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कबीर सिंह- शाहिद का साहसिक , सराहनीय व सफल क़दम

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Positive India:Gajendra Sahu:
जब से कबीर सिंह फ़िल्म लगी है तब से अब तक लोग फ़िल्म की आलोचना कर रहे है बवाल मचा के रख दिया है और यही वो लोग है जो इस फ़िल्म को २०० करोड़ की दहलीज़ तक ले आए है ।
कुछ लोग , सामाजिक संस्था और फ़िल्म समीक्षक इस फ़िल्म को समाज के विपरीत बता रहे है । महिला को केवल समान की तरह प्रयोग किया गया है बताया जा रहा है महिला विरोधी फ़िल्म है । और तो और ये कहना है कि यह फ़िल्म समाज के लिए ठीक नहीं है और ऐसी फ़िल्मों से आजकल की युवा पीढ़ी बिगड़ जाएगी । तो मैं उन बुद्धिजीवी से कहना चाहूँगा कि अभी कुछ सालों से बॉलीवुड में अश्लील और फूहड़ता भरी फ़िल्मों का अंबार लग गया है । यदि समाज की इतनी ही चिंता है तो पहले से ही इस प्रकार की फ़िल्मों का विरोध क्यूँ नहीं किया । आज पानी सर के ऊपर ना उठता , बात यहाँ तक पहुँचती ही नहीं।
और जो युवा वर्ग इस फ़िल्म को देखकर प्यार में धोखा खाने के बाद कबीर सिंह बनने का , उसे कॉपी करने का रत्ती भर भी सोच रहे है तो जाओ बे !! एक बार *शादी में ज़रूर आना* फ़िल्म भी देख लेना कि प्यार में धोखा खाने के बाद हमारे सत्तू भाई किस तरह सत्येन्द्र मिश्रा IAS ऑफ़िसर (कलेक्टर) बनते है । उससे सीखो और बनो कलेक्टर और जब सत्येन्द्र मिश्रा बनने की चाह ख़त्म हो जाए न तो कबीर सिंह को तो भूल ही जाना । हमारे समाज की एक गंदी आदत है अच्छी चीज़ों से नहीं हमेशा ग़लत चीज़ों से मोटिवेट हो जाते है । पर हाँ अब युवा वर्ग समझदार है वो समझता है कि क्या सही है और क्या ग़लत । हर फ़िल्म समाज का आइना नहीं होती , हर फ़िल्म शिक्षा नहीं देती , कुछ फ़िल्मे सिर्फ़ मनोरंजन के लिए होती है ..हाँ बस फिर यही है कबीर सिंह ।

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अब बात विवादित फ़िल्म कबीर सिंह की ।। जिन्हें भी लगता है कि फ़िल्म में *तेरे नाम* वाले राधे भैया और *देवदास* वाले देव बाबू का कॉम्बिनेशन *कबीर सिंह* के अंदर देखने को मिलेगा तो आप जैसे महान लोगों के लायक तो ये फ़िल्म है ही नहीं। तीनो की अपनी अलग पहचान है रूतबा है जलवा है । तो भाइयों इन तीनो को अपने ही स्टोरी में रहने दो । कबीर सिंह फ़िल्म में मनोरंजन के अलावा कुछ है तो वो है शाहिद .. शाहिद … शाहिद..।।

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मैं शाहिद का फ़ैन नहीं हूँ न ही फ़िल्म समीक्षक । पर अगर शाहिद की उनके ऐक्टिंग की तारीफ़ ना करूँ तो शायद मैं फ़िल्मी दुनिया का प्रेमी बिलकुल नहीं कहलाऊँगा ।
फ़िल्म में शाहिद कपूर ने एक गुसैल , शराबी , लड़कीबाज़ , लापरवाह जैसे तमाम शब्द कम पड़ जाए ऐसे डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट का किरदार निभाया है । शाहिद कपूर इस फ़िल्म में कोई नायक नहीं है और नाहीं चोकलेटी हीरो ।
फ़िल्म में हीरो तो हीरोइन को गुंडो से बचाता है पर यहाँ शाहिद ने तो ख़ुद ही हीरोइन को लप्पड़ ही लगा दिया । हीरो तो समाज के बीच प्रेरणास्त्रोत होता है पर यहाँ शाहिद तो उस समाज को चुभता है ।
हीरो तो लड़कियों की सम्मान की रक्षा करता है पर यहाँ शाहिद तो चाक़ू की नोक पर लड़कियों से ज़बर्दस्ती करता है ।
हीरो तो सभी को धूम्रपान , शराब और बुरी आदतों से दूर रहने की सलाह देता है पर यहाँ शाहिद ने तो पूरी फ़िल्म में इसके अलावा कुछ किया ही नहीं ।
शाहिद कपूर ने इस फ़िल्म से ये साबित कर दिया है कि वे नायक नहीं अभिनेता है जिसे जैसा अभिनय करने बोला जाएगा वैसा अभिनय वो करेंगे । शाहिद के साहस की तारीफ़ इसलिए भी करनी पड़ेगी की उन्होंने अपने छवि के विपरीत ऐसे रोल को चुना जिसे समाज बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करेगा जैसे भरी पब्लिक के सामने पैंट के अंदर बर्फ़ डालना , लड़की को थप्पड़ मारना, गाली बकना , बड़ों से बदतमीज़ी करना , बेइंतहा हर प्रकार का नशा करना ,लड़की को चाक़ू दिखाना ।

मेरा यक़ीन मानिए जब आप फ़िल्म देखंगे तो समाज के हित का आपको ज़रूर ख़याल आएगा । पर आप शाहिद के साहसिक क़दम , उनके दमदार अभिनय को ज़रूर सराहाएँगे । रही सफलता की बात तो फ़िल्म के कलेक्शन और लोगों का रीऐक्शन सब कुछ बयान कर देती है ।

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