जब काले पानी की वाईपर पर जेल छोटी पड़ने लगी तब बनी सेलुलर जेल। द्वितीय किस्त
The story of Cellular Jail.
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आजादी की लौ इतनी ज्यादा भभक रही थी कि अंग्रेजो को यह वाईपर जेल छोटी पड़ने लगी । फिर सन 1900 के करीब उन्हे अंडमान मे सेल्यूलर जेल के निर्माण का फैसला किया । अभी कुछ साल पहले आये सुनामी मे वाईपर द्वीप को काफी नुकसान पहुंचा । फिर उस समय के मुद्रा के हिसाब से जैसा मैंने अपने पहले लेख मे लिखा है, कि पांच लाख का खर्च आना था, जो बढ़कर सात लाख हो गया था। जबकि इसमे श्रम की लागत नही लगी है । पूरे जेल को कैदियों से बनवाया गया है । सेलुलर जेल को बनाने मे करीब तीन करोड ईंटो का उपयोग किया गया । सन 1896 से सन 1906 तक दस साल इस जेल को बनने मे लगे । इस जेल मे क्रांतिकारियों को इस लिए लाया जाता था कि मानसिक रूप से टूटे । उस समय उस जेल मे सात विंग थे, अब सिर्फ तीन विंग रह गए है । 793 कैदियों की क्षमता वाला यह जेल इस देश के लिए मर मिटने वाले शहीदो की कहानी कहता है । यहाँ आने पर ही अहसास होगा कि देश के लिए इन क्रांतिकारियों ने कितनी यातनाये सही है, जिसकी कल्पना से ही आदमी सिहर उठे ।
उसके बाद अपनी घटिया राजनीति के लिए इनका उल्लेख करना सिर्फ मानसिक दिवालियापन ही बताता है । जिस माहौल मे यह वीर रहे है, जिसमे क्रूर यातनाये भी शामिल है, उनको ललकारने वाले यह तथाकथित नेता यातना के मात्र एक महिना भी जी ले तो यह देश मान जाएगा । यहां एक आम आदमी ऐसी परिस्थितियों मे पागल हो जाएगा ।
सेल्यूलर जेल मे इस तरह की व्यवस्था रखी गई थी कि कोई कैदी एक दूसरे कैदी से बात तक न कर सके । बताते है कि उन्हे खाने के लिए लोहे की प्लेट दी जाती थी, जिससे वो खाना बाद मे खाने के लिए संग्रहित न कर सके । जिससे खाना खराब हो जाये । वहीं मिट्टी के बने लोटा मे एक लोटा पानी भी सिर्फ पीने और शौच के लिए । इतनी निर्ममता मे आदमी टूट जाये। पर सैल्यूट इन क्रांतिकारियों को जिन्होने अंग्रेजो को ही झुका दिया । ये लोग शहीद हो गए, पर अंग्रेजो के दमनकारी नीतियों के आगे नही झूके । यही कारण है जब शहीदो के प्राण न्योछावर का पता चलता है तो आंखो से आंसू आने लगते है । मै अभी इसे यही विराम देता हू । क्रमशः जारी रहेगा ।
डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर