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कातर दृष्टि ताक रही है असह्य वेदना झाँक रही है

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:

कातर दृष्टि ताक रही है,
असह्य वेदना झाँक रही है,
मौन खड़े हम पंगु बनकर,
हमें मूढ़ता हाँक रही है ?

कुर्बानी का अर्थ न जाना,
अहंकार को व्यर्थ न माना।
खून हो गया अधिकारों का,
नाम दे दिया त्यौहारों का,
जिम्मेवार कौन है बोलो ?
बेबस रूदन चीत्कारों का।

लेखक:कवि राजेश जैन राही, रायपुर

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