी है। और यदि एक साहित्यकार भी उस 5% का हिस्सा नहीं बन पाता तो धिक्कार है उसे। यदि एक लड़की उस पर भी भरोसा नहीं करे तो किसपर करे? फिर तो भरोसे जैसे शब्द का कोई अर्थ ही नहीं।
लेखक बोलने के लिए जाने जाते हैं। कोई उनका गमछा छू देता है तो आंदोलन कर देते हैं। उनकी बाइक के आगे गड्ढा आ जाता है तो वहीं गमछा बिछा कर आंदोलन पर बैठ जाते हैं। और जब आपके ऊपर इतना बड़ा आरोप लगता है तो पलायन? क्यों भाई? यदि आरोप गलत है तो एक पंक्ति में कहिये कि सब गलत है, फिर देखते हैं कौन आता है। पर आप तो बिना कुछ बोले सरक गए भाई साहब! गलत है यह…
अब तनिक दूसरी ओर मुड़ते हैं। लिव इन रिलेशनशिप जैसी लीचड़ और गलीज परम्पराएं जहाँ की हैं, वहाँ के लोग सम्बन्धों में भावनाओं का निवेश नहीं करते। जबतक साथ रहे तबतक रहे, और जब अलग हुए तो अगले ही दिन लड़का किसी और के साथ, और लड़की किसी और के साथ। तो साहब, जब आप विदेशों से किसी चलन को एडॉप्ट कर रहे हैं तो उसे उसे 100% अपनाइए। क्रांतिकारी बनने के दावे भी करने हैं और रोना भी है? दोनों नहीं चलेगा। भारत में तो पक्का नहीं चलेगा।
एक बात और है। महीने दिन पहले एक कथित पत्रकार और लेखिका निर्लज्जता पर उतर गईं। देश भर की स्त्रियों की जबरन प्रतिनिधि बन कर 70% पुरुषों के पुरुषत्व को खारिज कर दिया। फिर क्या हुआ? चार दिन में उसे 5000 नए फॉलोवर मिल गए। वो अपनी जीत पर फूली नहीं समा रही हैं। यह वाले लेखक भी यदि भागे नहीं होते तो अब तक उनके दस हजार फॉलोवर बढ़ गए होते। और फॉलोवर नहीं भी बढ़ें तो उनकी अगली किताब के समय देखिएगा। बिक्री डबल नहीं हुई तो कहिएगा…
मैं इस मंच पर नारीवाद का झंडा ढोने वाली दर्जन भर लेखिकाओं को जानता हूँ जिनके आरोपी लेखक से अच्छे सम्बन्ध हैं। वे अनेक मंचो पर साथ दिखते रहे हैं। क्या वे इस प्रकरण को नहीं जानती? वे जानती ही होंगी कि या तो लेखक दोषी है, या निर्दोष! पर वे स्पष्ट बोलेंगी नहीं। एक तरफ लड़की के पक्ष में दो पंक्ति बोल कर नारीवादी भी बनी रहेंगी, और दूसरी ओर लेखक पर चुप्पी साध कर अपने व्यवसायिक रिश्ते भी बचा लेंगी। बहुत गन्दा है, पर विशुद्ध धंधा है यह…
भाई साहब! छोटी सी ही सही, पर एक अलग सी दुनिया है इन सब की… पुरुष सत्ता और नारीवाद एक ही प्लेट से मटन निकाल कर खाते हैं उधर… एक दूसरे की किताबें पढ़ते हैं, उनकी समीक्षा करते हैं, उनको एक दूसरे के साथ लाइव लाइव खेलते तो देखा ही होगा आपने… चार दिन तक एक दूसरे को गाली देंगे, और पांचवे दिन जाम टकराते हुए अपने सभी पाठकों को ब्लडी पीपल कहेंगे। उधर का अंतिम सच यही है…
खेल देखिये। मुझ देहाती के बस की बात नहीं है कि इसपर अधिक बोल सकें। जाने जौ, जाने पिसान….

साभार-सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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