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जहां सिर तन से जुदा हो रहा हो , ग़ालिब , शेक्सपियर ,कालिदास काम नहीं आते

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
“जहां सिर तन से जुदा हो रहा हो , ग़ालिब , शेक्सपियर ,कालिदास काम नहीं आते”
कुंवर जी की यह कविता कांग्रेस के सत्ता काल की है । उत्तर प्रदेश और केंद्र दोनों ही जगह , कांग्रेस सत्ता में थी । ( अयोध्या के मूल निवासी , कुंवर जी तब के दिनों लखनऊ में ही रहते थे ।) ठीक वैसे ही जैसे हरिशंकर परसाई के सारे व्यंग्य कांग्रेस सत्ता काल के हैं । पर लगता है जैसे अभी लिखे गए हों । स्पष्ट है कि सत्ता कोई भी , किसी भी की हो , निर्मम और निरंकुश ही होती है ।

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दूसरे , सिद्धांत रुप में कुंवर जी की यह कविता बहुत सुंदर है । पर व्यवहार में बहुत दूर । जहां स्वार्थ सामने हो , सगे भाई , माता , पिता से नफ़रत आम हो गई है , जहां सिर तन से जुदा हो रहा हो , ग़ालिब काम नहीं आते । शेक्सपियर , कालिदास काम नहीं आते । निजता बड़ी चुनौती बन जाती है । आदमी औरंगज़ेब बन जाता है । हिंदुस्तान का अंग कट कर पाकिस्तान बन जाता है । पाकिस्तान कट कर बांग्लादेश बन जाता है ।

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हिंदू , मुसलमान एक बड़ी सचाई है । जैसे यहूदी , मुसलमान । जैसे क्रिश्चियन , मुसलमान । लेकिन हिप्पोक्रेटों को ग़ाज़ा में नरसंहार तो दिखता है , इज़रायल में हुआ 7 अक्टूबर का नरसंहार नहीं दिखता । 7 अक्टूबर अगर न हुआ होता , तो आज यह मंज़र आम नहीं होता । हिप्पोक्रेटों ने 7 अक्टूबर की निंदा आज तक नहीं की , जैसे गोधरा की नहीं की । फ़्रांस में यह हिप्पोक्रेसी नहीं है । चीन में भी नहीं । ऊइगर मुसलमानों पर जो ज़ुल्म चीन ढा रहा है , दुनिया ख़ामोश है । वह 57 देश भी , जो इज़राइल के ख़िलाफ़ एकजुट हैं ।

तुलसी बाबा लिख गए हैं , समरथ को नहीं दोष गोसाईं ! लखनऊ में एक रंग निर्देशक थे , उर्मिल थपलियाल l व्यंग्य भी लिखते थे l वह लिखते थे , समरथ को नहीं होश गोसाई !

अब तो आज चीन का भी अधिकृत बयान आ गया है कि वह कोई युद्ध नहीं लड़ेगा । अमरीका के किसी मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा । वह चीन , जिस की शह पर ईरान ने हमास को उकसाया , इज़राइल पर 7 अक्टूबर करने के लिए काम पर लगाया । क्यों कि चीन को मिडिल ईस्ट से यूरोप जाने वाला भारतीय कॉरिडोर की योजना पसंद नहीं थी । कॉरिडोर न बने , इस लिए यह सब चीन ने करवाया । लेकिन अब चीन भी इस युद्ध से किनारे हो गया है । चीन भयंकर आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है । मानिए , न मानिए यह मोदी और बाइडेन कि संयुक्त नकेल है । मनुष्यता से नफ़रत करने वाले चीन से , कोरोना फैलाने वाले चीन के काले कारनामों पर हमारे हिप्पोक्रेट , सिरे से ख़ामोश रहते हैं । सर्वदा से !

कुंवर जी की यह कविता , यहीं कबीर से कोसों दूर हो जाती है । नफ़रत एकतरफ़ा नहीं होती । इस की शिनाख़्त करना , कबीर से सीखने की बहुत ज़रूरत है । इसी लिए काफिर , काफिर ही रहेंगे बतर्ज कायर , कायर ही रहेंगे ।

पूरी दुनिया में इस्लामिक आतंक की मजम्मत ही नहीं , पुरज़ोर विरोध बहुत ज़रूरी है । नहीं होगा , तो हिंदू-मुसलमान , यहूदी- मुसलमान , क्रिश्चियन-मुसलमान चलता रहेगा और कुंवर जी की कविता , अप्रासंगिक बनी रहेगी । मनुष्यता और सभ्यता से मोहब्बत बहुत ज़रूरी है । आतंक और आतंकियों की शिनाख्त के बिना यह मुमकिन नहीं ।

[ एक वाट्स ग्रुप पर कुंवर नारायण की एक कविता पर मेरी एक टिप्पणी।]

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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