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किसी के बाप का हिंन्दोस्तान थोड़े है

- विजय बहादुर सिंह की कलम से-

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Positive India:Vijay Bahadur Singh:
केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के दस द्विवसीय आमंत्रण पर आया तो विश्विद्यालय के छात्रों द्वारा उसके प्रवेश द्वार वाले चतुष्पथ पर हिन्दी में लिखा उर्दू शायर स्व.राहत इन्दौरी का यह वाक्य ( मिसरा ) एक बड़े पोस्टर पर दिखा। पूछने पर पता लगा कि छात्रों ने इसे अपनी राष्ट्रीयता को प्रदर्शित करते हुए लगा दिया है। यहाँ का छात्रसंघ यद्यपि वामपंथी वर्चस्व का है पर राष्ट्रीय चेतना तो उसकी संवैधानिक मर्यादाओं का आचरण करने में यकीन रखती है।जीती भी वही है।
कल हिन्दी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर डा. जयश्री के साथ यहाँ के अतिपूज्य दैवी केन्द्र माने जाने वाले पद्मनाभ स्वामी देवालय गया तो पुजारियों के आग्रहों के अनुसार कुरता और बनियान उतार ,अचला धारण कर के जाना पड़ा, पारंपरिक जनेऊधारी ब्राह्मण पुजारियों के बीच ,उन्हीं के द्वारा स्थापित मर्यादाओं का पालन करते,आरती वेला के उस कर्मकांड का साक्षात्कार करने जो इतनी सारी समाजवादी और वामपंथी सरकारों के लम्बे शासन -कालों के बावजूद आज तक अव्याहत और अक्षत है।
संस्कारत:आर्यसमाजी होने के चलते ऐसे किसी भी अवैदिक कर्मकांड और पौराणिकता में सिरे से अनास्था के बावजूद अगर मैं जानने और प्राचीन देवालय के अति दुर्लभ स्थापत्य शिल्प की भव्यता,विराटता और सुनियोजित सांस्कृतिक संरचना को उसके अंतरंग में महसूस कर सका तो यह भी अनुभव कर सका कि भारत में कैसी भी राजनीति हो ,उसका एक चेहरा आध्यात्मिक और नैतिक भी संभव होना चाहिए।यह शायद परंपरागत जीवन मूल्य है,जिसे यह देश हमेशा याद रखना चाहता हो।
तथापि यहाँ के सामाजिक भोजन में बीफ भी कोई अति वर्जित खाद्य नहीं है गो कि वैष्णवी शाकाहारियों की भी एक विशिष्ट आबादी यहाँ विज्ञापित सदाचार के साथ अपना जीवन जी रही है।पर दोनों जीवन पद्धतियों के बीच कोई तनाव ,वैमनस्य अथवा वैर कहीं महसूस नहीं होता।खान पान ,रहन सहन में व्यक्तिगत रुचि और स्वतंत्रता को व्यक्ति का अपना मौलिक अधिकार माना जाता है।
मसजिदों की भी यहाँ विपुल संख्या है और वे अलस्सुबह से लेकर देर शाम तक पाँचों वक्त की नमाज अदा करवाने में यकीन रखती हैं और अजान देती हैं।
मलयालम तो यहाँ की जनभाषा ही है पर हिन्दी बोलने का मन सबका रहता है जो थोड़ी बहुत भी हिन्दी जानते हैं।
कुछेक उत्तर भारतीय ढाबे भी हैं जो शर्मा ढाबे के नाम से हैं गोकि ये न पंजाबी हैं न हरियाणवी। ज्यादातर बिहारी या बंगाली और नेपाली मिश्रण के हैं नाम फिर भी सबके शर्मा ढाबे हैं।

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साभार: विजय बहादुर सिंह-(ये लेखक के अपने विचार है)

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