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कल्कि प्रभास से अधिक अमिताभ की फिल्म है।

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
यह शायद भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली ही बार हो रहा है कि कोई अस्सी साल का बुजुर्ग अभिनेता इतने बड़े बजट की फ़िल्म को अपने कंधे पर उठा कर पार लगा रहा है। यह केवल और केवल अमिताभ कर सकते हैं। यह बताते हुए कि यह किसी समीक्षक का नहीं, अमिताभ के एक प्रशंसक का आलेख है, मैं कह सकता हूँ कि कल्कि प्रभास से अधिक अमिताभ की फिल्म है।

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मोहब्बतें से जब अमिताभ बच्चन की दूसरी पारी शुरू हुई तो हम कुछ दोस्त चर्चा करते थे कि अमिताभ कभी बूढ़े नहीं होंगे। आज बयासी वर्ष के अमिताभ सिद्ध कर रहे हैं कि वे बूढ़े नहीं हुए, वे कभी बूढ़े नहीं होंगे।

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बहुत से अभिनेता ऐसे हुए जिन्हें उनकी किसी एक बड़ी सफलता ने मार डाला। जैसे मुकेश खन्ना लम्बे समय तक भीष्म पितामह की छवि से बाहर नहीं निकल सके, जैसे अरुण गोविल प्रभु श्रीराम की छवि से कभी बाहर नहीं आ सके, वैसे ही प्रभास भी जैसे बाहुबली पर रुक गए हैं। वही नाक पर गुस्सा लिए एक चिढ़े हुए युवक की छवि! वे अब शायद ही उससे बाहर आ सकेंगे। अब तक तो नहीं ही आ पाए हैं। उनकी जो गति आदिपुरुष में है, वही कल्कि में… हाँ दिशा पाटनी ठीक हैं। उन्हें पता है कि अभिनय उनका काम नहीं, सो वे वही कर रही हैं जो उनसे हो सकता है।

पर अमिताभ तो अमिताभ हैं। उन्हें आप दो मिनट का रोल दीजिये या दो घण्टे का, वे महफ़िल लूट ले जाएंगे। हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनका विकल्प नहीं आया अबतक! आगे भी कोई शायद ही आये। कल्कि में या तो नाग अश्विन की कल्पना है, या अमिताभ का अभिनय। शेष कुछ नहीं…

उनके दृश्य भले तकनीकी सहायता लेकर भव्य बनाये गए हों पर वे योद्धा की तरह लगते तो हैं। उनको देख कर आंखें तृप्त हो रही हैं, उनकी भारी आवाज कानों को आनन्द दे रही है। परदे पर उनका होना केवल उस कहानी की उम्मीद नहीं है, बल्कि वे दर्शक की भी उम्मीद हैं। जैसे उनके बाद कुछ और न हो…

अपनी दूसरी पारी में बच्चन ब्लैक, देव, पा, पीकू, पिंक, जैसी फिल्मों के जरिये जो मील के पत्थर लगाते चल रहे हैं, कल्कि उसी शृंखला की फ़िल्म है। यह फ़िल्म बच्चन के लिए ही याद रह जायेगी।

पिछले दिनों इसी फिल्म के प्रमोशन की एक वीडियो आई थी, जिसमें मंच पर खड़े अमिताभ सीढ़ियों से आ रही गर्भवती दीपिका को सहारा देने के लिए लगभग दौड़ते हुए आगे बढ़ते हैं और उनका हाथ पकड़ कर मंच पर ले जाते है। एक बयासी वर्ष के व्यक्ति में इतना आत्मविश्वास, इतनी ऊर्जा, इतना बल बहुत ही दुर्लभ है। इस फ़िल्म में भी वह बुजुर्ग यूँ ही दौड़ दौड़ कर सबको सहारा दे रहा है। अभिनेताओं को, निर्देशक को, कहानी को, सङ्गीत को… इस उम्र में उनका गीत गाना अद्भुत ही है।

अपनी पुस्तक मधुशाला के पचासवें संस्करण के समय डॉ बच्चन ने लिखा था- “अर्धशती की होकर के भी षोडष वर्षी मधुशाला!” अमिताभ 82 वर्ष में भी षोडश वर्षी ही हैं।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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