Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
कर्नाटक के घमासान पर सोशल मीडिया मे भी काफी प्रतिक्रिया आ रही है । यह कोई आज की समस्या नही है । पार्टियाँ तो एक दूसरे के पाप गिनाने मे ही व्यस्त है । कुल मिलाकर इस हमाम मे सब नंगे है । सब लोग निष्पक्ष होकर, न देखकर पार्टी वाला ही चश्मा लगाये हुए है । भजनलाल से लेकर कर्नाटक तक का सफर हो गया है। न कोई पार्टी न कोई नेता इस विषय पर पहल करना चाहते है । इस पद को सेवा का नही लाभ का पद माना जाता है । कौन दल है और कौन सुप्रीमो है जो इस विषय पर सवाल जवाब तय करे । जब खबरे आती है कि टिकट की खुले आम बोली लगाई जा रही है तो कौन समाजसेवी होगा जो इतने महंगे मे टिकट खरीदकर चुनाव लड़ने का साहस करे । एक जनप्रतिनिधि बनने के लिए इतना खर्च हो जाता है कि पांच साल की तनख्वाह भी कम पड़ जाये ।
राज्य सभा मे एक भगोड़ा उद्योगपति जैसे लोग भी पहुंचे है, इनसे पूछो कैसे भेजा गया ? जब मौका मिले तो कोई क्यो छोड़े वाली कहावत चरितार्थ हो रही है । फिर चुनाव का खर्च, यह खर्च ये लोग क्यो उठाने लगे । इसीलिए दलबदल कानून ऐसा बनाया गया, जहाँ दलबदल के सुराग की संभावना बनी रहे ।
अगर दल बदलने से सदस्यता ही खत्म हो जाती तो ये दिन देखने ही क्यो पड़ते ? कुल मिलाकर नियत ही साफ नही थी । यहाँ जनता ही ठगी जा रही है, पहले भी ठगी जा रही थी । नेता लोगो ने न तो पहले चरित्र बदला था न आज । जो सत्ता मे रहता है वो अपने तरह की राजनीति कर रहा है ।
पर एक बात और जनप्रतिनिधि क्यो बिक जाते है ? क्या यह उस क्षेत्र के जनता के साथ धोखा नही है ? एक बात सही है कि आज की राजनीति सिद्धांत की राजनीति नही है । अब पैसो के बल पर, शक्ति के बल पर ही राजनीतिक मुकाम संभव है । जब पैसों से ही राजनीति है तो इस तरह के घटनाक्रम पर कभी भी अंकुश संभव नही है । पहले मतदाता बिकता है अपने कीमत पर, फिर जनप्रतिनिधि भी बिक जाता है । आज एक दल जो इतना व्यथित है, इसी ने तो भजनलाल का ठप्पा बदलकर यही काम किया था । विगत सात दशक में ऐसा कानून क्यो नही लाया गया जिससे आज ये दिन देखना नही पडता। तब परिस्थितियाँ अपने अनुकूल थी । कुल मिलाकर सब राजनीति कर रहे है और घड़ियाली आंसू बहाने का काम कर रहे है । कर्नाटक जैसे नाटक चलते रहेंगे इस पर विराम असंभव है । पर्दे के पीछे सभी एकमत है । ये तो जनता के लिए किया जाने वाला मेलोडी ड्रामा है । बस फर्क इतना रहता है ये आज हल्ला कर रहे है आने वाले समय मे सामने वाले करेंगे । पर समाधान मे कोई पहुंचना नही चाहेगा ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)