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जो जीता – वो बाजीराव

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।

इस पूरे कालखंड के बीच में बस एक नाम स्वर्ण की तरह चमकता है, जिसकी तलवार बार बार विजय का इतिहास रचती रही। जिसका नाम स्वयं में जीत का पर्याय हो गया, जो उत्तर से दक्षिण तक अपने शौर्य का ध्वज लहराते हुए दिग्विजय करता रहा है। वो बीस साल तक लड़ता रहा, जीतता रहा। तबतक, जबतक कि अंतिम विश्राम का समय न आ गया। मध्यकाल का सर्वश्रेष्ठ योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाळ!

उस योद्धा को मुगल वंश का अंत करने का श्रेय मिलना चाहिए था, क्योंकि वही था जिसके कारण औरंगजेब का विशाल राज्य एक दिन चांदनी चौक से पालम तक सिमट कर रह गया। वही था जिसने दक्षिण में विधर्मी सत्ता के तेवर का ठंढा किया। वही था जिसने आज के लगभग समूचे भारत को एक भगवा ध्वज के नीचे ला खड़ा किया। पर इतिहास की किताबें उसके साथ न्याय नहीं करतीं। स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक दशकों में जैसे लोगों को शिक्षा मंत्री बनाया गया, उस हिसाब से हम न्याय की उम्मीद कर भी नहीं सकते।

पेशवा की मस्तानी बाई से प्रेम कहानी की चर्चा सुनता हूँ तो लगता है, “बीस वर्ष में चालीस बड़ी लड़ाइयां लड़ने और जीतने वाले योद्धा को प्रेम के लिए क्या ही समय मिला होगा। पर साहित्य और सिनेमा जगत के धुरंधर जो न लिख दें, दिखा दें…”

मराठा साम्राज्य का प्रधानमंत्री रहते हुए बीस वर्षों तक जिस योद्धा ने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में अपना दिन रात एक कर दिया, उस योद्धा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये। और यह सत्ता से अधिक समाज का कार्य है। यह उस महान योद्धा का अधिकार है कि यह देश कहावतों में कहे- जो जीता, वो बाजीराव!

भीषण गर्मी और लू के प्रचंड प्रहार के बीच उस महान योद्धा ने आज ही के दिन मध्यप्रदेश के रावड़खेड़ी में अंतिम सांस ली थी। हर वर्ष कुछ उत्साही लोग उस पुण्यभूमि पर जा कर उस अमर योद्धा को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इस वर्ष भी गए हैं… मैं हर बार सोचता हूँ, पर नहीं जा पाता। खैर! अगली बार…

पर आपको आज का दिन याद रहना चाहिये। याद रहना चाहिये रावड़खेड़ी। और याद रहना चाहिये, “जो जीता वही बाजीराव…”

साभार -सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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