भारतीय राजनीति में चाणक्य को निपटाने की कला इंदिरा गांधी ने विकसित की
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
नेहरु के निधन के बाद स्वाभाविक उत्तराधिकारी की तलाश में लालबहादुर शास्त्री और मोरार जी देसाई के नाम उभरे थे। इंदिरा की दावेदारी दबी-दबी रह गई थी। अंतत: तमाम उठापटक के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री हो गए थे। पर जब ताशकंद से लालबहादुर शास्त्री के निधन की खबर इंदिरा गांधी को देर रात क्या लगभग भोर में मिली तो इंदिरा ने तुरंत बिसात बिछा ली थी अपने प्रधानमंत्री बनने के लिए। और उन्हों ने शास्त्री जी के निधन की पहली सूचना अपने पिता नेहरु के मित्र और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र को फ़ोन कर के दी, पिता से उन के संबंधों का हवाला दिया और कहा कि वह फ़ौरन दिल्ली पहुंचे और उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रयत्न शुरु करें। द्वारिका प्रसाद ने भी देर नहीं की। जब इंदिरा का फ़ोन उन्हें मिला तो भोर के चार बज रहे थे। और वह सुबह के सात बजे वह दिल्ली में इंदिरा के घर उपस्थित थे। योजना बनी। यह बिलकुल स्पष्ट था कि तब मोरार जी देसाई सब से प्रबल उम्मीदवार थे प्रधान मंत्री पद के। कामराज तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। पहली योजना के तहत द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कामराज को ही मोरार जी के बरक्स प्रधानमंत्री पद के लिए खडा़ किया। नाम चल गया। अब मोरार जी और कामराज आमने-सामने थे। कामराज के सामने जाहिर है मोरार जी देसाई बीस पड़ रहे थे। सो अब दूसरे राऊंड में द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कामराज को मोरार जी के भारी पड़ने का डर दिखाया। और बताया कि चूंकि उन को हिंदी भी नहीं आती सो वह देश भी ठीक से नहीं चला पाएंगे। कामराज द्वारिका प्रसाद मिश्र के डराने में डर भी गए।
तब? तब फिर क्या हो?
रास्ता भी द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कामराज को सुझाया। और इंदिरा का नाम सुझाया। नेहरु से संबंधों का वास्ता दिया और कहा कि आप की बच्ची है। उसे अपना उम्मीदवार घोषित कर दीजिए। अगर जीत गई तो आप की जीत, अगर हार गई तो कह दीजिएगा बच्ची थी। साथ ही यह भी जता दिया कि मोरार जी को अगर पटकनी कोई दे सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ इंदिरा गांधी। और हुआ भी यही। इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री बन गईं। मोरार जी देसाई तब हार गए थे।अब शुरु हुआ असली खेल। कामराज इंदिरा को बच्ची ही समझते रहे। प्रधानमंत्री मानने को तैयार ही नहीं थे। इंदिरा सुनो ! से संबोधित करते। इंदिरा इधर आओ ! कहते रहते। यह करो, वह करो, फ़रमाते रहते। इंदिरा एक प्रधानमंत्री की बेटी थीं, प्रधानमंत्री का ज़माना देखा था, उन की सचिव रह चुकी थीं, उन का कामकाज संभाल चुकी थीं, प्रधानमंत्री की हनक और उस की गरिमा का भान था उन्हें। जाहिर है कामराज का यह व्यवहार उन्हें नहीं सुहाता था। सो उन्हों ने कामराज को सबक सिखाने की योजना बनाई और पहले राऊंड में कामराज को ही निपटाया, कामराज को किनारे किया। इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बना कर आधुनिक चाणक्य बने द्वारिका प्रसाद मिश्र भी इंदिरा को बेटी ही मानते रहे, प्रधानमंत्री नहीं। सो इंदिरा ने दूसरे राऊंड में इस चाणक्य को निपटाया। सिंडीकेट-इंडीकेट और जाने क्या-क्या हुआ। और एक समय वह भी आया कि कांग्रेस में लोग उन्हें इंदिरा इज़ इंडिया कहने लग गए।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)