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कठमुल्ले बहुत बड़ी ताकत हैं मोदी और भाजपा की

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
यह तो सही बात है कि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक ताकत दो ही हैं। एक राहुल गांधी दूसरे , लीगी मुसलमान। राहुल गांधी तो लतीफ़ा हैं । कभी नहीं बदल पाएंगे। लेकिन मुसलमान तो बदल सकते हैं। जब तक मुसलमान अल्पसंख्यक होने का पट्टा अपने गले से निकाल कर देश की मुख्य धारा में नहीं आएंगे, बात बेबात इस्लाम , इस्लाम का पहाड़ा रटते रहेंगे, इस्लाम पहले , देश बाद में का राग अलापते रहेंगे , तीन तलाक खत्म करने का विलाप , 370 से सहानुभूति , इमरान खान को शांति दूत बताते रहेंगे ,मोदी को मज़बूत बनाए रखेंगे। जिस दिन कठमुल्लापन छोड़ कर, देश पहले , इस्लाम बाद में सीख जाएंगे मुसलमान , थोथे और इकतरफा सेक्यूलरिज्म की चोचलेबाजी से छुट्टी ले लेंगे, देश की मुख्य धारा में समाहित हो जाएंगे, मोदी और भाजपा की ताकत फिनिश हो जाएगी। दुकान बंद हो जाएगी।

लेकिन भारत के मुसलमान कभी ऐसा कर पाएंगे , मुझे शक है। इकतरफा सेक्यूलरिज्म की दुकान चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों की गुलामी से मुसलमान छुट्टी पाएंगे , इस पर भी मुझे शक है। दुनिया की इतनी तरक्की के बाद भी भारतीय मुसलमान मदरसे की पढ़ाई और गाय का मांस खाने को ही अपनी पहचान और अस्मिता बताने के लिए, जी जान से लड़ रहा है। ऐसे मंज़र में मोदी नहीं मज़बूत होंगे तो क्या राहुल , प्रियंका और डी राजा मज़बूत होंगे ? कभी नहीं । यह लिख कर रख लिजिए। राहत इंदौरी याद आते हैं और उन का एक शेर: कब्रों की जमीने दे कर हमें मत बहलाइए/ राजधानी दी थी , राजधानी चाहिए। पंचर बनाते हुए, रुलर बनने की तमन्ना से जब तक भारतीय मुसलमान छुट्टी ले कर वैज्ञानिक पढ़ाई और देश की मुख्य धारा से नहीं जुड़ेंगे, जनसंख्या नियंत्रण नहीं करेंगे, तब तक मोदी मज़बूत रहेंगे। अभी तो आलम यह है कि एक से एक प्रोग्रेसिव भी मोदी विरोध में कठमुल्ले बन गए हैं। कठमुल्ले बहुत बड़ी ताकत हैं मोदी और भाजपा की। ज़रुरत इस बात को समझने की है। क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया वैज्ञानिक है। यह हिंदू, मुसलमान इसी विपरीत प्रतिक्रिया की फसल है। पढ़े-लिखे, अपने को प्रोग्रेसिव कहने वाले कठमुल्लों को समझना होगा इस बात को।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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