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क्या खालिस्तान पर धर्म और स्टेट दोनों की मुहर लग गई है ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
खालिस्तान पर धर्म और स्टेट दोनों की मुहर लग गई है। अमृतपाल सिंह का काफिला हथियार के साथ स्वर्ण मंदिर में भी प्रवेश किया और उस की अरदास स्वीकार की गई। फिर वह काफिला स्टेट के पुलिस थाने में भी प्रवेश किया और वहां भी संविधान ने उसका स्वागत किया। लवप्रीत तूफानी को रिहा कर दिया गया। स्टेट पुलिस अदब के साथ अदालत गई, लवप्रीत सिंह की ओर से प्राप्त हुई साक्ष्य के आधार पर रिहाई का पंचनामा ले आई।

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तमाम मौकों पर निहंग सिखों की स्टेट विरोधी गतिविधि के बावजूद भारत के सनातन समाज ने अपने विमर्श में सिक्खों और खालिस्तानियों के बीच एक स्पष्ट विभाजन कर रखा था। सनातन समाज खुलकर यह स्वीकार करने को राजी नहीं था कि खालिस्तानी आतंकवादी और सिखों में कोई फर्क नहीं है। जबकि जमीनी सच्चाई है कि सिखों के करीब घर घर में खालिस्तानी कांसेप्ट और भिंडरावाले के समर्थन में एक बड़ी दिली सहानुभूति है। लेकिन जब आज स्वर्ण मंदिर में अमृतपाल का स्वागत किया गया, अकाल तख्त ने यह प्रमाणिक तौर पर स्पष्ट कर दिया कि अब सिखों और खालिस्तानियों में भेद करना सनातन समाज के लिए असंभव है।

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अरविंद केजरीवाल इस पूरे प्रकरण में वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं। आम आदमी पार्टी को छोड़ यदि कोई भी सरकार पंजाब में आती, चाहे वह पूर्ण रूप से कांग्रेस मैंडेट की ही क्यों ना होती, पंजाब की खालिस्तानियत कभी भी उभर कर इस प्रकार सड़क पर नहीं आ पाती। नहीं आती तो हम सिखों और खालिस्तानियों में इस प्रकार मिट गए फर्क से कभी परिचित ना हो पाते। अरविंद केजरीवाल ने खालिस्तानियों की गोद में बैठकर पंजाब की वर्तमान सरकार को पैदा किया है। यह सरकार तब पैदा हुई जब देश के प्रधानमंत्री को चुनावी सभा में आने से वापस लौटा दिया गया था। शायद यह सत्य है कि दुनिया के डिप्लोमेसी के हिसाब से आज का सबसे पावरफुल पीएम जो फिलिस्तीन की धरती पर बेरोकटोक उतर सकता है, वह मोदी पंजाब में प्रवेश नहीं कर सकता।

प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब को भारत से एकीकृत बनाए रखने के लिए तमाम प्रयास किए। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने स्वयं के हार की कीमत पर और कैप्टन अमरिंदर सिंह के सीएम उम्मीदवारी की शर्तों पर कांग्रेस की सरकार बनवाई। ’17 की पंजाब कांग्रेस सत्ता बेहद ही अप्रत्याशित सत्ता थी। आम आदमी पार्टी पंजाब में हार से बिल्कुल बौखला गई थी। क्योंकि पैसे से लेकर संगठन तक खालिस्तानियों ने ’17 में जिस प्रकार केजरीवाल की मदद की, आम आदमी पार्टी का ’17 में हारना खालिस्तानियों के लिए प्रतिष्ठा का सबब बन गया था।

2022 किसी भी प्रकार खालिस्तानी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे और अरविंद केजरीवाल में जो एक सबसे बड़ी खासियत है कि वह किसी भी प्रकार किसी राज्य में किसी भी कीमत पर सत्ता पाना चाहते हैं। अपने मन में यह विश्वास रखने के साथ कि सत्ता आने के बाद सब कुछ ठीक कर लिया जाएगा। हालांकि उन्होंने ऐसा दिल्ली में साबित करके भी दिखाया। दिल्ली में लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपने तमाम सहयोगियों को देह के मैल की तरह निकाल कर फेंक दिया। लेकिन पंजाब में ऐसा ना हो सका। पंजाब आज एक स्टेट के तौर पर हार चुका है। पंजाब कट चुका है।

अरविंद केजरीवाल एक ऐसे नेता हैं जिन्हें लगता है अच्छे स्कूल और अच्छे अस्पताल जैसे मुद्दों पर सरकार बनाकर वह किसी भी स्टेट को व्यवस्थित रूप से चला लेंगे। लेकिन सत्य तो आज यही है कि जिस प्रकार पंजाब स्टेट के हाथों बेकब्जा हो चुकी है, अरविंद केजरीवाल को इस बात का बहुत मलाल होगा। भीतर ही भीतर वे टूट रहे होंगे। सर पीट रहे होंगे। एक पढ़े लिखे और समझदार व्यक्ति की इस मजबूरी को मैं समझ सकता हूं। लेकिन उन्होंने जो पाप किया है यह उनके माथे से कोई बांट नहीं सकता। चुनाव जीतने पर वे अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को लेकर जनता के सामने प्रस्तुत होते हैं। राजनीतिक कसमें उनकी नाम खाते हैं। पंजाब के पाप के लिए न केवल केजरीवाल को बल्कि उनकी बीवी और बच्चों को भी कीमत चुकानी पड़ेगी। शायद फिर भी पाप का यह बोझ हल्का हो पाए।

कश्मीर को सेटल कर लेना मोदी और अमित शाह जैसे शख्सियत के लिए बाएं हाथ का खेल है। उन्होंने कर दिखाया भी। लेकिन पंजाब ऐसे 10 कश्मीरों सा अकेला एक मसला है। मोदी की राजनीतिक पारी अबकी जा रही है। पंजाब का अब कुछ नहीं हो सकता। भाजपा की अगली पीढ़ी की राजनीति शायद कुछ सोचे भी। लेकिन जिहाद के नाम पर तलवार और बंदूक लहराते कश्मीरी मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर उनको घरों से निकालकर न्यूट्रलाइज करना आसान है, भिंडरावाले के नाम पर खुलेआम सड़क पर काफिला निकालें सिखों को न्यूट्रलाइज करना आसान नहीं। क्या इसका एक ही यह उपाय नहीं, कि गिनती के 5-10 सिख भी यदि स्वयं को भिंडरावाले विचार से अलग मानते हों, तो वे खुलकर खालिस्तान के खिलाफ आवाज़ उठाएं और बाकियों को स्टेट बड़े हिंसात्मक तौर पर न्यूट्रलाइज करें। तो बोलना शुरू करें क्या यदि कोई है एक भी सिख, जो बोले खालिस्तान मुर्दाबाद?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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