Positive India:Sujit Tiwari:
JNU विष विद्यालय का कचरा साफ होना है इसलिए भी वहां भी आजकल हंगामा है।
ये जो नए कुलपति वहां के हैं यह पहले गैर-वामपंथी कुलपति हैं। इन्होंने वहां कुछ बदलाव किए हैं जैसे एक प्रोफेसर के नीचे बस 8 पीएचडी हो सकती है। पहले यह आंकड़ा 20 से 30 होता था। इससे होगा क्या कि ये जो 35 35 साल तक पीएचडी के नाम पर बैठे नक्सली होते थे इनकी संख्या में कमी आएगी। दूसरा इतने ज्यादा पीएचडी होने के कारण यह बुड्ढे ही होस्टल आदि पर कब्जा करते थे और जब नया बच्चा कोई आता था तो उसे यह अपने साथ ही कमरे में रहने को कहते थे। बताया जाता है कि एक कमरे में 8-8 लोग सर्वहारा के नाम पर रह रहे। बदले में उस बच्चे का दिन रात ब्रेनवाश से लेकर उसे होस्टल में सुलाने के नाम पर क्रांति में सहयोगी बनने को कहा जाता था और उसे करना पड़ता था।
अब जब इनकी संख्या घटेगी तो बच्चे स्वतंत्र रूप से अपनी पढ़ाई करेंगे। इसके दूसरे पहलू में यह है कि दूसरी तरफ प्रोफेसर के रूप में बैठे नक्सली भी बच्चे के दिमाग मे जहर भरते रहते हैं। एक गांव या छोटे शहर से आया कोई कन्हैया कुमार जिसके मां बाप ने भगवान कृष्ण के नाम पर अपने बच्चे का नाम रखा, वो भी जब ऐसे प्रोफेसर के चंगुल में फंसता है तो धीरे धीरे देश के ही टुकड़े करने की सोचने लगता है। ऐसे में वहां 100 से ज्यादा नए प्रोफेसर भरे जाने है और इस बार पहले की तरह प्रमुख क्वालिटी वामपंथी होना नही हो पायेगा। इससे भी बच्चे जो सिर्फ शिक्षा लेने आये हैं अपनी पढ़ाई करेंगे और फिर खुद तय करेंगे कि उन्हें क्या करना है क्या नहीं।
इस वजह से भी न सिर्फ JNU बल्कि देश भर में बैठे इनके नक्सली वहां के कुलपति को हटाने की मांग कर रहे हैं। उन्हें भी दिख गया है कि आने वाले समय मे इनका जो ये आखरी गढ़ है, यह भी ढहने वाला है और दूसरी तरफ़ जिस तरह ABVP वहां मजबूत हो रही है उससे तो यह पहले ही भयभीत इतना है कि कभी एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले नक्सली, अपने नितंब चिपकाके बोले तो गठबंधन करकर ABVP के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं और ABVP धीरे धीरे इनको हराने की तरफ बढ़ भी रही है।
दिल्ली की छाती पर बैठकर जो ये उसे हाइजेक करने की कोशिश करते रहते हैं, यह आने वाले समय मे इतिहास बनकर रह जायेगा।
लेखक:सुजीत तिवारी-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)