Positive India:Dayanand Pandey:
मुहम्मद तुग़लक हमारे समाज में , राजनीति में हरदम चर्चा में रहता ही है । लेकिन अगर तुग़लक को लोग पागल या मूर्ख समझते हैं तो ग़लती करते हैं । वह बुद्धिमान बहुत था पर हां , क्षमतावान नहीं था । इसी लिए दिल्ली से दौलताबाद या चमड़े का सिक्का करता रहता था । अकसर होता है कि धर्म राजनीति पर जब तब हावी होता रहता है । लेकिन राजनीतिज्ञ धर्म का कैसे इस्तेमाल कर धर्म को कूड़े में डालते रहते हैं उस का नायाब उदाहरण तुग़लक ने पेश किया है । मैं ने तुग़लक का इतिहास आद्योपांत नहीं पढ़ा है । पर गिरीश करनाड लिखित नाटक तुग़लक पढ़ा भी है और इब्राहिम अल्काज़ी के निर्देशन में देखा भी है। मनोहर सिंह ने तुग़लक की भूमिका की थी । बहुत शानदार अभिनय ।
तुग़लक नाटक में एक मौलवी का करेक्टर है । जो एक समय धर्म का झंडा ले कर तुग़लक पर लगभग सवार हो जाता है । जीना हराम कर देता है , तुग़लक का । हर समय एक धार्मिक एजेंडा ही उस का बड़ा हथियार होता है । मौलवी का जनता पर असर भी बहुत था । सो तुग़लक नर्वस हो जाता है । धर्म से हार – हार जाता है । बारम्बार । अंततः पड़ोस के राजा से वह युद्ध का पंगा ले लेता है । और जब युद्ध होने ही होने को होता है तो तुग़लक उस मौलवी के पास जाता है । बिलकुल शरणागत भाव में । मौलवी से कहता है कि हमारे आप के मतभेद अपनी जगह हैं , पर मुल्क अपनी जगह । मुल्क की हिफ़ाज़त के लिए मैं आप की मदद चाहता हूं । आपसी मतभेद हम लोग बाद में सुलझा लेंगे । आप जैसा चाहेंगे , वैसा ही होगा । चाहता हूं कि इस युद्ध में आप भी कंधे से कंधा मिल कर लड़ें । बिलकुल राजा की तरह । हमारी ही सवारी पर सेना की कमान संभाल कर । एक मोर्चा आप संभालें , दूसरा मोर्चा मैं । मौलवी तुग़लक के झांसे में आ जाता है । भूल जाता है कि लड़ाई लड़ना उस का काम नहीं । खैर मोर्चे पर जाते ही मारा जाता है । दुश्मन की फ़ौज में जश्न शुरू हो जाता है कि राजा मारा गया , तुग़लक मारा गया । बीच जश्न में तुग़लक दुबारा हमला कर देता है । दुश्मन राजा भी मारा जाता है । मतलब एक तीर से दो निशाने । दोनों दुश्मन पर फतह ! मौलवी भी मारा गया और दुश्मन राजा भी ।
हमारे अक्षम राजनीतिज्ञ अभी तक तुग़लक की यह परंपरा कायम रखे हुए हैं । एक तीर से दो निशाने हर चुनाव में । आप को नहीं लगता ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)