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लड़की हूं , लड़ सकती हूं ! स्लोगन में संभावनाएं बहुत हैं लेकिन

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
लड़की हूं , लड़ सकती हूं ! स्लोगन में संभावनाएं बहुत हैं। लेकिन प्रियंका नाम की लड़की में बिलकुल नहीं। क्यों कि प्रियंका नाम की यह लड़की जगह-जगह फ़िल्मी तमाशा तो कर सकती है , दुःख का , शोक का सफल शो भी कर सकती है पर लड़ नहीं सकती। चुनाव लड़ कर जीतना या जितवाना प्रियंका नाम की लड़की के लिए टेढ़ी खीर है।

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लड़की हूं , लड़ सकती हूं। बिलकुल खिला-खिला स्लोगन। एकदम चटक और अपीलिंग। किसी ख़ूबसूरत कविता की तरह। किसी वामपंथी सांस्कृतिक दल के नुक्कड़ गीत की थिरकन मन में हिलोर मारने लगती है। लेकिन इस स्लोगन पर जब कांग्रेस की मुहर और पंजा दीखता है तो हिप्पोक्रेसी की बू आने लगती है। ख़ूनी पंजे की पोर-पोर दिखने लगती है। कविता का सारा सौंदर्य और उस की लचक लुल्ल हो जाती है। चमक फीकी पड़ जाती है। कांग्रेस की परछाई पड़ते ही।

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वैसे राहुल गांधी की लीलावती , कलावती की वह पुरानी कहानी भी बहुत याद आई जब आज प्रियंका उत्तर प्रदेश की कुछ औरतों के नाम ले कर अब की उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने का ऐलान कर रही थीं। पटकथा और संवाद हूबहू वही थे। बस अदायगी जुदा थी। ठीक वैसे ही प्रियंका का यह स्लोगन : लड़की हूं , लड़ सकती हूं ! पढ़ कर उत्तर प्रदेश के बीते विधान सभा का वह स्लोगन भी याद आ गया कि : साइकिल को हाथ पसंद है , यू पी को यह साथ पसंद है। जो तब के एक मशहूर फ़िल्मी गाने बेबी को बेस पसंद है पर बेस करता था।

ख़ैर , आज की प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित लखनऊ के पत्रकारों के पास न समझ थी , न दृष्टि , न प्रश्न। प्रश्न होते तो पत्रकारों ने यह ज़रुर पूछा होता कि आज की तारीख़ में कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए 40 प्रतिशत महिलाएं हैं भी ? हैं तो कहां हैं ? कहां से लाई जाएंगी। आदि-इत्यादि। बातें भले बड़ी-बड़ी करती हो कांग्रेस पर अभी तो 403 सदस्यों की उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 7 की संख्या पर कांग्रेस ठिठकी हुई है। सवाल यह भी पूछा जा सकता था कि सोनिया गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कुर्सी ख़ाली करने वाली हैं , उस पर राहुल गांधी के बजाय आप ख़ुद क्यों नहीं बैठ जातीं।

आख़िर आप भी कांग्रेस राजघराने की लड़की हैं। लड़ सकती हैं। कोई और लड़की चुनाव लड़ सकती है तो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी की लड़ाई आप भी लड़ सकती हैं। आख़िर आप की दादी और मां बरसो-बरस इस अध्यक्ष की कुर्सी पर कई चक्र में विराजमान रही हैं। तो आप क्यों नहीं हो सकतीं। आप भी लड़की हैं , लड़ सकती हैं। शुरुआत यहीं से हो तो क्या बुरा है। उस लतीफ़ा गांधी से कांग्रेस और देश को मुक्ति तो मिले भला। जैसी भी हों , उस से तो बेहतर ही हैं। जिस भी किसी ने यह स्लोगन लिखा है , लड़की हूं , लड़ सकती हूं। उसे यह सलाह भी ज़रुर प्रियंका को देनी चाहिए थी। अब भी देर नहीं है।

क्यों कि कांग्रेस पार्टी में स्त्रियों का बहुत अकाल है। है तो पूरी कांग्रेस ही अकालग्रस्त। पर स्त्रियों के मामले में तो जैसे लकवाग्रस्त भी है। हां , कभी वह दौर भी था कांग्रेस में जब स्त्रियों की कमी नहीं थी। भरपूर थीं। युवा स्त्रियां। ख़ास कर संजय गांधी के दौर में। लेकिन जब से कांग्रेस के लोग स्त्रियों को तंदूर में जलाने लगे , कांग्रेस से स्त्रियां दूर होने लगीं।

आलम यह है कि लखनऊ में आज की प्रेस कांफ्रेंस के मंच पर बैठे कुल दस लोगों में सिर्फ़ तीन महिलाएं थीं। मतलब मंच ही 40 प्रतिशत से विपन्न था। बिस्मिल्ला ही ग़लत। क्यों कि स्त्रियां हैं नहीं कांग्रेस में। मंच पर तीन में , जिन में एक ख़ुद प्रियंका गांधी वाड्रा , दूसरी प्रमोद तिवारी की बेटी आराधना मिश्रा और तीसरी कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत। बस। संयोग देखिए कि आरधना मिश्र के पिता प्रमोद तिवारी खुद भी मंच पर थे। समझ यह भी नहीं आया कि मुस्लिम कोटा दिखाने के लिए सलमान खान जैसे वरिष्ठ नेता जब मंच पर थे तो पूर्व होमगार्ड और महाभ्रष्ट नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को किस लिए मंच पर बैठाया गया था। दलित खाते के नाम पर पी एल पुनिया जैसे पूर्व नौकरशाह भी मंच पर ऐसे बैठे थे गोया मंच से अब गिरे कि तब गिरे।

कांग्रेस की ज़मीनी हालत सचमुच बहुत ख़राब है। आप इसी एक बात से इस का अंदाज़ा लगा लीजिए कि लखीमपुर में प्रियंका के तमाम बल्ले-बल्ले के , आज 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट में आरक्षण के ऐलान के प्रियंका के सलाहकार समिति के सदस्य हरेंद्र मलिक व उनके पुत्र पूर्व विधायक पंकज मलिक मलिक आज कांग्रेस छोड़ कर चले गए। प्रियंका की कोर कमेटी के मेंबर रहे कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष और उरई के पूर्व विधायक विनोद चतुर्वेदी , राठ के पूर्व विधायक गयादुन अनुरागी सहित कई लोग अक्टूबर के पहले ही हफ्ते में कांग्रेस छोड़ जा चुके हैं।

कांग्रेस छोड़ने में जैसे होड़ लगी हुई है। कोई सपा में जा रहा है , कोई भाजपा में जाने के जुगत में है , कोई बसपा में। कोई ओवैसी के साथ। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीदवार मिलने मुश्किल हो जाएंगे। तिस पर 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का ऐलान कांग्रेस को शेखचिल्ली बना गया है। चुनाव है , किसी फ़िल्म की शूटिंग नहीं है मैडम प्रियंका गांधी। इस बात को जितनी जल्दी समझ जाइए बेहतर।

माना कि कांग्रेस के पास पैसा बहुत है। पर पैसे से वामपंथियों को हायर किया जा सकता है। पैसे से कोई स्लोगन लिखवाया जा सकता है। हिंसक किसान आंदोलन खड़ा किया जा सकता है , शाहीन बाग़ वगैरह भी। लखीमपुर में चुने हुए लोगों की मदद भी की जा सकती है। चुनाव भी लड़ा जा सकता है पैसे से। कार्यकर्ता और वोटर भी पैसे से मिल जाते हैं। पर चुनाव जीतने भर के कार्यकर्ता और वोटर नहीं मिल सकते पैसे से। हां , ई वी एम पर ठीकरा ज़रुर फोड़ा जा सकता है। जनता काम देखती है , तीन-तिकड़म नहीं। शोक का शो नहीं।

साभारः दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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