Positive India:Dayanand Pandey:
अनपढ़ या पढ़े-लिखे का सेक्स चेतना से कुछ लेना-देना नहीं होता , इंजीनियरिंग की डिग्री लिए हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इतनी सी बात भी नहीं जानते। इस मामले में भाषा या पढ़ाई-लिखाई के कोई मायने नहीं होते। एक पढ़े-लिखे इंजीनियरिंग की डिग्री लिए अरविंद केजरीवाल , शराब बेच रहे थे , नीतीश सेक्स बेच रहे हैं। इतनी कि अपनी निंदा ख़ुद करने के लिए विवश हो गए। मज़ा यह कि इस मामले पर नीतीश कुमार के माफ़ी मांगने पर बिहार विधान सभा का अध्यक्ष , अपनी मूर्खता और चमचई के चलते , सदन में नीतीश कुमार से कह रहा रहा था कि , यह आप का बड़प्पन है। दिलचस्प यह कि जद यू अध्यक्ष ललन प्रसाद भी नीतीश कुमार के भाषण से सहमत हैं। एक समय था कि राबड़ी देवी , भोजपुरी भाव में मज़ा लेते हुए नीतीश कुमार को ललन प्रसाद का बहनोई बताती थीं। वैसे राबड़ी ने मुस्कुराते हुए बड़े मुलायम ढंग से नीतीश की बात को ग़लत बताया है। जब कि तेजस्वी नीतीश की तारीफ़ में हैं। जाने लालू की क्या राय है।
एक बात यह भी है कि नीतीश कुमार का कोई सलाहकार उन्हें सही राय देने वाला है। क्यों विधान सभा में असभ्य और अश्लील भाषण देने के एक घंटे बाद विधान परिषद में भी वह अभद्र , अश्लील और असभ्य भाषण नीतीश कुमार ने दुहरा दिया। अगर कोई सही सलाहकार होता , नीतीश कुमार का तो यह अभद्र भाषण फिर से नहीं दुहराते। सच ही राजनीति में नीतीश कुमार का अंतिम समय आ गया है। लोकतंत्र और संसदीय राजनीति का तकाज़ा यही है कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे कर राजनीति और सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेना चाहिए। अलग बात है कि अपनी जातीय अस्मिता के तहत वह ऐसा कुछ नहीं करने वाले। लालू याद आते हैं। याद कीजिए जब लालू ने नीतीश को भुजंग कहा था। पिछड़ी राजनीति , जातीय राजनीति की नफ़रत और ज़हर बहुत दूर तलक चला गया है।
इसी लिए सुशासन बाबू अब , अभद्र , अश्लील और निर्लज्ज बाबू बन कर अब उपस्थित हैं। फिर भी कोई उन का बाल-बांका नहीं बिगाड़ सकता। क्यों कि वह इण्डिया के सूत्रधार है। जातीय जनगणना के अगुआ है। जातीयता के अलंबरदार हैं। नीतीश कुमार मानसिक रूप से अभी भी टीनएज हैं , वृद्ध नहीं। गांव के लाखैरे लवंडों की भाषा , उन की मानसिकता और ज़ुबान पर है। हमारे एक जानने वाले एक बार थाईलैंड की यात्रा पर गए थे। लौट कर अपनी अय्याशियों की डिटेल देते हुए हर बार नीतीश वाली बात बताते। किसी ने उन से पूछा , ऐसा हर बार क्यों करते थे ? उन का कहना था , ताकि एड्स न हो जाए ! अब वही तरीक़ा , नीतीश कुमार ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों के बाबत , परिवार नियोजन के लिए तजवीज कर रहे हैं। हद्द है ! नीतीश कुमार के एक गुरु थे शरद यादव जो पढ़ी-लिखी स्त्रियों को बालकटी से विभूषित कर गए हैं। शरद ने तो इस बात के लिए कभी माफ़ी नहीं मांगी।
नीतीश कुमार को जान लेना चाहिए कि निंदा करने वालों का अभिनंदन करने से , स्त्री का अपमान नहीं धुला करता। सरकार बनाने के लिए बारंबार पलटू राम बनना और बात है , स्त्रियों का अपमान करने के लिए अभद्र , अश्लील और निर्लज्ज भाषण दे कर पलटी मारना , कलंक है। फिर जिस बॉडी लैंग्वेज और चीख़-चिल्लाहट के साथ नीतीश कुमार ने माफ़ी मांगी है , उस में दुःख नहीं , हेकड़ी दिखी है। अहंकार दिखा है। पिछड़ापन इसे ही कहते हैं। किसी पिछड़ी जाति को नहीं। ताज्जुब बिलकुल नहीं है कि किसी हिप्पोक्रेट वामपंथी , किसी फ़रेबी सेक्युलरिस्ट आदि-इत्यादि की ज़ुबान निर्लज्ज बाबू की निर्लज्जता पर नहीं खुली। सब को लकवा मार गया है। बात-बेबात संसदीय राजनीति और संविधान की दुहाई देने वाले दोगले लोगों की यही कैफ़ियत है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)