यह गांधी का नहीं गोडसे का भारत लगता है – महबूबा मुफ्ती
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
” यह गांधी का नहीं गोडसे का भारत लगता है “, ‘एजेण्डा आजतक’ कान्क्लेव में महबूबा मुफ्ती कहती हैं।
लेकिन जब कश्मीर से महबूबा का बयान आता है तो तनिक और भी स्पष्ट होता है। पिछले महीने 24 नवंबर को कश्मीर के बनिहाल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए महबूबा ने स्पष्ट कहा था कि जम्मू कश्मीर के लोग गोडसे के भारत के साथ नहीं रह सकते। वे गांधी का भारत चाहते हैं।
इस जनसभा का थीम था 15 नवंबर को हैदरपोरा में हुए आतंकवादी एनकाउंटर के लिए न्यायिक जांच की मांग। 15 नवंबर को श्रीनगर के हैदरपोरा एनकाउंटर में चार आतंकवादियों को मारा गया था। लेकिन मसला ये था कि पाकिस्तान से आया एक आतंकवादी बिलाल एक अन्य स्थानीय नागरिक आतंकी के साथ मुदस्सिर गुल नाम के एक व्यक्ति के किराए के कमरे में रहता था। जिस मकान में कमरे का किराया था उसका मालिक अल्ताफ अहमद था। मुठभेड़ के दौरान अल्ताफ और मुदस्सिर मानव ढाल के रूप में खड़ा हो गया था। सेना ने चारों का मुठभेड़ कर दिया था।
अब महबूबा को इस आतंकी सफाई वाला भारत नहीं चाहिए। महबूबा को नेहरू गांधी वाला भारत चाहिए। जिसमें कश्मीर के लिए धारा 370 के साथ अलग संविधान और अलग झंडा मौजूद था। वह भारत चाहिए जिसमें कश्मीर का ’90 का नरसंहार और महापलायन हुआ था। वह भारत चाहिए जिसमें आए दिनों कश्मीर में आईएसआईएस का झंडा लहराता था और सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान से मोर्टार दागे जाते थे। ऐसा भारत चाहिए जिसमें इंडिजिनियस और इंपोर्टेड आतंकियों का अय्याशगाह हुआ करता था। ऐसा भारत चाहिए जिसमें देश का ही खा कर देश की सेना पर पत्थर चलाने वाला भटका हुआ नौजवान हुआ करता था। ऐसा भारत चाहिए जिसने पुलवामा जैसे न जाने कितने ही जख्म खाए हुए हैं।
लेकिन अब इस बदले हुए भारत में ऐसा कुछ नहीं हो रहा। महबूबा मुफ्ती की पंक्ति फिर याद करिए, कहती हैं, “यह गांधी का नहीं गोडसे का भारत लगता है”। महबूबा मुफ्ती ने पहली बार मुझे गांधी के भारत पर स्वयं को शर्मिंदा होने का अवसर दिया है और गोडसे के भारत पर गौरवान्वित होने का। मैं सलाम करता हूं महबूबा मुफ्ती को।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)