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किंतु कुछ भी कर लें बिल्लियों को खंभा नोचने से नहीं रोका जा सकता है ।

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
लोकतंत्र का जुआ निरीह सरकारी कर्मचारी के कंधों पर रखा है । जब बैलट से चुनाव होते थे तब चालीस चालीस घंटे गिनती चलती थी और अगर पुनर्मतगणना हो जाये तो चालीस घंटे और जोड़िये । एक बार मतगणना कर्मी अंदर प्रवेश कर जाये तो मतगणना पूरी होने से पहले निकल नहीं सकता ।
पहले मतदाताओं की संख्या जितनी हुआ करती थी उससे तीन गुना और कहीं कहीं चार गुना तक बढ़ गई है । सीटें उतनी ही हैं तो चुनाव आयोग ने कठिनाई बढ़ते देख ईवीएम से चुनाव शुरू किया । अब हारने वाले दल बैमंटी का आरोप लगा कर अपने समर्थकों को उकसाने लगे हैं ।

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अगर चुनाव सुधार ही करने हैं तो इस बार ऐसी मशीन लगानी चाहिये जो मतदान समाप्त होते ही ऑनलाइन रिजल्ट घोषित कर दे । अब तो बहुत सी परीक्षायें ऑनलाइन होने लगी हैं । वोटर को भी बूथ पर जा कर ऑनलाइन मतदान कर के मानवीय हस्तक्षेप कम से कम कर देना चाहिये ।

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किंतु कुछ भी कर लें बिल्लियों को खंभा नोचने से नहीं रोका जा सकता है ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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