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क्रांतिकारी भगवानदास माहौर जिन्होनें मुखबिर फणीन्द्र घोष को भरी अदालत में गोली मार दी

Unsung heroes of Freedom Movement by Kanak Tiwari

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Positive India:Kanak Tiwari:
दुर्ग के निकट ग्राम अंडा में हमने 8 दिसंबर 1976 को चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के नजदीकी साथी स्वर्गीय सुखदेव राज की मूर्ति का अनावरण कराया ।मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल थे ।अध्यक्षता शहीद भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह ने की उसमें देश के चुनिंदा क्रांतिकारी जो आजाद और भगत सिंह के साथ ही थे कार्यक्रम में आए थे ।उनमें से एक प्रमुख क्रांतिकारी भगवानदास माहौर का परिचय और पत्र आप के लिए यहां मैं पोस्ट करता हूं ।। डा. भगवानदास माहौर
जन्म दिनांक: 27 फरवरी 1909 जन्म स्थान: ग्राम छोटी बड़ौनी जिला- दतिया (म.प्र)

श्री सच्चिदानंद बक्षी के संपर्क से सन् 1925 में क्रांतिकारी दल में प्रविष्ट हो गए और अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के दल के प्रमुख सदस्य बन गये। गोली से निशाना लगाने में आपको विशेष कुशलता प्राप्त रही है। लाला लाजपत राय पर सन् 1928 में लाठी प्रहार करने वाले पुलिस अधिकारी को मार डालने की योजना में आजाद ने माहौर जी को प्रमुख भूमिका दी थी। भुसावल में सन् 1929 में पकडे जाने के बाद भरी अदालत उन्होने मुखबिर फणीन्द्र घोष को गोली मारकर सारे देश में सनसनी फैला दी। उस मामले में आपको आजीवन कालेपानी की सजा हुई थी। लेकिन सन 1938 में बम्बई की कांग्रेसी सरकार द्वारा आप छोड़़ दिए गए।
माहौर जी सन् 1940 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्व के दौरान नजर बंद रहे। आजादी के बाद आपने पढ़ाई का क्रम शुरू किया और विशारद साहित्य रत्न , बी.ए. तथा एम. ए. की परीक्षा पास की। आप एक प्रसिद्ध साहित्यकार भी रहे। हिन्दी साहित्य प्रयाग ने आपको साहित्य महोपाध्याय की उपाधि दी। आगरा विश्वविद्यालय ने सन् 1965 में “1857 के स्वाधीनता संग्राम का साहित्य पर प्रभाव “ शोध प्रबंध पर पी.एच. डी. की उपाधि प्रदान की माहौर जी एक प्रसिद्व कवि भी रहे हैं। उनका संस्कृत का ज्ञान भी असाधारण रहा है। “मेरे शोणित की लाली से कुछ लाल धरा होगी ही“ उनकी विख्यात कविता है।
12 मार्च सन् 1979 को उनका लखनऊ में निधन हुआ।

69/1 टौरिया नरसिंहराव
झांसी 15-12-76

आदरणीय तिवारी जी,

सादर वन्दे। दुर्ग से आप सबसे विदा लेकर झांसी हम दोनों यथासमय ही पहुंच गए थे और मार्ग में किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं हुआ। खत्री जी तथा वारियर जी साथ थे तथा सारा समय हास्य विनोद और आप सबके स्नेह और सौजन्य की सुखद स्मृति की चर्चा में कट गया। झांसी पहुंचते ही बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के एक विशेष काम से तुरन्त बाहर चला जाना पड़ा। अतः आपको तुरन्त पत्र न लिख सका। क्षमा करें।

दुर्ग, भिलाई, रायपुर आदि के कार्यक्रमों में आपके साथ बिताए क्षण जीवन का महत्वपूर्ण संबल हो गए हैं। आपकी बहुमुखी प्रतिभा और सरल सहज सहृदयता से बहुत प्रभावित हूँ।

विश्वास है पुष्पा बहिन और आपसे जो स्नेह संबंध स्थापित हो चुका है। वह निरन्तर पढ़ता रहेगा। एक पुराना श्लोक याद आ रहा हैः

मनोभूमौजाता प्रकृतिचपला या विधिवशदि।
सखे संवर्द्धव्या प्रचुरगुण पुष्यप्रसारिणी
सदा संसेक्तव्या स्मरणसलिले नातुदिवसम्
यथानेयं म्लाग्नि ब्रजतु सहता स्नेहलतिका

सौ. यमुना माहौर सौ पुष्पा बहिन को बड़े स्नेह से याद कर रही हैं। घर पर माता जी, पिता जी को हम दोनों का सादर प्रणाम और बच्चों को प्यार। श्री सुच्चासिंह आदि बन्धुओं से सप्रेम नमस्कार कहिए।

विनीत
भगवानदास माहौर
15/12/76
साभार:कनक तिवारी

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