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आखिर राजनैतिक पार्टियाँ सामाजिक सौहार्द्रता और उसके ताना-बाना को क्यो छिन्न-भिन्न करने पर उतारु है।

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Positive India:By Dr.Chandrakant Wagh:मेरे दोस्तो आज मै एक संवेदनशील मुद्दे पर अपनी बात रख रहा हू । वैचारिक मतभेद एक सामान्य सी बात है । पर आजकल इस मतभेद को सीधे सीधे दुश्मनी बनाने का रिवाज सा चल पड़ा है । इसका मतलब यह है कि हम जो बोल रहे है वो मानो अन्यथा अपना बोरिया बिस्तर बांध लो । सोशल मीडिया मे इस तरह की धमकी; एक बहुत बड़ा दुस्साहस ही है । दुर्भाग्य से हमारे यहा अप्रत्यक्ष रूप से जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत चरितार्थ है । कानून अपना काम करता तो इस तरह की बात सोच भी नही पाता । इसी कमजोरी के चलते काश्मीर मे पंडित भाईयो का नरसंहार हुआ वही उन्हे निर्वासित जिंदगी बिताने को मजबूर होना पड़ा । कितनी विडंबणा है और कितनी राजनीतिक विवशता कि अपने राजनीतिक फायदे के लिए उनके हत्यारे बेखौफ घूम रहे है । एक के उपर भी मामला दर्ज नही है । मै फिर से अपने मूल विषय पर आऊ इस चुनाव को ये राष्ट्रीय दल अपने लाभ के लिए गैर जरूरी मुद्दो की तरह ले जा रहे है । एक दल जहा इसे स्थानीय व गैर स्थानीय मे जोड़ने मे राजनीतिक लाभ देख रहा है । वही दूसरा राजनीतिक दल पिछड़ा का कार्ड खेलने पर उतारू है । पर इससे सामाजिक सौहार्द्रता और उसके ताना-बाना को कितना नुकसान पहुंचेगा यह मालूम होने के बाद भी ये दल सीट के लिए इसे सुलगाये रखना चाहते है । ये वही दल है जो भारत के टुकड़े टुकड़े के नाम से आजादी की बात कर प्रदर्शन किया करते थे । पर दूसरे की आजादी इन्हे बर्दाश्त नही होती । पहले मै प्रत्याशी देखकर वोट देता था पर अब मैने तय किया कि इस समय दल देखकर वोट दूंगा । ये मेरा निजी मामला है और संविधान भी मुझे इसकी स्वतंत्रता देता है । ये अधिकार सब के लिए है । मैने वर्तमान के राजनीतिक हालात को देखते हुए तय किया कि मै ऐसे किसी को वोट नही दूंगा जिससे देश को नुकसान हो । वैसे मै बता दू की न मेरी शिकायत राज्य सरकार से है न अभी के उम्मीदवार से है । मै सोचता हू मै किसी ऐसे को भी वोट दिया तो ये वोट कपिल सिब्बल को जाएगा । मै सोचता हू अगर मै किसी ऐसे को वोट दिया तो ये वोट दिग्विजय सिंह को जाएगा । अगर मैने किसी ऐसे को वोट दिया तो ये सैफुद्दीन सोज को जाएगा । अगर मैने ऐसे किसी को
को वोट दिया तो ये वोट मणिशंकर अय्यर को जाएगा । अगर मैने किसी ऐसे को वोट दिया तो ये वोट सैम पित्रोदा को जाएगा । अगर मैने किसी ऐसे को वोट दिया तो ये वोट पी. चिदंबरम को जाएगा । अगर मैने किसी ऐसे को वोट दिया तो ये वोट नवजोत सिंह सिद्धू को जाएगा । अगर मैने ऐसे को वोट दिया तो ये वोट गुलाम नबी आजाद को जाएगा । अगर किसी ऐसे को वोट दिया तो ये हिंदू आतंकवाद गढ़ने मे कोई संकोच नही करेंगे । ऐसे हालात मे इन्हे मै क्यो मजबूत करू । चुनाव के पहले इस तरह का असंसदीय रवैया आपत्ति जनक है । होना तो ये चाहिए था कि इस तरह के असंतुष्ट मतदाता को अपने काम के माध्यम से तथा प्यार से अपने तरफ खींचना था । चलो मेरा ठीक है क्या यही बात समाज के उन लोगो पर भी लागू करेंगे जो यहा प्रदेश मे भाजपा की राजनीति कर रहे है । अगर बात यही नही थमी तो दूर तलक जायेगी । बाजू के लोकसभा महासमुंद मे दोनो उम्मीदवार साहू है । अंदर जाओगे तो एक स्थानीय है दूसरा उम्मीदवार तो फिर बाहर का हो गया । क्या यही राजनीति का स्तर रखेंगे ? अब तो यह तय होना चाहिए कि ऐसे विचारो पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है । मै ये भी जानता हू कि सरकार वैचारिक स्वतंत्रता वाले को खुलकर साथ देगी । वही समाज और आम आदमी भी खुलकर हम जैसे लोगो के पीछे समर्थन मे खड़े रहेंगे । जिस आदमी का परिवार आठ नौ दशक से यहा रह रहा है । मेरे मां ने ब्राह्मण पारा कन्या शाला मे दशको से पढाया । मेरे पिता शासकीय आयुर्वेद महाविधालय मे प्राध्यापक थे और एक अच्छे आयुर्वेद चिकित्सक भी थे । मै स्वंय भी करीब चार दशको से अभनपुर मे चिकित्सा कर अपनी सेवाए दे रहा हू । वही सामाजिक विषयो पर समाचार पत्रो मे सतत लिखने का काम किया है । वही दो तीन साल से उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और महाविद्यालय मे स्वास्थ्य सुरक्षा और नशे पर निःशुल्क जाकर जागरूकता लाने की मुहिम छेड़ा हुआ है । रही बात स्थानीय और गैर स्थानीय पर यह तय है यहा का मूल निवासी आदिवासी लोग है । बाकी तो कोई महाराष्ट्र से आया है या कोई सरयू पार से । अगर खामोशी के साथ बात दबा दे तो बात आई गई हो जाएगी ये एक सिद्धांत की बात है । बात यही तक पर एक निवेदन है कि राजनीति को इतना छोटा मत करो । लोगो को एक दूसरे के विचारधारा को सम्मान देना चाहिए । मेरे को इस बात का भी दुख हुआ कि जिसके पोस्ट से यह चल रहा था उसे कम से कम विरोध व्यक्त करना था । शायद इसे मूक सहमति माना जाए । पर मै इस लेख को यही विराम देता हू कि मुझे एक अच्छे छत्तीसगढीया होने के प्रमाण देने की आवश्यकता ही नही है । क्योंकि मूलतः मै एक अच्छा छत्तीसगढ़ीया तो हू ही वही स्वतंत्र विचार का समर्थक भी हू ।
लेखक: डॉक्टर चन्द्रकान्त वाघ

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