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काका दिल तोड़ दिया यार- कनक तिवारी

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Rajesh Khanna
Positive India:Kanak Tiwari:
राजेश खन्ना अलविदा कह कर अपने अभिनय के संसार में हमें यादों की लहरों पर छोड़ गए। इसमें कहां शक है कि राजेश हिन्दी फिल्मों के पहले सुपरस्टार थे।
मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद उस समय लोकसभा सदस्य रहे दिग्विजय सिंह ने अपने परिवार की पुश्तैनी रियासत राधोगढ़ की विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया।
पहली सभा के बाद ही हमारे रिश्ते ऐसे हो गए मानो बचपन से एक दूसरे को जानते हैं। यही तो बड़े फिल्मी कलाकारों का तिलिस्म है। वे अपने अंदर की अपरिचय की चट्टान को अपने ही व्यक्तित्व के विस्फोट से तोड़ देते हैं। फिर ‘खुल जा सिमसिम‘ कहते अपने मन की अंदरूनी बातों तक में आपको राजदार बना लेते हैं। कुछ दिनों उनके साथ रहने से एक अलग किस्म की पुलक का होना स्वाभाविक था। आलीशान सात सितारा जिंदगी जीने वाला यह शख्स पुरानी ऐंबेसडर गाड़ियों में आसानी से बैठ जाता था। वह अन्यथा उसकी आदत में शुमार नहीं रहा होगा। अचानक उनकी फरमाइश होती, ‘कनक भाई, मैं बीड़ी पीना चाहता हूं। मुझे सिगरेट नहीं पीनी।‘ वे किसी भी ग्रामीण श्रोता या कार्यकर्ता से सहज भाव से बीड़ी लेकर सुलगा लेते। शरारती मुद्रा में मुझ पर धुंआ छोड़ते कहते बीड़ी नहीं पी तो क्या खाक राजनीति करोगे। मैं कहता ‘खाकसार तो हूं न।‘
सब्जी न आई थी, न उसने आना था। आतिथेय ने हाथ जोड़कर सबसे भोजन करने की प्रार्थना की। मालवा निवासी दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह बिल्कुल स्वाभाविक ढंग से खाने लगे। यह फितरत तो उनमें बचपन से रही होगी। मेरे, मेरी पत्नी और राजेश खन्ना के हाथ थमे रहे। मैंने फिर फुसफुसाकर कहा, ‘सब्जी तो नहीं आई।‘ उन्होंने कहा यार मांग लो। भूल गए होंगे। मेरा बोलना ठीक नहीं होगा।‘ मैंने आतिथेय को इशारे से बुलाकर कहा ‘क्या हमें सब्जी नहीं परोसी जाएगी?‘ उनकी मूछों में सवा नौ बजे की जगह आठ बजकर बीस मिनट हो गए। हकलाकर उन्होंने पूछा, ‘सब्जी चाहिए?‘ साफ ऐलान था कि सब्जी का कोई दस्तूर ही नहीं है। मैंने कुछ ढिठाई के साथ कहा, ‘भाई, मैं छत्तीसगढ़िया हूं। बिना सब्जी के तो मैं नाश्ता भी नहीं कर सकता। हमारे इलाके में तो बीसियों किस्म की हरी भाजियां होती हैं। हम उनसे ही काम चला लेते हैं। ये गोभी, शलगम और गाजर जैसी नकली सब्जियां हमें नहीं चाहिए। कुछ भी तो दीजिए। इस दाल के साथ खाना पड़ा तो कल ही मेरा पुर्नजन्म हो जाएगा।‘
आतिथेय ने घर मालकिन से पूछा। बमुश्किल पाव भर भिंडियां उनके घर पड़ीं थीं। मेरी पत्नी ने समझाया। उसके जल्द से जल्द छोटे छोटे टुकड़े काटकर हींग, मेथी, नमक और हल्दी डालकर छौंक दो। बस दो मिनट पकाकर वही अधपकी सब्जी मेरे पति को दे दो। राजेश खन्ना भी धीरे धीरे खा रहे थे। मैं भी बाटी का टुकड़ा लेकर चबाने लगा। दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह को अंदाज नहीं था कि हरी सब्जियां उनके चुनाव प्रचार में हींग और लाल मिर्च के मुकाबले आरक्षित कोटे में आएंगी। मेरी थाली में अधपकी भिंडी की सब्जी का आगमन एक बड़ी ऐतिहासिक घटना की तरह हुआ। उसका एक तिहाई हिस्सा मैंने पत्नी की थाली में चुपके से सरका दिया। इस मामले में मैं उसे आज भी अर्धांगिनी नहीं तिहांगनी ही कहता हूं। राजेश खन्ना पूरी तौर रात्रिकालीन चौकीदार की तरह चौकन्ने थे। मेरी थाली की आधी भिंडिंयां अपनी थाली में उठाकर रखते हुए अपने प्रसिद्ध डायलाॅग की पैरोडी बनाते हुए फुसफुसाए ‘हमको सब्जी दइदो सरकार!‘ फिर फुसफुसाए, ‘अरे यार ये नहीं मिलतीं तो पुनर्जन्म तो मेरा भी हो जाता। कल नहीं होता लेकिन यहां से जाते जाते तो हो जाता।‘ वे दाएं हाथ से दाल की वजह से लाल होती हुई उंगलियों और लाल होते गालों के साथ खाना किसी तरह निगलते। । राजेश खन्ना और देवआनंद की कुछ फिल्मों में नायिका का नाम पुष्पा रहा है। राजेश ने चुहल में मुझसे यह भी कहा था कि पुष्पा संबोधन वाले जितने भी हमारे फिल्मी डायलाॅग हैं उन्हें याद कर लो। उसी तरह बोलोगे तो तुम्हारा जीवन बेहद रोमांटिक हो जाएगा।
साभार:कनक तिवारी

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