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क्या नेहा सिंह को ‘बिहार में का बा’ दबाव मे आकर गाना पड़ा ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
नेहा सिंह के साथ हमारी पूरी संवेदना है। क्योंकि नेहा सिंह को भारी जनदबाव का सामना करना पड़ रहा है। दबाव में आकर नेहा सिंह को ‘बिहार में का बा’ गाना पड़ा। दबाव में आकर कोई भी कलाकार अपनी मेधा का बेहतरीन इस्तेमाल नहीं कर पाता। स्वाभाविक है ऐसे में किसी भी गायक का जुबान लड़खड़ा सकता है। बिहार के जनवादी पत्रकार मनीष कश्यप के साथ सरकार बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है, नेहा सिंह इस मुद्दे को हिम्मत नहीं कर पाई जोड़ने की। नेहा सिंह कहती हैं कि जंगलराज का बस आहट सुनाई दे रहा है।

मान लिया नेहा सिंह खुद को लोक गायिका बताती हैं, पर उनके गीतों के बोल से किसी दल किसी विचारधारा का लय सुनाई पड़ता है, तो यह बिल्कुल नई बात भी नहीं। उत्तर प्रदेश में जब समाजवाद के नाम पर मुलायम की राजनीति हो रही थी, पुरस्कार के नाम पर वजीफा बांटने की परंपरा शुरू की गई। चुन-चुन कर लेखकों, गायकों और साहित्यकारों को सरकार की गोदी में बिठाने का कारनामा शुरू हो गया। नेहा सिंह राठौर जुआ हार गईं। नेहा सिंह ने पूरी कोशिश की, बावजूद अखिलेश यादव नहीं जीत पाए। नहीं तो नेहा सिंह के पूरे जीवन का कष्टे दूर हो जाता। यश भारती पुरस्कार में जीवन पर्यंत ₹50000 महीना मिलता है। पर, योगी जी ने कहा है जिन्हें भी पुरस्कार मिली है उनकी समीक्षा की जाएगी।

सरकारी वजीफों की लालसा में जिन कलाकारों की कला उतरती है, उसकी एक अलग ही बात होती है। उसमें इतनी रचनात्मकता होती है कि दृष्टा मंत्रमुग्ध हो जाएं। नेहा सिंह का ‘बिहार में का बा’ गीत बिल्कुल बेजान निकल कर आया है। ऐसे में एक कथित लोकगायिका की मेधा खराब हो जाएगी। इसलिए जरूरी है कि कोई कलाकार यदि अपनी दलगत विचारधारा के हिसाब से काम करता है, तो इसमें बुराई क्या है? कलाकार अपने विचारों से समझौता क्यों करे। जहां तक बात लोगों द्वारा विरोध की है, तो विरोध लोग इसलिए करते हैं, क्योंकि नेहा सिंह स्वयं को लोक गायिका बताती हैं। और कोई खास बात नहीं है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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