जश्न वालों ये भीड़तंत्र की जीत है और लोकतंत्र की हार
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
भीड़तंत्र में बड़ी ताकत होती है। कोई बंदिश नहीं। नैतिकता नहीं। अधर्म उसके साथ खड़ा होता है। बेगुनाह को बैरिकेड पर लटका दे या गाड़ी से खींचकर एक निर्दोष वाहन चालक को पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दे। न्याय उससे प्रश्न नहीं पूछता। धर्म उसके आड़े नहीं आता।
लोकतंत्र में पवित्र लोक भावना होती है। धर्म की कसौटी पर इसका गठन होता है। इसका संस्थागत मूर्त रूप संसद राष्ट्र का मंदिर कहलाता है। समाज और राष्ट्र के हित में लोकतंत्र फैसले लेता है। दशकों से मांग वाली कृषि कानून संसद से पास हुआ था। आज भीड़ तंत्र के सामने टूट गया। टूटा कानून नहीं, टूटा है लोकतंत्र। टूटते हुए लोकतंत्र का घिनौना जश्न हुआ आज। मिठाइयों की शक्ल में लोकतंत्र की टूटी हुई बोटियां बंटी हैं।
लोकतंत्र का नायक है मोदी। शीतकालीन सत्र शुरू होते ही संसद के पट खुल जाएंगे। मोदी निरस्तीकरण की विधियां पूरी करेंगे। निरस्तीकरण के लिए यह कानून वही जाएंगे, जहां से आए थे। लोकतंत्र के मंदिर को ये कितना बड़ा धर्म संकट है? संसद इसे निरस्त भी कर देगा। क्योंकि भारत का लोकतंत्र दलीय लोकतंत्र है।
अधर्म अगर पराजीत भी हो जाए तो भी वह हतोत्साहित नहीं होता। वह लगातार नयी उठान भरता रहता है। कनाडा के खालिस्तानी संगठन एसएफजे की फंडिंग से लेकर लाल किले से तिरंगा उतार कर फेंक ने तक की घटनाओं से भी किसान आंदोलन हतोत्साहित नहीं हुआ।
कैप्टन अमरिंदर सिंह राष्ट्र सुरक्षा को खतरा जानकर मुख्यमंत्री पद तक को त्याग अमित शाह को मिलने दिल्ली पहुंच गए। पंजाब की धरती खालिस्तानियों की आक्रांत से डर उठी। खालिस्तानियों के फंड पर 2017 का पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने वाला अरविंद केजरीवाल एक बार फिर तैयार बैठा है। पिछली दफा शून्य से सत्ता तक की सफर को तय कर देने वाला लहर केजरीवाल ने पैदा कर दी थी। एक सौ बोलेरो और दस हजार लोग भाड़े पर पर्याप्त थे, गली-गली में आप की प्रचंड लहर मैन्युफैक्चर करने के लिए। मोदी ने कैप्टन अमरिंदर पर दांव लगाकर खालिस्तान की भ्रूण हत्या कर दी थी। पर अब कैप्टन भी सरेंडर और पंजाब में भाजपा की लहर भी। अबकि केजरीवाल कोई चूक नहीं करने वाला था। लेकिन मोदी ने कृषि कानून ही उठा लिया।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)