“कूं कूं कूं”-एक कहानी इंसानी संवेदनहीनता की
Personal memoirs by Dr.Sanjay Shrivastava
Positive India:By Dr.Sanjay Shrivastava.
“कूं कूं कूं”..की आवाज़ पूरी कॉलोनी में अचानक बिखरने लगी..धीरे धीरे वो आवाज़ बढ़ती जा रही थी…अब वो ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ में बदल गयी..वो कोई आवारा कुत्ते का छोटा सा पिल्ला था..कड़कड़ाती ठंड में सिमटा जा रहा था बेचारा…”कूं कूं कूं”उसने फिर गुहार लगाई…
“ओहो”..10 नम्बर की कोठी वाले साहब बड़बड़ाये”क्या है भई ये”?”किसकी आवाज़ है?सोने भी नहीं देता कमबख्त”…”थोड़ा देखो तो जी”…पत्नी से बोले..पत्नी भी गुर्राई…”अच्छा!मैं जाऊं?आप आराम से सोते रहो?मुझसे नहीं होगा…”…साहब उठे और कुनमुनाते हुए बाहर आये..चिल्लाए..”ऐ वॉचमैन!अरे क्या है ये?”..वॉचमैन जो उस पिल्ले पर थोड़ी दया दिखाने ही वाला था…दौड़ता आया…”जी साब!एक कुत्ते का बच्चा है साब!”…”अरे भगाओ इसे!मारो दो डंडे और चलता करो…”साब बोले…वॉचमैन ने धीरे से उस बच्चे को उठाया और गेट के बाहर छोड़ दिया…”कूं कूं कूं”पिल्ला फिर ठंड में थरथराता हुआ 11 नम्बर की कोठी के पोर्च में खड़ी कार के नीचे घुस गया..”अरे यार!”11 नम्बर वाले साहब बोले”ये किसकी चांय्य चांय्य है यार?..अरे वॉचमैन!भगाओ इसको यार!पूरा नशा उतार दिया साले ने”..वाच मैन ने उस पिल्ले को कार के नीचे से निकाल कर बाहर सड़क पर छोड़ दिया… वो बेचारा आगे बढ़ गया..”कूं कूं कूं”चिल्लाते हुए सामने 21 नम्बर की कोठी में बरामदे में पहुंच गया..”कूं कूं कूं”…आवाज़ तेज़ हो गयी थी..कांप रहा था बेचारा..
21 नम्बर वाले साहब झल्लाए हुए निकले और उस पर आधा बाल्टी पानी उड़ेल दिया…वो लड़खड़ाते हुए भागा..आवाज़ बन्द हो गयी..सब चैन से सो गए थे..
सुबह देखा तो कोठियों के बीच सड़क पर एक पिल्ले की लाश पड़ी थी…10 नम्बर वाले साहब दूध लेने निकले..देखा..”अरे रे रे…ये बेचारा कैसे मर गया..अरे सुनिए कोई…”11 नम्बर वाले निकले उसको देख कर बोले..”बेचारा छोटा पिल्ला..लगता है बेचारा ठंड से मर गया..”इतने में 21 नम्बर वाले साब दिखे…”अरे देखिए तो यहां पिल्ला मरा पड़ा है”एक नए आवाज़ लगाई..वे भी आये…”ओहो”बेचारा!हे भगवान इतने छोटे पिल्ले ने किसका क्या बिगाड़ा था..और तो और,किस राक्षस ने इस पर पानी भी डाल दिया है”…च च च!…
फिर तीनों ने संयुक्त स्वर में आवाज़ लगाई”अरे वॉचमैन!अरे इसको फेंक दो ,निगम की गाड़ी इसे ले जाएगी..”फिर तीनों अपनी अपनी राह लग लिए..वॉचमैन लोग उसे कुछ देर दयाभरी दृष्टि से देखते रहे..पिल्ले की अधखुली आंखें उनसे कुछ कहने की कोशिश करती रहीं😢😢😢…फिर उसे किनारे फेंक कर वे अपनी डयूटी पर वापस हो गए…दुनियां चलती रही…ना किसी का कुछ गया..ना किसी का काम रुका..😢😢😢
लेखक: डॉक्टर संजय श्रीवास्तव